बुज़ुर्गों की ज़िंदगी न हो जाए सूनी: क्या करें, क्या ना करें?

हमारे बचपन की चंचलता को हमारे मां-बाप ने संभाल लिया था, पर क्या हम उनके बुढ़ापे की चंचलता को संभाल पा रहे हैं? क्या हम अपने बुजुर्गों के बचपने को समझ पा रहे हैं?

यह दुनिया गोल है, हम उम्र के जिस पड़ाव से चलना शुरू करते हैं, ज़िंदगी हमें फिर उसी मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है। एक उम्र थी जब हमारा हाथ पकड़ कर, मां-बाप हमें चलना सिखाते थे, और एक आज है जब उन्हें चलने के लिए हमारे सहारे की ज़रूरत पड़ जाती है। 

जब हम छोटे थे, बोल नहीं पाते थे, तब बोलने की कोशिश में न जाने कितनी बार एक ही बात को कह-कहकर, मम्मी-पापा को परेशान कर देते थे, पर वो लोग हर बार बड़े प्यार से हमारी बात समझने की कोशिश करते थे। अब जब हम समझदार और बड़े हो गये हैं, तब अगर मां-बाप किसी बात को दो बार भी कह दें, तो हम बुरी तरह गुस्से में आ जाते हैं, जिससे उनके मन में गहरी उदासी छा जाती है। 

मैंने कहीं सुना है कि बढ़ती उम्र में व्यक्ति फिर से बच्चों जैसा हो जाता है। उसका मन बच्चे के मन की तरह चंचल हो जाता है और सुनने-समझने में कमी आ जाती है। हमारे बचपन की चंचलता को हमारे मां-बाप ने संभाल लिया था, पर क्या हम उनके बुढ़ापे की चंचलता को संभाल पा रहे हैं? क्या हम अपने बुज़ुर्गों के बचपने को समझ पा रहे हैं? क्या हम उनके बुढ़ापे का अकेलापन दूर कर पा रहें हैं? कहीं ऐसा तो नहीं कि अब तक हमारा इस बात पर ध्यान ही नहीं था। अगर नहीं, तो फिर चलिए उनकी तरफ ध्यान देते हैं। हम जाने-अनजाने में अपने बुज़ुर्गों की ज़रूरतों को अब तक नज़रंदाज़ करते आए हैं, तो इस वरिष्ठ नागरिक दिवस (Senior Citizen Day) पर उनकी ज़िंदगी को सूनी होने से रोक लेते हैं।

बुज़ुर्गों को समर्पित वरिष्ठ नागरिक दिवस (Buzurgon ko samarpit Varishth Nagarik Divas) 

वरिष्ठ नागरिक दिवस या सिनियर सिटिजन डे बुज़ुर्गों के सम्मान में मनाया जाने वाला एक दिन है, जब हम अपने घर के बुज़ुर्गों की अहमियत और ज़रूरतों की तरफ ध्यान देने के लिए प्रेरित होते हैं। हम अपनी समझदारी के आगे, उनको कम आंकने लगते हैं, जिन्होंने हमें समझदारी सिखाई।

वरिष्ठ नागरिक दिवस हमारी ज़िंदगी में उनकी अहमियत को फिर से ज़िंदा करने का एक दिन है ताकि बढ़ती उम्र के चलते वो लोग अपना अस्तित्व न खो बैठें।

कब है वरिष्ठ नागरिक दिवस? (Kab hai Varishth Nagarik Divas?)

वरिष्ठ नागरिक दिवस सबसे पहले 1991 में मनाया गया था। इसको मनाने के पीछे का मकसद सीनियर सिटीजंस को उनके महत्व के बारे में बताना है। हर साल 21 अगस्त को वरिष्ठ नागरिक दिवस मनाया जाता है। 

उम्र के इस पड़ाव पर उनके साथी बनें (Umra ke is padav par unke sathi banein)

हम बड़े हो गए तो क्या हुआ, हमें अपने बुज़ुर्गों की ज़रूरत तो हमेशा रहेगी। आइए जानते हैं कि ऐसा क्या करें कि उनकी ज़िंदगी में खुशियां (Happiness) भर जाएं और वो अपने बुढ़ापे में अकेलापन महसूस न करें। 

कुछ इस तरह होगा बुज़ुर्गों का अकेलापन दूर: 

