आज दुनिया में क्रोध, ईर्ष्या, हिंसा और दुख जैसे विकार धैर्य, सहानुभूति और करुणा जैसे गुणों पर हावी हो रहे हैं। इस दुनिया की एक शांतिपूर्ण, खुशहाल जगह के रूप में कल्पना करना लगभग असंभव है। जितनी अधिक अशांति होगी, असुरक्षा भी उतनी ही अधिक होगी। तो इससे बचने के लिए एक औसत व्यक्ति क्या कर सकता है? दुनिया भर के व्यक्ति और समूह शांति के लिए रास्ता खोजने की कोशिश कर रहे हैं। मगर कैसे? इस अशांति के साथ युद्ध में असंख्य दार्शनिकों का एक स्पष्ट जवाब सामने आया है। शांति का रास्ता खुद में शांति को ढूंढना है। बुद्ध ने कहा था; “शांति भीतर से आती है। इसे बाहर न ढूंढें।” इन सम्मोहक सवालों के जवाब खोजने के लिए मैंने विपासना का रास्ता अपनाया। इसे व्यावहारिक ध्यान भी कहा जाता है, यह दुनिया भर में शांति चाहने वालों के बीच लोकप्रियता हासिल कर रहा है। विपासना की शिक्षिका जया सांगोई ने सोलवेदा की टीम के साथ साक्षात्कार में शरीर, मन और वस्तुओं के साथ शांति के महत्व (Importance of Peace) को समझाया। प्रस्तुत है उनके साथ
बातचीत के अंश;
विपासना क्या है? (Vipassana kya hai)
पाली भाषा में विपासना का अर्थ है विशेष अंतर्दृष्टि। पश्यना का अर्थ है ‘देखना’ और वि का अर्थ है ‘एक विशेष तरीके से देखना’। यह इस पल में ‘अभी’ क्या हो रहा है यह जानने की जागरूकता है। यह अनुभवात्मक तकनीक आपके दिमाग को आराम देती है और इसे भटकने नहीं देती है। इस तकनीक के दो महत्वपूर्ण पहलू सांस और एकाग्रता हैं।
विपासना को 2,500 साल पहले गौतम बुद्ध ने फिर से खोजा था। चिंतन करने के लिए जैसे ही वह बोधगया के पास एक पेड़ के नीचे बैठे, उनका मन शांत हो गया और वह अपनी सांसों को महसूस करने लगे। जैसा कि उन्होंने देखा उनका दिमाग शांत, सूक्ष्म और तेज़ हो गया। वह मन और पदार्थ की सूक्ष्मता की वास्तविकताओं का अनुभव करने लगे। उन्होंने जाना कि मन और शरीर एक अंतरंग संबंध से जुड़े हुए हैं। यदि मन में कुछ भी गलत होता है तो शरीर पर इसका प्रभाव पड़ता है और यदि शरीर में कुछ गलत होता है तो मन पर इसका प्रभाव दिखाई देता है। उन्होंने यह भी पाया कि जब हमारा कोई इंद्रिय अंग किसी वस्तु के संपर्क में आता है तो शरीर में एक सनसनी पैदा होती है और हमारा मन इस संवेदना पर प्रतिक्रिया करता है। यदि मनुष्य में यह प्रतिक्रियाशील प्रकृति समाप्त हो जाती है तो व्यक्ति आत्मज्ञान की राह पर चल पड़ता है।
विपासना के तहत कई विशिष्ट कार्यक्रम आते हैं। क्या आप इनके बारे में कुछ बात कर सकती हैं?
