इंशा बशीर का व्हीलचेयर से बास्केटबॉल खिलाड़ी बनने तक का सफर

हादसे के बाद इंशा बशीर को अपने खराब दिनों की जद से बाहर निकलने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। इसके बाद वह उस मुकाम तक पहुंच गई कि फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा।

महज 15 वर्ष की उम्र में दुर्घटना में दोनों पैर खोने के बाद भी कश्मीर की रहने वाली इस जिंदादिली युवती ने अपनी जिंदगी में कभी हार नहीं मानी। भले ही हादसे के बाद व्हीलचेयर उसके जीवन का एक अभिन्न हिस्सा बन गया। इसके बाद भी इंशा बशीर (Inshah Bashir) ने सपने देखना कभी नहीं छोड़ा। हालांकि, हादसे के बाद इंशा बशीर को अपने खराब दिनों की जद से बाहर निकलने के लिए लंबा संघर्ष करना पड़ा। इस संघर्ष के बाद वह उस मुकाम तक पहुंच गई कि फिर कभी पीछे मुड़कर नहीं देखा। अपनी इच्छाशक्ति के दम पर इंशा बशीर ने बचपन से ही बास्केटबॉल प्लेयर बनने के अपने ख्वाब को साकार किया। आज जम्मू-कश्मीर की पहली महिला बास्केटबॉल खिलाड़ी के तौर पर इंशा बशीर अपनी पहचान बना चुकी हैं। वह न सिर्फ अपने देश में, बल्कि दूसरे देशों में भी भारतीय बॉस्केटबॉल टीम की ओर से खेलती हैं। इंशा बशीर आज उन युवतियों के लिए नजीर हैं, जो अपने संघर्षों के सामने घुटने टेक देती हैं। ऐसी युवतियों को अक्सर वह सीख देती हैं कि अपनी विपरीत परिस्थिति से घबराएं नहीं, बल्कि उसका सामना करें। वे भी मेरी तरह खेल सकती हैं।

इस मुकाम तक पहुंचने में इंशा बशीर ने जो दूरी तय की है, वह वास्तव में इतना सरल नहीं था। शारीरिक और मानसिक रूप से टूट चुकी इंशा ने अपने परिवार, दोस्तों और प्रशिक्षकों की मदद से उस पीड़ा से उबरने के लिए लंबा संघर्ष किया। हादसे के बाद मन में बैठे डर, डिप्रेशन और आघात को बाहर निकालने के लिए भी खुद से ही लड़ाई लड़नी पड़ी।

लेकिन, जब इंशा बशीर फिजियोथेरेपी के लिए श्रीनगर (Srinagar) में शफकत पुनर्वास केंद्र पहुंची, तो वहां का माहौल देखकर उनकी जिंदगी की दिशा और दशा ही बदल गई। केंद्र में दिव्यांग लोगों को बास्केटबॉल खेलते देखा, तो वह हैरान हो गई। छह महीने तक चले फिजियोथेरेपी के दौरान उनकी मुलाकात कई लोगों से हुई, जो व्हीलचेयर बास्केटबॉल टीम के हिस्सा थे। वह भी उनके साथ जुड़ गई। शुरुआत में इंशा बशीर को काफी अजीब लगता था कि वह कैसे खेलेगी। लेकिन, एक बार उन्होंने खेलना शुरू किया, तो पीछे मुड़कर कभी नहीं देखी। उन्हें व्हीलचेयर बास्केटबॉल से बेहद लगाव हो गया। अपने सामने खड़ी परेशानियों से निजात पाने के लिए उन्हें काफी मेहनत भी करनी पड़ी।

पेश है सोलवेदा के साथ इंशा बशीर की बातचीत के अंश। इसमें उन्होंने अपनी जीवन यात्रा और इस मुकाम तक पहुंचने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा और युवाओं के लिए उनकी क्या राय है। इसके बारे में बखूबी चर्चा की हैं.

आप वीमेंस व्हीलचेयर बास्केटबॉल की मशहूर खिलाड़ी के साथ कश्मीरी महिलाओं के लिए मार्गदर्शक हैं। यह अचीवमेंट आपके लिए लिए कितनी अहमियत रखती है?

