रिश्ते का अंत

यहां सरिता खुद को पूरी तरह अविश्वास और धोखे के बीच जकड़ी हुई मसहूस कर रही थी। उसके भीतर धीरे-धीरे गुस्से का स्तर बढ़ रहा था। वह चाहती थी कि जल्द से जल्द अपने गुस्से पर काबू पा ले, लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रही थी। असहाय की तरह सिसकने के सिवाय वह कुछ नहीं कर सकती थी।

सरिता को सोच-सोचकर अचानक चक्कर आने लगा था। उसकी आंखों के सामने पूरा कैफे घूम रहा था। इसके बाद उसने अपनी आंखें पूरी तरह बंद कर लीं और गिनती गिनने लगी 1…2…3… उसे लग रहा था कि गिनती गिनने से वह इस परेशानी के सबब से खुद को बाहर निकाल लेगी। फिर जैसे ही धीरे से उसने अपनी आंखें खोली, तो सब कुछ वैसा ही पाया जैसे पहले था। वही कैफे, एक कप में ठंडी पड़ी हुई कॉफी और वह व्यक्ति, जिसके प्रति वह 10 साल से समर्पित थी। वह ठीक उसके सामने बैठा था।

वह व्यक्ति कोई और नहीं, बल्कि सरिता का प्रेमी था। वो इंसान जिसके साथ उसने अपने जीवन के सपनों को साझा किए थे। वह इंसान जिससे उसने अपने पूरे जी-जान से प्यार किया था। इतना होने के बाद भी कुछ ही मिनट पहले उस व्यक्ति को हम दोनों के बीच चल रहे रिश्ते (Relation) को खत्म करने की घोषणा करने में थोड़ी-सी भी झिझक नहीं हुई।

यहां सरिता खुद को पूरी तरह अविश्वास और धोखे के बीच जकड़ी हुई मसहूस कर रही थी। उसके भीतर धीरे-धीरे गुस्से का स्तर बढ़ रहा था। वह चाहती थी कि जल्द से जल्द अपने गुस्से पर काबू पा ले, लेकिन वह कुछ नहीं कर पा रही थी। असहाय की तरह सिसकने के सिवाय वह कुछ नहीं कर सकती थी। सरिता भली-भांति जानती थी कि इससे पहले की उसका दिल टूटे, उसे अपनी भावनाओं पर हर हाल में काबू पा लेना है।

अपने रिश्ते को खत्म करने वाले प्रेमी को आखिरी बार देखते हुए सरिता ने अपना बैग उठाया और अपनी बची हुई गरिमा के साथ तुरंत कैफे से बाहर निकल गई।

इसके बाद बड़ी मुश्किल से वह पास के एक पार्क में पहुंची और एक एकांत जगह देखकर वहीं बैठ गई। पार्क में बैठे-बैठे अचानक उसकी आंखों से आंसूओं की धार बहने लगी। आंसूओं से भरी आंखों के बीच अचानक उसने अपने पैरों के पास कुछ गर्म और अस्पष्ट पड़ी हुई चीज़ महसूस की। सरिता ने नीचे देखा तो एक टूटे हुए पंख वाली छोटी चिड़िया पड़ी थी और वह उड़ने की काफी कोशिश कर रही थी। अचानक से अपने सामने उस छोटी चिड़िया की दयनीय हालात देखकर सरिता को अपना दुख और कष्ट बहुत ही बौना-सा लगने लगा। यहां वह अपने प्रेमी के चले जाने मात्र से रो-रोकर बेहाल हो रही थी, जबकि यह छोटी चिड़िया एक पंख टूट जाने के बावजूद उड़ने के लिए जदोजहद कर रही है और हार नहीं मान रही थी।

अब बिना एक और पल गवाएं सरिता ने बड़े ही प्यार से चिड़िया को उठाया और उसे चारों ओर से अपने दुपट्टे में लपेट लिया। अब दुख की जगह सरिता के भीतर करुणा ने अपनी जगह बना ली और उसे इस बात का अभास हो गया कि अब उसे इस प्यारी चिड़िया की बेहतर ढंग से देखभाल करनी है, जबतक कि वह पूरी तरह स्वस्थ न हो जाए। यही उसकी ज़िंदगी (Zindgi) का निहितार्थ भी है। एक नई उम्मीद और उद्देश्य से भरी सरिता ने अपनी आंसूओं को पोछा और अपने नए साथी को लेकर वापस घर चली गई।