अगर आप सच में किसी को सम्मान देना चाहते हैं, तो दूसरे को सुनें कि आखिर दूसरे को क्या कहना है। -ब्रायंट मैकगिल।
हममें से कई ऐसे लोग हैं, जो खुद को बेहतरीन श्रोता समझते हैं। ऐसा इसलिए, क्योंकि वे हर शब्दों पर पूरा ध्यान रखते हैं, जो कुछ कहा जा रहा है। बातचीत के क्रम में कभी उनका ध्यान इधर-उधर नहीं हटता हैष। लेकिन, क्या आपके साथ कभी ऐसा हुआ है, जब किसी से बातचीत के दौरान आपका ध्यान भंग हो गया हो, आप अपने अगल-बगल झांकने लगे हों या बीच में ही बोलने की सोचने लगे हों? अगर, आपका जवाब हां है, तो ये तय बात है आप उतने बेहतरीन श्रोता नहीं हैं जितना की आप खुद को मानते हैं।
संचार पर हुए कई शोध से पता चलता है कि हम जो कुछ भी सुनते हैं उसका औसतन सिर्फ 25 प्रतिशत ही अपने दिमाग में संजो कर रख पाते हैं। इसकी वजह साफ है कि बातचीत के क्रम में या तो हमारा ध्यान भंग हो जाता है या हम अलग-अलग कामों में लगे रहते हैं। बावजूद इसके एक बेहतरीन और प्रभावशाली श्रोता बनना इतना क्यों ज़रूरी है? दरअसल, बेहतर और प्रभावशाली संचार के लिए सबसे पहला कदम है कि आप सामने वाले व्यक्ति को ध्यान से सुनें। कम्युनिकेशन (Communication) जीवन में किसी भी रिश्ते का आधार भी है। अगर आप एक बेहतरीन कम्युनिकेटर बनना चाहते हैं, तो सबसे पहले आपको एक अच्छा श्रोता बनना पड़ेगा।
इस लेख में उन उपायों के बारे में जानकारी दी गई है, जो एक प्रभावशाली श्रोता बनने में आपके लिए कारगर साबित हो सकते हैं।
बातचीत के क्रम में अपनी रुचि दिखाएं (Batchit ke kram mein apni ruchi dikhayen)
एक अच्छे श्रोता होने की सबसे पहली खासियत यह है कि वह बातचीत क्रम में कितनी रुचि लेता है। इसका तात्पर्य यह है कि आप कैसे किसी वक्ता को सहज बना सकते हैं, उन तरीकों के बारे में जानकारी प्राप्त कर पाएंगे, जिससे वे अपने विचारों को अहमियत देने के लिए आप पर विश्वास जमा सकें। आप इस बात की तस्दीक करेंगे कि किसी भी तरह का व्यवधान पैदा न हो। इस तरह वक्ता और श्रोता दोनों एक स्तर पर पहुंच जाते हैं। बातचीत को किसी एजेंडे या राय के हिसाब से न देखें। अगर आप पहले से ही कोई राय बना लेंगे, तो इस बातचीत को एक विशेष दिशा में मोड़ने का हमेशा खतरा बना रहेगा। एक अच्छे श्रोता होने के नाते उस व्यक्ति को सुनने में ध्यान देना चाहिए कि आखिर वक्ता क्या कह रहा है। कुछ इसी तरह स्वस्थ चर्चा में लोगों को जोड़ने के लिए सुझाव या प्रतिक्रिया को भी तव्वजो देनी चाहिए, जिससे अधिक से अधिक लोगों की भागीदारी हो। साथ ही लोग भी पूरे आत्मविश्वास के साथ अपनी बात रख सकें।
एक समय पर एक ही काम करें (Ek samay par ek hi kaam karen)
हम लोग एक ऐसे दौर में जी रहे हैं, जिसमें एक बेहतरीन श्रोता बनने के लिए काफी अधिक जागरूक रहने और निरंतर कोशिश में लगे रहने की ज़रूरत पड़ सकती है। आज हमारे पास फोन, कंप्यूटर और लैपटॉप जैसे तमाम गैजेट्स मौजूद हैं, जो हमारे ध्यान को भंग करने के लिए काफी हैं। अमूमन आप या तो अपने साथियों के साथ ईमेल करने या चैट करने में अपना अधिकतर समय व्यतीत करते हैं या आप टेलीफोन कॉल पर लगे रहते हैं। मान लीजिए आप किसी विश्वविद्यालय के डीन से टेलीफोन पर बात कर रहे हैं, जहां आप दाखिला लेना चाहते हैं। आपने उन संभावित प्रश्नों की सूची भी तैयार कर रखे हैं, जो डीन आपसे पूछ सकते हैं। बातचीत के दौरान किसी तरह का व्यवधान न हो, इसके लिए आप घर के किसी कोने में आप शांत वाली जगह भी चुन लेते हैं। आपने उन कॉलेजों की सूची भी बना रखी है, जिसमें आप एडमिशन लेने की सोच रहे हैं। टेलीफोन कॉल पर आपकी बातचीत शुरू हो जाती है और उसी वक्त आप दूसरे विकल्पों की तलाश में इंटरनेट पर सर्फिंग करते रहते हैं।
