यही कोई सुबह के 8 बजे थे। दिल्ली से रातभर सफर तय करने के बाद बस 50 यात्रियों को लेकर अभी-अभी मनाली पहुंची थी। दूसरे यात्रियों की तरह अभिनव भी अपने गंतव्य पर पहुंचने के बाद बस से उतरने लगा। इस दौरान वहां से कुछ दूर बर्फ की चादर से ढंकी पहाड़ की बर्फीली चोटियों देखकर 24 साल के अभिनव का मन उत्साह से भर गया।
यह उसके जीवन की एक नई शुरुआत थी। उसने मनाली बस स्टैंड से माउंटेन बाइक क्लब के लिए भाड़े पर टैक्सी लिया और अपनी मंज़िल की ओर चल पड़ा। इसी क्लब का नया मेंबर बनने के लिए उसने सारी तैयारी की थी। कार की खिड़की से जब उसकी नज़र बाहर की ओर पड़ी, तो देवदार के ऊंचे-ऊंचे पेड़ों को देखकर वह हैरान हो गया। इन प्राकृतिक वादियों (Prakritik vadiyon) को देख अचानक उसका मन अपने घर की यादों में डूब गया। उसके मन में बार-बार यह बात याद आ रही थी कि कैसे उसके माता-पिता के साथ तीखी बहस हुई थी। उसके माता-पिता चाहते थे कि वह भी उनकी तरह फैमिली बिजनेस को संभाले, जबकि उसका मन तो पहाड़ों में घूम रहा था। मन ही मन अभिनव सोच रहा था ‘उसने कितना अपने घरवालों को समझने की कोशिश की थी, लेकिन जब वे नहीं मानें तो वह क्या करता’। उन्हें भी तो उसके सपनों का ख्याल करना चाहिए था न। आखिरकार घरवालों के साथ तीखी बहस करने के बाद उसे घर छोड़ना पड़ा।
प्रकृति के करीब रहने के कारण अभिनव को जीवन की नई लय के बीच रचने-बसने में ज्यादा समय नहीं लगा। उसके लिए हर दिन रोमांच से भरा होता था। क्लब में ट्रेनिंग के दौरान नए-नए रास्तों और पगडंडियों के बारे में जानना और अपने नए साथियों के साथ दिनभर समय बिताने के बाद अभिनव को लगता था जैसे वह अपने घर पर ही है।
एक दिन क्लब में दिनभर अपने काम और मीटिंग को निपटाने के बाद अभिनव कुछ पूछने के लिए सुरेश के पास चला गया। 35 वर्षीय सुरेश पिछले 10 वर्षों से क्लब के साथ समर्पित भाव से जुड़े थे। वह व्यवहार से काफी हंसमुख व्यक्ति थे। पहाड़ों में बाइक रेसिंग करने वाले युवा उन्हें अपना मेंटर मानते थे। अभिनव जब उनके पास पहुंचा, तो शायद वे कहीं जल्दी में थे। उन्होंने अभिनव से कहा- क्या कल हम बात कर सकते हैं? दरसअल, मुझे अभी अपने घर निकलना है। इस पर अभिनव ने पूछा- सब खैरियत है न सर। ‘अरे हां, दरअसल मेरा छोटा भाई कई वषों के बाद घर वापस आया है’- सुरेश ने जवाब दिया।
‘क्या वह किसी दूसरे शहर में रह रहा था?’ अभिनव ने उत्सुकतावश पूछा।
‘ऐसा ही कुछ कह सकते हैं। असल में एक्टर बनने के लिए वह घर छोड़कर भाग गया था, जबकि मेरे पिता जी इसके खिलाफ थे।’- सुरेश ने एक लंबी सांस लेते हुए जवाब दिया। ‘लेकिन अब वह अपने जन्मदिन पर घर आ रहा है। मैं उसे मिलने के लिए और ज्यादा इंतजार नहीं कर सकता, सुरेश ने कहा। हम लोगों के बीच मतभेद हो सकते हैं, लेकिन परिवार तो परिवार होता है न। यही तो अटूट बंधन (Unbreakable bond) है।
यह सुनकर अभिनव हैरान हो गया। सोचने लगा वह तो कई महीनों से अपने घरवालों के संपर्क में भी नहीं है। यहां तक वह न तो उनके मैसेज का जवाब देता और न ही उनके किसी फोन कॉल का। न ही उनके पास गया है।
लेकिन, आज का दिन कुछ अलग था। सुरेश के शब्द अभिनव के दिलो-दिमाग में बार-बार गूंज रहे थे। उसने कई महीनों के बाद अपनी मां को मैसेज किया। ‘मां… मैं ठीक हूं। आपको बहुत मिस करता हूं’।