मानवता

दुआएं लेनी हैं, तो मानवता के साथ फर्ज़ निभाओ

कभी-कभी हमारा धार्मिक विश्वास भी ऐसे सिद्धांतों से आता है जिन्हें हम पवित्र मानते हैं। जबकि धर्मों के आध्यात्मिक पहलू मूल्यों, नैतिकता और अच्छाई में ही है।

सलीम मिर्जा ना तो कोई बड़ी शख्सियत हैं और ना ही कोई नेता और एक्टर। वो एक आम इंसान हैं। ठीक उसी प्रकार जैसे आप और मैं हूं। सलीम पेशे से ड्राइवर हैं। टेररिस्ट ने अनंतनाग में उनकी बस को टक्कर मार दी थी, उस दौरान सलीम अपने बस में अमरनाथ तीर्थयात्रियों को बालटाल से जम्मू लेकर जा रहे थे। गुजरात के रहने वाले इस बस ड्राइवर ने हमले के बाद 50 से ज्यादा यात्रियों की जान बचाई थी।

साथियों व अन्य यात्रियों को बचाने के लिए सलीम मिर्जा की मानवता को देश-दुनियाभर में सराहा गया। क्योंकि उन्होंने अपनी जान की परवाह ना करते हुए भी यात्रियों की जान बचाई। मिर्जा ने यह सब कुछ मानवता के लिए किया। इससे यह बात साफ जाहिर होती है कि जब भी कोई खतरे में होता है तो मानवता के खातिर लोग धर्म, जाति सहित अन्य तमाम बातों को परे रख दूसरे की जान बचाने पर ध्यान देते हैं। मानवता ही सबसे बड़ी चीज़ है जो लोगों में एक दूसरे के प्रति सम्मान, प्यार की भावना जगाती है। वहीं जब मौत सामने होती है तो बाकी की बातें पीछे छूट जाती है, याद रहता है तो सिर्फ एक बात, मुसीबत में पड़े लोगों की जान बचाना। आज के समाज में लोगों में नकारात्मकता तेज़ी से बढ़ी है, ऐसे में मिर्जा की कहानी मानवता की सीख देती है। निश्चित रूप से ऐसा काम आम लोगों में सद्भावना जगाता है। बैंगलोर में अग्नि मंदिर के प्रधान पुजारी फरदून करकरिया कहते हैं, “कोई भी धर्म स्वभाव से हिंसक नहीं होता। कुछ लोग अपने निजी फायदों के लिए धार्मिक शिक्षा की गलत व्याख्या करते हैं और अपने अनैतिक विचारों से समाज को गंदा करते हैं। ‘जियो और जीने दो’ के सिद्धांत को अमल में लाकर हम दुनिया को एक बेहतर जगह बना सकते हैं।”

कोई भी इस सत्य को नहीं नकार सकते कि धर्मों को कुछ लोग अक्सर असहिष्णुता और हिंसा के लिए आधार बना लेते हैं। यह कहना काफी मुश्किल है कि ऐसी नफरत कहां से पैदा होती है क्योंकि कोई भी धार्मिक ग्रंथ या आध्यात्मिक विश्वास धार्मिक मान्यताओं में अंतर के लिए घृणा और नफरत करने को प्रोत्साहित नहीं करते हैं।

धार्मिक असहिष्णुता की जड़ों की व्याख्या करने के प्रयास में, ‘द इंटरनेशनल सोसाइटी फॉर कृष्णा कॉन्शियसनेस’ (इस्कॉन) के एचएच राधानाथ स्वामी अपनी पुस्तक ‘जर्नी विदिन’ में लिखते हैं : “यह मायने रखता है कि आपके विश्वास की प्रणाली या धर्म की रीति आपको इस बात के लिए कितना प्रेरित या मार्गदर्शित करती है कि आप एक ऐसे व्यक्ति के रूप में आगे बढ़े जो प्रभु के निस्वार्थ प्रेम को जान पाए। यह खेद की बात है कि वह जो निराकार, सर्वशक्तिमान हैं, वह जिसे हर धर्म के लोगों ने सबसे बड़ा माना है और उन्ही लोगों का यह भी मानना है कि वह निराकार उनके धर्म और धर्मावलम्बियों के प्रति सहानुभूति रखता है व अन्य धर्मों के लोगों के प्रति तुच्छ भावना रखता है। यह जो प्रभु की प्रकृति को लेकर गलत धारणा है, यह हर धर्म की अपनी बनाई हुई है और यही गलत धारणा मेरे अंदर भी है।”