अगर आप एक साथ दो काम-बातचीत और इंटरनेट सर्फिंग करते हैं, तो इससे न सिर्फ आपका ध्यान भटकेगा, बल्कि आप न चाहकर भी डीन के सामने अपनी नकारात्मक छवि का बयान कर रहे होते हैं। आपके सामने बोलने वाले को ऐसा लगेगा कि आप बातचीत में दिलचस्पी नहीं दिखा रहे हैं, तो कहीं न कहीं दोनों के बीच चल रही वार्ता में कमी है। डीन को सुनना तो आप भूल ही जाइए। आप ऐसे वक्त में उन्हें डिस्टर्ब कर रहे हैं, जब वे आपकी शंकाओं के समाधान को लेकर बात कर रहे हैं। ऐसा करके आप एक आपसी मेलजोल का बेहतर मौका गंवा बैठते हैं। इस तरह की गतिविधियां भले ही आपको मल्टीटास्किंग बना सकती हैं, लेकिन आप एक अच्छे श्रोता कभी नहीं बन सकते। किसी से मिलते या सुनते समय वर्तमान में रहें। उस दौरान दूसरे कामों पर बिल्कुल भी ध्यान न दें।
किसी भी तरह की राय बनाने से परहेज करें (Kisi bhi tarah ki raay banane se parhej karen)
अगर आप किसी व्यक्ति की बात सुन रहे हैं, तो उसे पूरी ईमानदारी के साथ सुनें। मन ही मन अपने भीतर किसी तरह की राय बनाने में न लग जाएं। जब वे आपसे बात कर रहे हों, तो आप उन्हें जज न करें। जब आप किसी को जज करने लगते हैं, तो सुनना छोड़ कर आप कुछ और रहे होते हैं। ऐसा करके आप हर पल एक नियमित अंतराल पर वक्ता के बातचीत के दरम्यान व्यवधान डालना शुरू कर देते हैं। इससे परेशान होकर आखिरकार वक्ता खुद ही बोलना बंद कर सकता है। अपनी बात रखने के लिए हमेशा अपनी बारी की आने प्रतीक्षा करें। पीटरसन पार्टनर्स के संस्थापक की तरह जोएल पीटरसन कहते हैं “जब आप अपने एजेंडे के साथ किसी वक्ता को सुनते हैं, तो उसे सुनने में ध्यान लगाने की बजाय मन ही मन एक राय बनाना शुरू कर देते हैं। अगर आप जो कुछ भी बताया जा रहा है उस पर अपने विचार प्रकट करने लग जाते हैं, तो वक्ता अपनी बात रखना ही बंद कर देता है। जब आप किसी चर्चा से बखूबी जुड़े रहते हैं और उसे अपना लेते हैं, तो आप सच में वहीं सुनते हैं जो वक्ता बोल रहा होता है। इससे आप पर वक्ता का भी भरोसा पैदा हो पाता है। अपने एक्शन और डिस्ट्रैक्शन पर ध्यान दें। क्योंकि, यह वक्ता को आपके नकारात्मक संकेतों की तरफ इशारा करता है। अगर आप बातचीत में दिलचस्पी लेना बंद कर देते हैं, तो वक्ता भी कुछ वैसा ही महसूस करेगा।
सुनने की क्षमता बढ़ने वाली गतिविधियों का अभ्यास करें (Sunne ki chamta badhane wali gatividhiyon ka abhyas karen)
अक्सर सुनने की कला को कम तरजीह दी जाती है। अच्छी तरह सुनने के लिए एक सतत अभ्यास की ज़रूरत पड़ती है। इसके लिए सबसे बेहतर तरीका यह है कि आप कुछ पल के लिए मौन धारण करने का अभ्यास करें। इसके ठीक उलट कोलाहल भी आपको एक बेहतर श्रोता बनाने में मददगार साबित हो सकता है। लेखक जूलियन ट्रेजर का मानना है “जब आप कई तरह की आवाज़ों के बीच घिरे हों, तो आप उन आवाज़ों को सुनने पर ध्यान लगाएं, जिन्हें आप सुन सकते हैं। अलग-अलग दिशाओं से आ रही आवाज़ों के माध्यम की गिनती करें और अपने दिलो-दिमाग को उन दिशाओं की तरफ ले जाएं, जिधर से ये आ रही हैं। इसके साथ ही इसकी तीव्रता पर भी ध्यान दें। इस तरह की एक्टिविटी आपके सुनने की क्षमता में सुधार लाने वाली सबसे बेहतरीन तरीका हो सकता है। इस एक्टिविटी की प्रैक्टिस आप सुबह में टहलने के दौरान भी कर सकते हैं। आप चाहें तो सुबह में अपने आस-पास चहकने वाले चिड़ियों की भी गिनती कर सकते हैं। साथ ही आपके रास्ते से गुजरने वाले लोगों की गिनती भी कर सकते हैं। इस तरह की गतिविधियां आपको एक बेहतर श्रोता बनाने में काफी मदद करेंगी।
सुनने का कौशल विकसित करने के साथ-साथ एक बेहतर श्रोता को दूसरे लोगों की भावनाओं को भी बखूबी समझने की ज़रूरत पड़ती है। दूसरे के विचारों व मतों को समझने व जानने के लिए आप खुद को आगे बढ़ाएं। इसमें किसी तरह का पूर्वाग्रह भी होनी चाहिए। अगर आप ऐसा करते हैं, तो आप न सिर्फ बेहतर श्रोता बनेंगे, बल्कि सामाजिक तौर पर अधिक संवेदनशील इंसान भी बनेंगे।