यह श्री सिन्हा का अंतिम कार्य दिवस था और वे चाहते थे कि उनका इकलौता बेटा उनके सेवानिवृत्ति समारोह (Retirement Party) में उपस्थित हो। शायद, उनकी बस अब यही अभिलाषा थी।
उधर लॉस एंजिल्स के उमस भरे मौसम में 10 वर्षों में पहली बार अमन अपने माता-पिता से मिलने के लिए अपना बैग पैक कर रहा था। शैक्षणिक गतिविधियों के लिए बाहर जाने के बाद से उसने उन्हें नहीं देखा था। तब वह सिर्फ 18 वर्ष का था। आज अमन सफल हो गया था और उसका परिणाम यह हुआ कि उसका जीवन बहुत व्यस्त हो गया।
घर वापसी पर जैसे ही अमन ने शांति से भरे शहर के अपने पुराने घर में प्रवेश किया, जिसमें वह बड़ा हुआ था, उसे वहां अपने उसी जाने-पहचाने वातावरण के होने की उम्मीद थी। उसने लॉन में अपने पसंदीदा झूले को ढूंढ़ने की कोशिश की लेकिन वह अब वहां नहीं था। उसे उम्मीद थी कि जब वह घर पहुंचेगा तो उसका फुर्तीला पिल्ला उस पर उछल कर आएगा लेकिन वह अब बहुत बूढ़ा हो गया था इतना कि वह सही से हिल-डुल भी नहीं पाता था। उसकी पुरानी यादों जैसा अब वहां कुछ भी नहीं बचा था। ऐसा लगता था कि उसके माता-पिता उसकी कल्पना से बहुत बूढ़े हो गए थे। सालों में पहली बार अमन का दिल यह देखकर द्रवित हो गया।
घर वापसी पर जब श्रीमान और श्रीमती सिन्हा ने देखा कि उनका बेटा दरवाज़े पर खड़ा है तो अमन को वहां देखकर उन्हें अपनी आंखों को विश्वास ही नहीं हुआ। अमन जब उनसे मिलने उनके पास चला गया तो उसने पाया कि वे उसे देखकर अजीब तरह से मुस्कुरा रहे थे। वे सब औपचारिक रूप से गले मिले और उसके बाद छोटी-मोटी बातें होने लगी। “मैं यहां किसी काम से आया हूं, पिताजी।” अमन ने कहा। उन सबके मन में बहुत से सवाल थे लेकिन कोई कुछ नहीं पूछ रहा था। शायद इस समय कुछ न कहना ही बेहतर था। अमन को अपने माता-पिता को उनके काम पर जाते हुए देखकर बहुत अफसोस और दुख महसूस हो रहा था।
श्री सिन्हा के सेवानिवृत्ति समारोह (Retirement Party) में अमन बहुत से अजनबियों से मिला जो उससे मिलकर रोमांचित लग रहे थे। उसके पिता से कम उम्र वाले सहयोगियों ने उसे बताया कि कैसे उसके पिता हमेशा अपने बेटे की उपलब्धियों के बारे में ही बात करते हैं। यह सुनकर उसे लग रहा था कि उसके पिता के इस रूप के बारे में तो अमन जानता ही नहीं था। उसकी सबसे ज्यादा आलोचना करने वाले उसके पिता वास्तव में सबके बीच में उसकी तारीफ करते थे।
समारोह के बाद विरक्त पिता-पुत्र स्थानीय बाज़ार तक चल कर गए, जबकि खुशी से सराबोर श्रीमती सिन्हा घर वापस चली गई और उन्होंने अपने बेटे का पसंदीदा भोजन पकाया। अभी रात के खाने की तैयारी चल ही रही थी कि अमन ने देखा कि उसकी बूढ़ी मां अजीब तरीके से सांस ले रही थी। यह देखकर उसे याद आया कि कैसे वह उसे स्कूल से घर वापसी में उसे दौड़ाती थीं। उनके इस तरह सांस लेने का कारण पूछने पर उन्होंने उसे अपने अस्थमा और रक्तचाप में उतार-चढ़ाव के बारे में बताया। शुगर लेवल कम होने की स्थिति में वह हर समय अपने साथ चॉकलेट रखती थी। वह तो यह भी नहीं जानता था कि कमरे के कोने में रखी हुई छड़ी उसकी मां की थी। भावनाओं की एक सुनामी में अमन इतना डूब गया था कि उसे समझ नहीं आ रहा था कि वह क्या करे।
घर वापसी पर पिछले कुछ साल की यादें उसकी आंखों के सामने घूम गई। उसका रोमांचक, व्यस्त जीवन, उसका कभी-कभार अपने माता-पिता को फोन करना और अगर उसका कोई एक दोस्त जो भारत जा रहा होता था उसके साथ उनके लिए औपचारिक रूप से कोई उपहार भेजना। उससे कहां चूक हो गई? दुनिया का सबसे आसान रिश्ता इतना जटिल कैसे हो गया? बाप और बेटे के बीच इतनी दूरी क्यों हो गई थी?
अमन को अपने माता-पिता (Mata-Pita) को उनके काम पर जाते हुए देखकर बहुत अफसोस और दुख महसूस हो रहा था।
इतने साल में पहली बार उसे यह एहसास हुआ कि वह गलत था। उसे इस बात पर शर्मिंदगी हो रही थी कि वह अपने माता-पिता की ज़रूरत के समय उनके साथ नहीं था। पूरे सप्ताहांत के दौरान एक खोखला एहसास उसके भीतर उसे कचोटता रहा। वह उनका दर्द दूर करना चाहता था। वह अपने माता-पिता को अपनी बात समझाना चाहता था। वह रोना चाहता था।
उसने ऐसा कुछ नहीं किया। वह ऐसा कुछ कर ही नहीं सका। वह अपने पिता और मां को सबसे अच्छा और प्यार से भरी झप्पी तो दे ही सकता था इसलिए उसने उन्हें प्यार से गले लगाया। उनके झुर्रीदार चेहरों पर आंसू लुढ़क गए। अमन ने रोते हुए कहा, “आई एम सॉरी, मां। मैं इतने लंबे समय तक आपसे दूर रहा।”
अमन आखिरकार अब घर आ गया था।