पैदा होने के बाद एक बच्चे को बोलना सीखने में लगभग दो साल का वक्त लगता है। वहीं, ये सीखने में इंसान का पूरा जीवन बीत जाता है कि उसे क्या नहीं बोलना है। कहते हैं शरीर में जीभ ही एक ऐसा अंग है, जिसमें हड्डियां नहीं होती है, लेकिन यह इंसान की हड्डियां ज़रूर तुड़वा सकती है।
हर इंसान चाहता है कि उसे कोई सुने, बच्चे चाहते हैं कि मम्मी-पापा उनकी बातें सुनें, तो परिवार के लोग चाहते हैं कि बच्चे उनकी बातें सुनें। टीचर चाहते हैं कि स्टूडेंट्स उनकी बातें सुनें, तो स्टूडेंट्स चाहते हैं कि टीचर उनकी बातें सुनें। लेकिन, कोई खुद किसी की सुनने के लिए तैयार नहीं है। सभी सिर्फ अपनी सुनाना चाहते हैं। किसी को भी चुप रहना पसंद ही नहीं है, लेकिन कई अवसरों पर चुप रहना चाहिए।
चुप या मौन रहने के कुछ नुकसान तो ज़रूर हैं, मगर फायदे कई हैं। कुछ ऐसे अवसर होते हैं, जहां चुप रहना चाहिए और कुछ ऐसे अवसर होते हैं जहां ज़रूर बोलना चाहिए। तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको बताते हैं कि चुप रहने से ज़िंदगी आसान हो सकती है या फिर नहीं।
हम सभी ने कभी ने कभी अपने बड़ों से एक कहावत तो ज़रूर सुनी होगी कि “एक चुप सौ को हराए, एक चुप सौ को सुख दे जाए।” इसलिए हमें कोशिश करनी चाहिए कि हम चुप रहना सीखें। हालांकि, गीता में कहा गया है कि “जहां पाप का बल बढ़ रहा हो, जहां छल-कपट हो रहा हो वहां मौन रहने से अधिक बड़ा अपराध और कुछ भी नहीं है।” लेकिन, इसके अलावा चुप रहने के फायदे कई हैं और यह आपको कई मुसीबतों और मुश्किल स्थितियों से बचा सकता है।
चुप रहने के फायदे (Chup rahane ke fayde)
चुप रहने से बढ़ती है अहमियत
जब आप चुप होकर किसी की बात को सुनते हैं, तो वह आपकी अहमियत को समझता है। लेकिन, अगर आप ऐसा नहीं करते हैं, तो आपका महत्व उसकी नज़रों में कम हो जाता है। आज की भाग-दौड़ वाली ज़िंदगी में कोई किसी की नहीं सुनता है और आप अगर आईकॉन्टेक्ट बनाकर किसी की बातें ध्यान से सुनते हैं तो आपका महत्व उनके सामने काफी बढ़ जाता है।
आपकी बातों की वैल्यू होती है
जब आप काफी समय तक चुप रहते हैं और उसके बाद आप बोलना शुरू करते हैं, तो आपकी बातों में वज़न होता है। साथ ही आपकी बातों को ध्यान से सुना जाता है। इसलिए ज़्यादा नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि आप उससे ऑर्डिनरी लगते हैं। इसलिए कम बोलना और ज़्यादा सुनना चाहिए।
सामने वाले को समझने में होती है आसानी
जब आप कम बोलते हैं, तो आपके पास समय होता है लोगों को समझने का। इसका फायदा यह होता है कि आप कुछ भी बोलने से पहले यह समझ लेते हैं कि क्या बोलना चाहिए और कितना बोलना चाहिए। आप जब किसी को ध्यान से सुनते हैं, तो उसके शब्दों को समझ पाते हैं और वह जो बोल रहा है, उसके पीछे उसके दिमाग में क्या चल रहा है, इस सब का अंदाज़ा आपको आसानी से हो जाता है।
आप वही बोलते हैं जो ज़रूरी होता है
आप जब चुप रह कर किसी को सुनते हैं, तो आप गलत नहीं अच्छे लगते हैं। वहीं, अगर आप ज़्यादा बोलते हैं, तो मुंह से कुछ न कुछ ऐसा निकल ही जाता है, जो आप नहीं बोलना चाहते हैं। इसलिए अगर कोई बात ज़रूरी नहीं है, तो उसे नहीं बोला जाना चाहिए।
आपको कब चुप रहना चाहिए? (Apko kab chup rahna chahiye?)
जब कोई किसी की बुराई कर रहा हो, तो उस समय चुप रहना चाहिए। उस समय सिर्फ सुनना चाहिए न कि अपनी राय व्यक्त करनी चाहिए। आज जो किसी एक की बुराई कर रहा है, वो कल किसी और की भी बुराई कर सकता है।
वहीं, आपको अगर किसी विषय के बारे में पूरी जानकारी नहीं है, तो नहीं बोलना चाहिए, क्योंकि अधूरा ज्ञान आपको गलत साबित करवा सकता है।
इसके अलावा जब कोई आपकी भावना को नहीं समझे, तो उस समय चुप रहना चाहिए, ऐसा नहीं करने पर आप हंसी का पात्र बन सकते हैं।
जब आप पर कोई गुस्सा कर रहा है या फिर आपके प्रति नाराज़गी व्यक्त कर रहा हो, तो उस समय चुप रहना चाहिए। अगर ऐसे समय पर आप चुप नहीं रहते हैं, तो इससे परेशानी और बढ़ सकती है।
कोई भी इंसान जब किसी भी बात को लेकर दुख व्यक्त कर रहा हो या फिर अपने दुख के बारे में बता रहा हो, तो उस समय चुप रहना चाहिए और सामने वाले को बोलने देना चाहिए। इससे सामने वाले इंसान को संतुष्टि मिलती है।
चुप रहना है एक प्रकार का मेडिटेशन (Chup rahna hai ek prakar ka meditation)
किसी को ध्यान से सुनना या फिर चुप रहना आसान नहीं है। ये सब नहीं कर पाते। चुप रहना एक प्रकार का मेडिटेशन है, जो काफी प्रयास करने के बाद ही कोई कर पाता है। इसके लिए खुद को पॉजिटिव रखने के साथ ही समझदार होने की भी ज़रूरत होती है।
चुप और मौन रहते हुए किसी को ध्यान से सुनना एक अच्छे और समझदार इंसान की सबसे बड़ी खासियत होती है। इसलिए कम बोलें और लोगों को ज़्यादा से ज़्यादा सुनें। इससे आपका मानसिक विकास भी होगा और आपकी अहमियत भी बनी रहेगी। इसी तरह के ज्ञानवर्द्धक आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़ें रहें।