संडे तो परिवार के लिए होता है

संडे तो परिवार के लिए होता है

हमें तो संडे की छुट्टी मिल भी जाती है, पर उन्हें नहीं मिलती। तो बस मैं संडे वाले दिन अपनी पत्नी को छूट्टी पर रखता हूं और खुद घर का सारा काम करता हूं। हालांकि, वो मेरी इन कामों में पूरी-पूरी मदद करती है।

मैं एक दिन यूं ही अपने एक करीबी दोस्त के घर निकल गया। दिन संडे का था और उस दिन मुझ घर पर कोई काम नहीं था, हां पर बीवी को बाज़ार ले जाना था, लेकिन औरतों के सामान में मेरा क्या काम? बस यही सोच कर मैंने बीवी को उसकी सहेलियों के साथ जाने के लिए कह दिया। इसके बाद मैं बिल्कुल फ्री था, तो सोचा चलो अपने पुराने दोस्त करण से मिल ही आते हैं, वैसे भी बहुत दिनों से मुलाकात भी नहीं हुई और उसने बहुत बार घर आने के लिए कहा भी था।

मैं उसके घर पहुंचा तो वो मुझे देखकर बहुत खुश हो गया। उसने मुझे बिठाया, अपनी पत्नी और बच्चों से मिलाया। हमने मिलकर खूब हंसी-मजाक और दुनिया भर की गपशप की। जब मेरी खातिरदारी करने का वक्त आया तो मेरा दोस्त खुद उठ कर मेरे लिए चाय नाश्ता बनाने जाने लगा। मैंने उससे खूब मना किया कि, “रहने दे। मेरे लिए यूं खामखां परेशान न हों।” पर उसने मेरी एक न सुनी और खुद चाय नाश्ता तैयार करने लगा।

मैंने मौका देखकर पूछा, “क्या भाई? आज तुम किचन में? भाभी नाराज़ हैं क्या?” इस बात पर वो एक ज़ोर का ठहाका लगाकर हंसा और फिर बोला, “अरे नहीं भाई! तेरी भाभी जब नाराज़ होती है तो इसका उल्टा होता है।” मुझे उसकी बात बिल्कुल समझ नहीं आई।

तो मैंने पूछा, “मतलब?” तो उसने कहा, “मतलब ये कि जब तेरी भाभी नाराज़ होती है तो वो खुद आकर किचन में काम करने लगती है। चूंकि अभी वो नाराज़ नहीं है, इसलिए मैं यहां किचन में काम कर रहा हूं।”

मुझे अब भी उसकी बात बिल्कुल समझ में नहीं आई। पर वो आगे बोला, “यार! ये औरतें हर रोज़ किचन में पूरा-पूरा दिन काम करती हैं। हमें तो संडे की छुट्टी मिल भी जाती है, पर उन्हें नहीं मिलती। तो बस मैं संडे वाले दिन अपनी पत्नी को छूट्टी पर रखता हूं और खुद घर का सारा काम करता हूं। हालांकि, वो मेरी इन कामों में पूरी-पूरी मदद करती है। इससे हम दोनों में प्यार भी बढ़ता है और एक-दूसरे को और भी ज़्यादा समझने में भी मदद मिलती है।”

दोस्त की ये बातें सुनकर मुझे अपने घर का सुबह का वो वाकया याद आ गया, जब मेरी पत्नी ने मुझे साथ में मार्केट चलने को कहा था, और मैंने झट से ये कहकर टाल दिया कि औरतों की खरीदारी में मेरा क्या काम? मैं हर रोज़ ऑफिस में रहता हूं और वो मेरे घर और बच्चों को संभालती है और जब शाम को मैं घर आता हूं तो हम दोनों अपने दिनभर के कामों से इतना ज़्यादा थक जाते हैं कि दो पल बैठ कर बात करने की बजाय सो जाना सही समझते हैं। मगर, ये एक संडे का दिन तो मुझे मिलता ही है, जिसे मैं उसके साथ उसके सुख-दुख सुनकर बिता सकता हूं। पर मैं क्या करता हूं? मैं तो हर संडे या तो कहीं बाहर निकल जाता हूं या पूरे दिन सोता रहता हूं। यह सब सोचकर मुझे खुद पर बहुत शर्मिंदगी महसूस होने लगी। फिर तो मुझे दोस्त के घर की चाय भी फीकी लगने लगी। मैं चाय खत्म करके जल्दी से वहां से निकला और तुरंत अपनी पत्नी को फोन मिलाकर पूछा, “क्या तुम बाज़ार निकल गई?”

“नहीं! मन नहीं किया” उसने जवाब दिया तो मैंने तुरंत कहा, “अच्छा! तो अब बना लो मन। मैं आ रहा हूं, हम बाज़ार जा रहे हैं और सुनो आज का खाना भी हम बाहर ही खाएंगे।”

ये सुनते ही मेरी पत्नी ने कहा, “सच?” मैंने कहा, “हां बाबा!” मुझे उसकी आवाज़ में खुशी सुनकर बहुत संतुष्टि महसूस हुई।

टिप्पणी

टिप्पणी

X

आनंदमय और स्वस्थ जीवन आपसे कुछ ही क्लिक्स दूर है

सकारात्मकता, सुखी जीवन और प्रेरणा के अपने दैनिक फीड के लिए सदस्यता लें।