शुक्रवार का दिन था। सुबह का मौसम काफी सुहाना लग रहा था। विनय हमेशा की तरह रिया को लेने उसके घर पहुंचा। उसने अपनी कार गेट के बाहर खड़ी की और हॉर्न बजाया। रिया अपने कंधे पर एक बैग लटकाए चिल्लाते हुए दरवाज़े से बाहर निकली, “हॉर्न बजाना बंद करो… मैं आ रही हूं।”
“तुम्हें आने में इतनी देर क्यों हो गई?” रिया ने कार में जैसे ही अपने कदम रखे विनय ने पूछा।
“मत पूछो… बहुत कुछ चल रहा है… अब चलो चलते हैं,” रिया ने कॉलेज जाते हुए जवाब दिया।
उस दिन कॉलेज का आखिरी दिन था। वे पहले दिन से ही एक-दूसरे के बहुत अच्छे दोस्त थे। उन दोनों को अहसास हो गया था कि कॉलेज के ये दिन और उनका साथ अब खत्म होने वाला है, जो विनय को बड़ी ही मुश्किल से मिला था। रिया को देख न पाने का ख्याल उसके लिए काफी असहनीय लग रहा था।
विनय जानता था कि उसके जाने से पहले उसे कुछ-न-कुछ कहना ही होगा। दरअसल, रिया उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए दूसरे शहर जाने की तैयारी कर रही थी, जबकि विनय अपने ही शहर में अपने पिता के कारोबार में शामिल होने जा रहा था।
पिछले कुछ दिनों उसने बोलने के लिए काफी कोशिश (Effort) भी की, लेकिन रिया से एक शब्द भी कुछ कह न सका। आज का दिन भी अलग नहीं था। जैसे ही दोनों कॉलेज पहुंचे, विनय उसे कैंटीन में ले गया और उसके पसंदीदा समोसे का ऑर्डर दिया।
“विनय… आजकल क्या कर रहे हो ?” विनय ने जैसे ही समोसा का ऑर्डर दिया रिया ने उससे पूछा। “आम तौर पर तुम मुझे समोसे के पास भी फटकने नहीं देते थे। आज…तुम मुझे ट्रीट दे रहे हो…कुछ-न-कुछ तो ज़रूर चल रहा है।” जब विनय प्लेट उठाने ही वाला था तो उसने उसका हाथ पकड़ कर खींच लिया और पास की बेंच पर बैठ गई।
“कुछ नहीं। आज हमारा आखिरी दिन है। कौन जानता है कि हमें यह मौका दोबारा कब मिलेगा, ”विनय से बड़े ही बेतरतीबी से जवाब दिया।
“सच है,” रिया ने कहा। “लेकिन पूरे महीने तुम्हारा व्यवहार कुछ अलग-अलग ही रहा।”
“बस कुछ नहीं, इतना ही कि कॉलेज अब खत्म हो रहा है,” विनय ने कहा। “तुम किसी दूसरे शहर में जा रही हो। ये दूरी ही मेरे लिए काफी अलग है। ”
“बस इतनी ही बात है न?” रिया ने पूछा।
विनय ने उसकी ओर देखा। उसकी नज़र उस पर टिक गई। अब तो उसे बताओ, उसे बताओ, विनय की आंतरिक आवाज़ बोल उठी। लेकिन उसे डर था कि कहीं वह अपनी दोस्ती न खो बैठे, इसके बाद क्या होगा ? अगर वह उससे नफरत करने लगी तो क्या होगा? नफरत भरी नज़रों के बीच वह कभी जी नहीं पाएगा।
“हां, यही है,” विनय कुछ फुसफुसाया।
इसके बाद उस दिन विनय हमेशा की तरह रिया को उसके घर छोड़ने ले गया। जैसे ही वे कार में बैठे, रिया ने अपने बैग से एक बॉक्स निकाला और उसे दे दिया। “यह तुम्हारे लिए है। घर पहुंचने के बाद ही इसे खोलना ”रिया ने उसे गले लगाया और अपने घर के अंदर चली गई।
निराश विनय घर पहुंचा और सीधे अपने कमरे में चला गया और सोफे पर बैठ गया। उसने डिब्बा खोलने से पहले अपनी किस्मत को खूब कोसा। इसके बाद जब उसने बॉक्स खोला तो उसमें एक घड़ी और एक पर्ची मिली। पर्ची में लिखा था- “मैं वास्तव में तुम्हें बहुत पसंद करती हूं, विनय। मैं यह कभी नहीं कह पाई, क्योंकि मुझे अपनी दोस्ती खोने का डर था, लेकिन मुझे आज कहना पड़ा। मुझे उम्मीद है कि यह घड़ी तुम्हें हमेशा अपने साथ बिताए अनमोल पलों की याद दिलाएगी।