हकीकत तो ये है कि अधिकतर लोगों को धर्म का सही अर्थ भी नहीं पता। कभी-कभी, हमारा धार्मिक विश्वास भी ऐसे सिद्धांतों से उत्पन्न होता हैं, जिन्हें हम पवित्र मानते हैं। जबकि धर्मों के आध्यात्मिक पहलू उनके मूल्यों, नैतिकता व अच्छाई में है। कुछ समय पहले, पेजावर मठ के विश्वेश तीर्था स्वामी ने उडुपि में स्थित श्रीकृष्ण मठ परिसर में सद्भाव बैठक कर मुस्लिम समुदाय को अपना रमजान उपवास तोड़ने के लिए आमंत्रित किया था। स्वामी जी ने इस आयोजन से सांप्रदायिक सद्भावना को बढ़ाने का प्रयास किया था। दुर्भाग्यवश, उनका यह नेक इरादा धार्मिक कट्टरपंथियों को रास नहीं आया। धर्म और संस्कृति के प्रति स्वामी जी के रुख पर सवाल उठाया गया, उन्हें समाज में ‘असंतोष पैदा’ करने के लिए दोषी ठहराया था। संभवतः यह एक ऐसी घटना थी, जिसमें आध्यात्मिकता को धार्मिकता के प्रकोप का सामना करना पड़ा था।

धर्म के बारे में तर्कहीन पूर्वाग्रहों व गलत धारणाओं से इस तरह की असहिष्णुता पैदा हो सकती है। प्रेम पॉल निनान, जो कि एक मीडिया प्रोफेशनल है, कहते हैं, “सभी धर्मों का इरादा एक ही है, सही मूल्यों को स्थापित करना व प्रत्येक जीव के मौलिक अधिकारों का सम्मान करना। जो लोग धर्म को अच्छी तरह से नहीं जानतें हैं, शायद वे लोग ही असहिष्णु हैं।”

अफसोस की बात है कि इस असहिष्णुता ने कलह और घृणा को जन्म दिया है। लोगों के खान-पान, रहन-सहन और धर्म के बारे में विचारों पर सवाल उठाना मानव जाति के लिए अच्छा नहीं है। उदाहरण के लिए लोगों को उनके खान-पान के लिए हमला करना, निजी जीवन में अपनी पसंद व सोच दूसरे धर्मों पर थोपने के लिए लोगों पर हमला करना व धर्म के नाम पर जीव हत्या, ये सभी घटनाएं मनुष्य के रूप में हमारी विफलताओं की ओर इशारा करते हैं। हालांकि, यह देखकर खुशी भी होती है कि वास्तविकता में हर कोई अमानवीय नहीं हैं। हाल ही में भारत और पाकिस्तान के राष्ट्रगानों का एक मिश्रण, जो कि दोनों देशों के गायकों द्वारा गाया गया था, सोशल मीडिया पर काफी वायरल हुआ था। सलीम मिर्ज़ा व श्री विश्वेश तीर्थ स्वामी की तरह ही केरल के मलप्पुरम जिले में श्री लक्ष्मी नरसिम्हा मूर्ति विष्णु मंदिर के कलाकारों और ट्रस्टियों ने मानवता को सबसे ऊपर रखने के लिए धार्मिक बाधाओं को नज़रअंदाज कर मंदिर परिसर में मुस्लिम समुदाय के लिए इफ्तार का आयोजन किया था। उम्मीद है कि उनका अनुसरण करते हुए हम सब लोग भी समाज के लिए कुछ अच्छा करेंगे। मानवता को आगे बढ़ाएंगे।

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