यह उपलब्धि वाकई मेरे लिए काफी अहमियत रखती है। व्हीलचेयर बास्केटबॉल से मुझे देश-विदेश में एक खास सम्मान मिला है। इसकी बदौलत आज मैं कई डिफरेंटली एबल्ड लोगों की मानसिकता बदलने के काबिल हूं। जिंदगी में तभी सफल हो सकते हैं, जब आप अपने सपनों को साकार करने के लिए कोशिश करते हैं। साथ ही खुद के अलावा दूसरों की खुशी का भी ख्याल रखते हैं। दूसरे के चेहरे पर मुस्कुराहट लाकर निश्चित रूप से आप भी अच्छा महसूस करेंगे।

आपकी उम्र बहुत कम है। इसके बावजूद ज़िंदगी में आने वाली परेशानियों का आपने कैसे मुकाबला किया। हमें बताएं? 

व्हीलचेयर मेरी जिंदगी का एक अभिन्न हिस्सा है। यह मानना मेरे जीवन का सबसे पहला चैलेंज रहा है। दूसरा हादसे के बाद दोबारा नए ढंग से खुद को मजबूत बनाना। तीसरी सबसे बड़ी चुनौती जम्मू कश्मीर में इंफ्रास्ट्रक्चर की कमी थी। यहां हम जैसे दिव्यांग लोगों के लिए अनुकूल भवन, पार्क और बास्केटबॉल कोर्ट की सुविधा नहीं है। चौथा चैलेंज हर विशेष श्रेणी के लोगों की तरह डिफरेंटली एबल्ड के लिए उचित माहौल का अभाव है। आप उस लड़की को जानते हैं जो कभी स्टूडेंट लाइफ को जी रही थी और ऐसे हालात बने कि अपने रूम के एक कोने में सिमट कर रह गई। उसे हर चीज के लिए दूसरे लोगों के ऊपर निर्भर रहना पड़ता था। इस चुनौती ने मुझे बुरी तरह प्रभावित किया। लेकिन, जैसे-जैसे समय गुजरता गया, मैं इस सच्चाई को गले लगाना सीख ली। अब मैं उन चीजों के बारे में ज्यादा विचार करती हूं, जो मुझे और बेहतर बनाने में सहायता कर सकते हैं।

आप नेशनल लेवल पर खेल चुकी हैं और स्पोर्ट्स विजिटर प्रोग्राम के लिए 2019 में अमेरिका का भी दौर किया था। आप किन-किन चीज़ों पर गर्व महसूस करती हैं?

चाहे वह डिस्ट्रिक्ट लेवल हो या स्टेट या नेशनल लेवल, जिस स्तर पर मैंने खेला वह मेरे लिए बहुत अहमियत रखता है। इसके बावजूद मेरी जिंदगी में सबसे गर्व करने वाला वह पल था, जब मुझे यूएस वाणिज्य दूतावास से अमेरिका के नॉर्थ कैरोलिना में आयोजित स्पोर्ट्स विजिटर प्रोग्राम 2019 में हिस्सा लेने के लिए आमंत्रण प्राप्त हुआ। भारत का प्रतिनिधित्व करना वाकई में मेरा ख्वाब था और अमेरिका में वह साकार हुआ। वह पल मेरे लिए किसी हसीन ख्वाब से कम नहीं था।

बास्केटबॉल गेम में फिजिकली फिट होना ज़रूरी है। क्या आपको दिव्यांगता की वजह से ऐसा महसूस हुआ कि अब मैं नहीं खेल सकती? 

हां, बिल्कुल। कभी-कभार मैं इस कदर हताश हो जाती थी कि लगता था कि अब मुझे छोड़ देना चाहिए। एक वक्त ऐसी स्थिति हो गई थी कि मैं एक रूम से दूसरे रूम में भी जाने में असमर्थ महसूस करती थी। लेकिन, समय के साथ-साथ मैंने खुद को मजबूत किया है। अब मैं डेली रूटीन की शुरुआत जिम से करती हूं। कभी-कभार खुद को इस तरह ट्रेंड करने के दौरान लगता था कि यह नामुमकिन है। लेकिन, मन में इस तरह का ख्याल लाना ठीक नहीं है। आज मैं जिस स्तर पर हूं, उसे देखकर बहुत अच्छा लगता है। अपनी अक्षमताओं को दरकिनार कर इस मुकाम तक पहुंची हूं। मैं बहुत खुश हूं कि मैंने अपने साहस को बरकार रखा। आज ऐसी आदत बन गई है कि यदि मैं एक दिन भी जिम नहीं जाती हूं, तो दिनभर कुछ अधूरा-अधूरा-सा लगता है। मैं अपने कोच की ओर से तय डेली रूटीन को हमेशा फॉलो करती हूं। साथ ही अपने डाइट प्लान का सख्ती से पालन करती हूं। इसके साथ-साथ मैं रोजाना बास्केटबॉल कोर्ट में प्रैक्टिस करती हूं।

कश्मीर में महिला एथलीट की संख्या ना के बराबर है। अपने सपने को पूरा करने में आपको किन-किन परेशानियों से जूझना पड़ा?