उनकी राय लें 

बच्चे अक्सर बड़े होने के बाद, खुद को इतना समझदार मानने लगते हैं कि अपने बड़े से बड़े फैसलों में बुज़ुर्गों की राय लेना भी ज़रूरी नहीं समझते। मैं मानती हूं कि हम सब अपने फैसले लेने के लिए स्वतंत्र हैं, पर हमारे बुज़ुर्ग हमारे ऐसे व्यवहार से खुद को हमारे लिए गैर-ज़रूरी समझने लगते हैं, उन्हें लगता है कि हमें उनकी कोई ज़रूरत नहीं है। इसलिए फिर बाद में चाहे आपको अपने मन की ही क्यों न करनी हो, पर अपने बुज़ुर्गों से अपने ज़रूरी फैसलों पर राय ज़रूर लें, जिससे कि उन्हें आपकी ज़िंदगी में खास होने का एहसास होता रहे।

उनकी ज़रूरतों पर ध्यान दें 

मैं मानती हूं कि हम सब अपने-अपने काम में इतना बिजी रहते हैं कि हमें किसी दूसरे काम के लिए वक्त ही नहीं मिलता, और ऐसे में हमारे घर के बुज़ुर्ग रोज़ अपनी कोई दवाई या कोई सामान लाने के लिए कहते हैं और हम रोज़ ही लाना भूल जाते हैं। यह क्रम बहुत दिनों तक चलता रहता है, धीरे-धीरे वो लोग भी हमें याद दिलाना बंद कर देते हैं, और हमें भी ध्यान नहीं आता। ऐसे में वो लोग सबसे ज़्यादा अकेलापन महसूस करते हैं, उन्हें लगता है कि हम उनकी तरफ ध्यान नहीं देते। इसलिए अपने काम से वक्त निकाल कर अपने बुज़ुर्गों की ज़रूरत पर ध्यान देना ज़रूरी हो जाता है।

उनसे बात करें 

किसी को भी उसकी अहमियत समझाने और उस व्यक्ति को समझने के लिए, उससे बात करना बहुत ज़रूरी होता है। इसलिए अपनी व्यस्त ज़िंदगी में से थोड़ा सा वक्त निकाल कर, उनसे बातें करें। उनकी सुनें, खुद की कहें, दिल खोल कर बातें करें और साथ में हंसे, जिससे उन्हें यह एहसास होगा कि आप उनकी बहुत परवाह करते हैं, और वो अकेले नहीं हैं, आप उनके साथ हैं।

कहीं ऐसा न हो कि बुज़ुर्ग हो जाएं अकेले (Kahin aisa na ho ki buzurg ho jayein akele)

किसी भी व्यक्ति को अकेलापन महसूस तब होता है, जब उसके करीबी उसकी तरफ ध्यान न दें। अगर आप चाहते हैं कि आपके बुजुर्ग खुद को तन्हा न समझें, तो ये चीज़ें करने से बचें।

बुज़ुर्गों के साथ इस तरह कभी न आएं पेश:

उनको अनसुना करना 

बहुत बार हम अपने ही आप में इतने व्यस्त हो जाते हैं कि इस बात पर ध्यान ही नहीं देते कि हमारे बुजुर्ग हमसे कोई बात कह रहे हैं। हमें उनकी बातें अक्सर बेमतलब की लगती हैं, और हम उनपर ध्यान नहीं देते। जबकि वे बातें उन लोगों के लिए बहुत ज़रूरी होती हैं। ऐसे में हमारा ध्यान न देना उन्हें महसूस कराता है कि हम उनकी बातों और भावनाओं को लेकर बेपरवाह हैं, और हमें उनकी ज़रूरत नहीं है।

अपनी खुशियों से उन्हें अलग करना

बचपन से हमारे हर काम जिन्होंने संभाले हैं, आज बड़े होकर हम उन्हें ही अपनी खुशियों में शामिल होने लायक नहीं समझते।‌ हम समझदार हो गये हैं और हम अपने सारे काम खुद कर सकते हैं, पर फिर भी हमें अपने बुज़ुर्गों को कुछ काम सौंप देने चाहिए। ताकि उन्हें अपनी अहमियत और ज़रुरत का एहसास होता रहे।

हम इन कुछ बातों का ध्यान रखकर, और कुछ बातों को करने से बचकर, अपने बुजुर्गों को अकेले होने से बचा सकते हैं। तो चलिए इस वरिष्ठ नागरिक दिवस पर उन्हें खास होने का एहसास कराएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

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