अपूर्णता से पूर्णता की ओर जाने का सही रास्ता और तरीका

ये दुनिया बहुत-सी गलतियों और खामियों से भरी पड़ी है। यहां परफेक्ट जैसा कुछ नहीं होता। हम सब कहीं-न-कहीं,किसी-न-किसी चीज में नाकाम होते ही हैं। इस दुनिया में सबको सबकुछ हासिल नहीं होता। फिर भी हम में से बहुत से लोग अपने जीवन में पूर्णता के लिए कोशिश करते हैं।

कहते हैं इंसान गलतियों का पुतला है। दुनिया में कोई भी शख्स ऐसा नहीं है, जिसने अपने जीवन में कोई भूल न की हो, जिसमें कोई कमी न हो और जो सर्वगुण संपन्न हो। ये दुनिया बहुत-सी गलतियों और खामियों से भरी पड़ी है। यहां परफेक्ट जैसा कुछ नहीं होता। हम सब कहीं-न-कहीं, किसी-न-किसी चीज़ में नाकाम होते ही हैं। इस दुनिया में सबको सबकुछ हासिल नहीं होता। फिर भी हम में से बहुत से लोग अपने जीवन में पूर्णता के लिए कोशिश करते हैं। हमारा लक्ष्य बढ़िया नौकरी, परिवार, शरीर, घर, बच्चे, बढ़िया जगह घूमना और बुढ़ापे के लिए सेविंग करना होता है। पूर्णता के लक्ष्य में, हम सोचते हैं कि हम ज़्यादा खुश रहेंगे और दूसरों को ज़्यादा पसंद आएंगे। हालांकि, पूर्णता की खोज में, हम अक्सर अपने पहले से ही तनाव भरे जीवन में और भी चिंता और दबाव जोड़ लेते हैं।

मगर खुद को अपूर्ण, फिर भी योग्य, प्यारा और मूल्यवान स्वीकार करना सीखकर, हम अपने ऊपर से कुछ दबाव हटा सकते हैं और जीवन में जहां हैं, उसका आनंद ले सकते हैं। अपूर्णताओं को स्वीकार करना ही तो अपूर्णता से पूर्णता की ओर जाने का रास्ता है। अपनी कमियों को पहचानें और उसे अपना लें, अगर दुख है तो सुख आने का इंतज़ार करें। हमें जो मिला है उसमें खुश रहना सीखना है, और जो मिला नहीं उसको याद करके दुखी नहीं होना है। इसी तरह से हम अपूर्णता से पूर्णता की राह में आगे बढ़ सकते हैं।

क्या है पूर्णता? (Kya hai purnata?)

जीवन तुलनाओं से भरा है। हम ऐसी मशहूर हस्तियों को देखते हैं, जिनके पास वह सब कुछ है जो हम चाहते हैं। सोशल मीडिया पर हमारे मित्र हमेशा ऐसे दिखते हैं, जैसे वे हमसे कहीं अधिक सफल, आकर्षक या दिलचस्प हैं। ऐसा इसलिए होता है क्योंकि सोशल मीडिया पर हर व्यक्ति खुद को परफेक्ट दिखाने पर तुला रहता है। हम ऐसे लोगों के बारे में सुनते हैं जो जल्दी स्कूल ख़त्म कर लेते हैं, किसी नामी कंपनी में काम करते हैं, या अपना खुद का बड़ा-सा व्यवसाय शुरू करते हैं। हालांकि, दूसरों से अपनी तुलना करने में हम अक्सर चूक जाते हैं। हम उनकी सफलताओं से अपनी सफलताओं की तुलना करते तो है, पर अपनी सफलता को सफलता नहीं मानते। हम पूर्णता का असली मतलब दूसरों के पास दिखती चमक-दमक को मान लेते हैं, पर पूर्णता ये नहीं है। पूर्णता का मतलब है जो हमारे पास है, उसी में खुशी ढूंढ कर उसे सच्चे दिल से अपना लेना।

क्या है अपूर्णता? (Kya hai apurnata?)

हम सामान्य लोग हैं, कुछ भी हासिल हो जाए तो खुशी से पागल हो जाते हैं और जब कोई छोटी-सी चीज़ भी न मिले तो दुखों से घिर जाते हैं। हमारे लिए अपूर्णता का मतलब है, किसी चीज़ की कमी, फिर चाहे वो चीज़ हमें उसके छोटे रूप में उपलब्ध क्यों न हो, हम उसे अपनी अपूर्णता ही मानते हैं। जैसे – साईकिल चलाने वाला व्यक्ति मोटरसाइकिल न होने पर खुद को अपूर्ण मानता है और जिसके पास मोटरसाइकिल है वो कार न होने पर खुद को अपूर्ण महसूस करता है।

हम हमेशा दूसरे से ज़्यादा को पूर्ण और दूसरों से कम को अपूर्ण मानते हैं। मगर, अपूर्णता ऐसे तो कुछ है ही नहीं। सोचिए, अगर हम खुद को, खुद से ऊपर वाले व्यक्ति से नहीं बल्कि निचले स्तर के व्यक्ति से मापे तो हम से ज़्यादा पूर्ण कुछ भी नहीं है, क्योंकि हमारे पास भले ही मोटरसाइकिल या कार नहीं है, पर वो साईकिल तो है जिसको पाने के लिए भी बहुत लोग तरस रहे हैं। खुद को पूर्ण मानने के लिए, सबसे पहले खुद से प्यार करें और अपनी सफलताओं पर ध्यान केंद्रित करें। आगे पढ़िए क्या है अपूर्णता से पूर्णता तक का सफर।

अपूर्णता से पूर्णता तक कैसे पहुंचें? (Apurnata se purnata tak kaise pahunchein?)

अपूर्णता से पूर्णता की ओर जाने का रास्ता इतना कठिन नहीं है, जितना कि हम सोचते हैं। परफेक्ट बनने के दबाव से छुटकारा पाना बहुत आसान है। ऐसा करके हम अपनी बहुत-सी उम्मीदों का वज़न कम होता महसूस कर सकते हैं। इससे हमें उन लक्ष्यों को प्राप्त करने में मदद मिल सकती है, जिन्हें हम वास्तव में हासिल करना चाहते हैं, न कि जिन्हें हम महसूस करते हैं कि हमें हासिल करना चाहिए। इसके अलावा, जीवन के हर मौसम में खुद को स्वीकार करना और गले लगाना, हमें अपने दिन-प्रतिदिन के अनुभवों का और भी ज़्यादा लुत्फ उठाने में मदद करता है। हमेशा भविष्य पर ध्यान केंद्रित करने और अपने लक्ष्यों को प्राप्त करने तक, अपनी खुशियों को टालने की बजाय, हम आज में संतुष्ट और पूर्ण होने के लिए स्वतंत्र हैं।

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