मुझे अपने सपने को साकार करने में बहुत सारी परेशानियां झेलनी पड़ी। चाहे वह एक लड़की होने के नाते हो, कश्मीरी के नाते हो, दिव्यांगता की वजह से हो या कश्मीर में पर्याप्त सुविधा की बात हो, हर मोर्चे पर परेशानियों का सामना करना पड़ा। लेकिन, आखिरकार यह आपकी सोच पर निर्भर करता है कि इन बाधाओं से कैसे पार पाना है। अक्सर हम लोग ऐसा जीवन जीना पंसद करते हैं, जो हार्ड फिजिकल चैलेंज के लिए हमें तैयार नहीं कर पाती हैं। जबकि, खेल में खिलाड़ियों को मेंटली और फिजिकली दोनों स्तर पर चुस्त-दुरुस्त और मजबूत रहने की जरूरत होती है। इस मामले में महिलाओं के लिए थोड़ी छूट दी है, ताकि वे ऐसा कर सकें। यदि सरकार भी खिलाड़ियों को पर्याप्त सुविधाएं मुहैया कराती है, तो ज्यादा से ज्यादा महिलाएं स्पोर्ट्स को अपना करियर बनाएंगी।

विशेष रूप से, कश्मीरी महिलाओं के लिए स्पोर्ट्स बिल्कुल ही नया फील्ड है। अगर हम लोग अन्य राज्यों से कश्मीर की तुलना करेंगे, तो पता चलेगा कि उन राज्यों में महिलाएं खेलकूद के क्षेत्र में बढ़-चढ़कर हिस्सा ले रही हैं। चाहे वह कुश्ती हो, बॉक्सिंग हो, शूटिंग हो, बैडमिंटन हो या टेनिस। अब भारतीय महिलाएं इन गेम्स को बड़ी गंभीरता से खेल रही हैं। साथ ही इसकी बदौलत अपनी एक खास मुकाम बना रही हैं। यदि कश्मीर में भी सरकार सही ढंग से यहां की बच्चियों को ट्रेंड करे, तो वे भी अपने राज्य और देश का नाम रोशन कर सकती हैं।

आज आप जिस मुकाम तक पहुंची हैं, यहां तक पहुंचने का आपका सफर कैसा रहा, आपकी ज़िंदगी में कौन-कौन सी सीख काम आई?

जब आप किसी मुकाम तक पहुंचते हैं, तो जीवन में कई उतार-चढ़ाव आते हैं। इस दौरान गिरना, रोना और चिल्लाना कुछ हद तक स्वाभाविक है। लेकिन, जिंदगी में कभी भी उम्मीद का दामन नहीं छोड़ना चाहिए। आप हर किसी को खुश नहीं रख सकते हैं। इसलिए इस मामले में सोचना व्यर्थ है कि लोग आपके बारे में क्या कहेंगे। नकारात्मक सोच वाले लोगों से दूरी बना लें। हालांकि, उन लोगों को आप कभी न भूले, जो हर कदम पर आपके साथ खड़े थे। अपनी जमीर से जुड़े रहें और कुछ कर गुजरने के लिए बड़े ख्वाब देखें। जिंदगी में भले कैसी भी परेशानी आए, बस मान लो कि आप इसे यूं चुटकी में हैंडल कर लेंगे। आपने कोई सपना बुना है, तो उसे साकार करने में जी-जान लगा दें। खुद पर भरोसा रखें। जब आप खुद की मदद करने के लिए सक्षम होंगे, तभी दूसरे लोग भी आपकी सहायता के लिए आगे आएंगे। अंत में मैं यहीं कहूंगी कि आपके सपने से आपको कोई दूर नहीं कर सकता, जबतक कि आप किसी को छूट नहीं देते हैं।

विपरीत हालातों से जुझने के बावजूद आपके हौसले बुलंद रहे हैं। आप ऐसे लोगों को क्या सुझाव देंगी?

