करते हैं फरमाइशें पूरी ये सबकी
और अपनी ज़रूरतों का ज़िक्र तक नहीं करते,
जी हां ये लड़के ही हैं जनाब , जो उठाए रखते हैं
ज़िम्मेदारियां कंधों पर, लेकिन उफ्फ तक नहीं करते।
पुरुषों की कहानियां कहती ये दो लाइनें आपको उन हकीकतों से रूबरू करवाती हैं, जो पुरुषों की सच्चाई है। तो इन पंक्तियों से एक सवाल उठता है कि ये पुरुष आखिरकार है कौन? महिलाओं को दबाने, सताने, प्रताड़ित करने वाला या फिर पिता, भाई, पति, प्रेमी, बेटे, दोस्त और सहकर्मी या फिर वह जो अपना है, जिनसे प्यार करते हैं, जिनके साथ बेहतरी और खुशी चाहते हैं। इनसे हम बराबरी भी चाहते हैं, मुहब्बत और दोस्ती भी चाहते हैं।
समाज में पुरुषों का भी उतना ही महत्व है, जितना महिलाओं का। दोनों ही एक-दूसरे के पूरक हैं। इसी को देखते हुए 19 नवंबर को इंटरनेशल पुरुष दिवष मनाया जाता है। तो इस अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस या मेंस डे के अवसर पर सोलवेदा हिंदी आपको इसका इतिहास बताने के साथ ही पुरुष होना आसान है कि नहीं, यह बताने का प्रयास करेगा।
अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस का इतिहास (Antarrashtriya Purush divas ka itihaas)
हर साल 19 नवंबर को अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस (World Men’s Day) मनाया जाता है। भारत में पहली बार 19 नवंबर 2007 को इस दिवस को मनाया गया था। साल 1999 में त्रिनिदाद और टोबैगो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर डॉ जेरोम टीलकसिंग ने अपने पिता के जन्मदिन पर 19 नवंबर को पुरुष दिवस मनया था। साल 2007 के 19 नवंबर से हर साल आधिकारिक तौर पर इस दिवस को मनाया जाता है। इसके बाद से हर साल इस दिवस पर अलग-अलग जगहों पर कार्यक्रमों का आयोजन किया जाता है। अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस मनाने का मुख्य उद्देश्य पूरी दुनिया में पुरुषों के स्वास्थ्य और कल्याण को लेकर सुधार लाना है।
मर्द को भी होता है दर्द (Mard ko bhi hota hai dard)
हिंदी फिल्म का डायलॉग है मर्द को दर्द नहीं होता है, लेकिन हकीकत में ऐसा नहीं है। मर्द को भी दर्द होता है। पुरुषों में भी इमोशन होता है, प्यार होता है और उन्हें भी मुश्किल होती है। पुरुषों की भी अपनी समस्या है। भारत में पुरुषों के साथ एक चीज़ जोड़ दी गई है कि वो कठोर दिल के होते हैं, भावनाओं को नहीं समझते हैं और उनकी कोई भावना नहीं होती है। लेकिन, ऐसा नहीं है। हकीकत तो ये है कि पुरुष भी बहुत ही ज़्यादा इमोशनल होते हैं और उन्हें भी दुख होता है, बस उसे समझने की ज़रूरत होती है।
पुरुषों का काम करना है ज़रूरी (Purushon ka kaam karna hai zaruri)
लड़कों के जीवन का एक ही उद्देश्य होता है, नौकरी करना। बाहर जाकर पैसे कमाना और परिवार के सभी सदस्यों की ज़िम्मेदारी को पूरी करना। लड़के एक समय के बाद अपने खर्चे के लिए किसी पर भी निर्भर नहीं रह सकते हैं। उन्हें खुद ही सब करना पड़ता है। वह चाहकर भी घर में नहीं बैठ सकते, क्योंकि कमाना उनका फर्ज है। लड़के बचपन के बाद, सिर्फ ज़िम्मेदारियां उठाते रह जाते हैं, इसके कारण वे अपना जीवन पूरी तरह से जी नहीं पाते हैं।
पुरुष रो नहीं सकते (Purush ro nahi sakte)
दुनिया ने पुरुषों को ऐसा मजबूत बता दिया गया है कि वह कभी रो नहीं सकते हैं। कितना भी दुख हो, लेकिन पुरुष रो नहीं सकते । महिलाएं तो रोकर अपना दुख व्यक्त कर लेती हैं, लेकिन पुरुषों के पास ये विकल्प नहीं होता है। उन्हें तो सारे गम सीने में दबा के ही रखने पड़ते हैं। वह चाहकर भी आंखों में आंसू नहीं ला सकते। इस दुनिया में बेटा, पति और पिता कभी कमजोर नहीं पड़ सकते हैं, क्योंकि वे परिवार के ढाल की तरह होते हैं। उनका इमोशनल होना समाज को उनकी कमजोरी का प्रतीक लगता है।
अक्सर पुरुष बनते हैं मुजरिम (Aksar purush bante hain mujrim)
पुरषों के साथ समस्या है कि वह बिना गलतियों के भी सिर्फ इसलिए दोषी साबित हो जाते हैं, क्योंकि वे पुरुष हैं। अगर किसी परिवार में पति-पत्नी के बीच झगड़ा होता है, तो ज़्यादतर पुरुषों को ही गलत ठहराया जाता है। भारत में अभी भी कई ऐसे कानून हैं, जिसका बहुत ज़्यादा दुरुपयोग होता है और उसका शिकार बनता है पुरुष, वो भी बिनी किसी गलती के। न जाने कितने झूठे आरोपों में निर्दोष पुरुष आज भी पिस रहें हैं।
बेशक महिलाओं की ज़िंदगी काफी मुश्किलों से भरी हुईं हैं। उनपर जिम्मेदारियां पुरुषों से अधिक होती हैं। लेकिन, इसका मतलब ये बिल्कुल नहीं है कि पुरुषों की ज़िंदगी में कोई मुश्किलें नहीं होती और उन्हें किसी बात की परवाह नहीं होती।
इस अंतर्राष्ट्रीय पुरुष दिवस पर हमने आपको पुरुष दिवस का इतिहास तो बताया है, साथ ही यह भी बताने का प्रयास किया कि पुरुष होना भी आसान नहीं है। इसी तरह के और भी आर्टिकल पढ़ने के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।