ऐसे लोगों से मेरी यानी इंशा बशीर का सुझाव है कि आप कभी भी सपने देखना न छोड़ें। अपने सपने को पूरा करने के लिए जी-तोड़ मेहनत करें। क्योंकि, आपको लगता होगा कि लोग आपके हालात को देखकर क्या सोचेंगे और क्या कहेंगे। यदि सच में आप कुछ करना चाहते हैं, जिससे आपको खुशी मिले, तो उस काम को पूरा करें। साथ ही इसे अंजाम तक पहुंचाने के लिए कैसे प्रेरित हों, इसके बारे में भी सोचें। अपने मुकाम को पाने के लिए आप किसी खास समय का इंतजार न करें। आप अपना लक्ष्य बनाएं और उसे पूरा करने के लिए पूरी शिद्दत के साथ लग जाएं।

इंसान की ज़िंदगी में मेंटल हेल्थ कितना मायने रखता है?

जहां तक मुझे जानकारी है डिप्रेशन जैसी मानसिक स्थिति से निपटने के लिए कोई रहस्यमयी उपाय या जादुई नुस्खा नहीं है। इन समस्याओं से निपटने का कारगर उपाय आपके अंदर ही मौजूद हैं। आपके पास हिम्मती और ताकतवर बनने का विकल्प है, भले ही आप उतने ताकतवर क्यों न हो। जब इस सोच के साथ आगे बढ़ेंगे, तो आपको महसूस होगा कि आपके पास ये सारे गुण पहले से ही मौजूद थे। हां, यह सच है कि इस तरह का माइंडसेट बनाने में काफी परेशानी भी झेलनी पड़ती है। अपने जीवन के विपरीत हालातों में ऐसे इंसान के बारे में सोचें जो वाकई मजबूत इंसान हों। आपके रोल मॉडल कौन हैं, उसके बारे में विचार करें। वे इंसान आखिरकार दूसरों से अलग कैसे हैं? अंत में आप पाएंगे कि हर व्यक्ति में खासियत है। सभी में महान और मजबूत बनने की क्षमता है। निर्माण की इस प्रक्रिया में आपको कुछ ऐसे लोग भी मिलेंगे, जो आपको डिमोटिवेट या हतोत्साहित करेंगे, लेकिन हार नहीं मानना है। भले ही कैसी भी विपरीत परिस्थित क्यों न आ जाए, प्रयास जारी रखना है। खुद पर विश्वास बनाएं रखना है। एक-न-एक दिन आपको कामयाबी जरूर मिलेगी।

आगे के लिए आपकी योजनाएं क्या हैं?

आगे अपनी जिंदगी में फिलहाल मैं इंशा बशीर बस यहीं चाहती हूं कि व्हीलचेयर बास्केटबॉल में और बेहतर प्रदर्शन करूं और अपने राज्य और देश का नाम रोशन करूं। इसके बाद मेरी यही तमन्ना है कि मैं उन असहाय लोगों के लिए एक उम्मीद की किरण बनना चाहूती हूं, जो दिव्यांगता की वजह से लाचारी का जीवन जी रहे हैं और दिव्यांगता को अपनी नियति मान बैठे हैं। मेरी कोशिश ऐसे लोगों के भीतर छिपे टैलेंट को बाहर लाने की होगी। ऐसे लोग जिन्होंने जन्म से या किसी हादसे में दिव्यांग होने की वजह से जीने की लालसा खो चुके हों। हमारी जिंदगी सबक से भरपूर है, इसलिए मैं इंशा बशीर उन दिव्यांग लोगों के लिए प्रेरणा बनना चाहती हूं, जो मेरी तरह परेशानियों से जूझ रहे हैं।

  • इंशा बशीर ने जम्मू-कश्मीर में पहली महिला व्हीलचेयर बास्केटबॉल प्लेयर के रूप से अपनी पहचान बनाई हैं। एक हादसे में उन्हें अपने दोनों पैर गंवाने पड़ गए। इसके बाद उनकी जिंदगी व्हीलचेयर में ही सिमट कर रह गई। लेकिन, मजबूत इच्छाशक्ति और जूनून के बल पर उन्होंने अपनी जिंदगी को नए आयाम दिए। वह आज न सिर्फ देश में बास्केटबॉल खेलती हैं, बल्कि दूसरे देशों में भी परचम लहरा रही हैं। जब वह बास्केटबॉल कोर्ट में प्रैक्टिस नहीं करती हैं, तब महिलाओं और उनकी तरह दिव्यांगता की चुनौतियों से जूझ रहे लोगों को अपना खुद का मुकाम बनाने के लिए हौसला आफजाई करती हैं। साथ ही उन्हें इसके लिए मोटिवेट करती रहती हैं।