विपासना की शिक्षिका बताती हैं कि इसमें 10 दिन के कार्यक्रम होते हैं, जहां प्रतिभागी मौन रहकर योग्य शिक्षकों के मार्गदर्शन में काम करते हैं। प्रोग्राम को तीन चरणों में विभाजित किया है- शील, आनापान और विपाश्यना। शील के तहत एक व्यक्ति हानिकारक कार्यों से दूर रहता है और 5 उपदेशों का पालन करने का वादा करता है, जैसे कोई हत्या नहीं, कोई यौन दुराचार नहीं, नशीली दवाओं का उपयोग नहीं करना, झूठ नहीं बोलना और चोरी नहीं करना। आनापान विपासना की नींव है। यहां ध्यान अपने श्वास पर रहता है। आनापान के 3 दिनों के माध्यम से किसी के मन में समाधि प्राप्त करने के लिए एकाग्रता विकसित होती है। चौथे दिन पूरे शरीर पर ध्यान केंद्रित करते हुए किसी भी हिस्से को छोड़े बिना हम विपासना में प्रवेश करते हैं। इस प्रक्रिया के दौरान हम महसूस करते हैं कि हमारे शरीर का प्रत्येक छिद्र पल-पल में बदलता रहता है। जैसे–जैसे हम इस सच्चाई को अधिक से अधिक अनुभव करते हैं, हम हमारी प्रकृति को समझते हैं कि हम इसमें कैसे रहते हैं, हम कहां गलत हैं और हम अपने आप को कैसे सही कर सकते हैं।
विपासना का एक प्रमुख तत्व मौन है। ऐसा क्यों है?
हमें मौन की आवश्यकता है क्योंकि मानव मन हमेशा बातचीत करता रहता है। वहां बहुत सारी जानकारियां छिपी हुई हैं। चुप्पी से हमें मदद मिलती है क्योंकि हम उस दिमाग को शांत करते हैं जो लगातार मंथन करता है और अक्सर दुखी रहता है। विपासना की शिक्षिका ने कहा- कार्यक्रमों के दौरान किसी को इशारों या आंखों से संपर्क करने की भी अनुमति नहीं होती है। प्रतिभागियों को इस 10 दिवसीय अवधि के लिए अन्य प्रथाओं को अलग रखना होता है। यहां कुछ भी बाहरी नहीं है। हमारी सांस और संवेदना का प्रयोग करके हमारा मन एक गहरे स्तर पर खोज कर सकता है और अपने बारे में सच्चाई को समझ सकता है।
विपासना मन के लिए क्या करती है? (Vipassana man ke liye kya karti hai)
विपासना की शिक्षिका ने कहा- इससे व्यक्ति अपने जीवन को बेहतर बना सकता है। अपने सामने आने वाली हर मुश्किल का सामना करने के लिए विपासना हमें अपनी सदबुद्धि का प्रयोग करना सिखाती है। हम अपनी सांसों की प्रक्रिया को समझ कर अपनी बुद्धि का विकास करते हैं। विपासना की प्रक्रिया से हम जान पाते हैं कि शरीर और मस्तिष्क में क्या चल रहा है। प्रतिक्रिया देना बंद कीजिए और स्वीकार करना आरंभ कीजिए। बुद्धि से ही हम जान पाते हैं कि कोई भी दर्द हमेशा के लिए नहीं रहता। हर स्थिति चाहे कितनी भी दर्दनाक क्यों न हो, गुजर जाने वाली है। विपासना का प्रशिक्षण एक अनुभवात्मक स्तर पर होता है जो हमें आत्मनिरीक्षण करने और हमारे आंतरिक स्वयं का पता लगाने में मदद करता है। हम अपनी सांस पर ध्यान केंद्रित कर वर्तमान में रहने के लिए मन को प्रशिक्षित करते हैं।
विपासना एक व्यक्ति को क्या सिखाती है?
यह हमें अनुभूति के प्रति प्रतिक्रिया करने से रोकना सिखाती है। यह एक प्रतिक्रिया है जो पूरे समीकरण को बदल देती है। ग्रहणशील होना ही मानवता है। विपासना की शिक्षिका कहती हैं कि जब चीज़ें गलत हो जाती हैं तो मैं कहती हूं कि मैं प्रबुद्ध नहीं हूं, मैं अभी भी सीख रही हूं। यह मेरा अपना कर्म है। आप देखिए हमारा जीवन हमारे ही कर्मों की एक फिल्म है। जब हम पैदा होते हैं तो हमारे कर्म की गठरी खुल जाती है। हम जिस कर्म की ओर झुके हुए होते हैं वही सतह पर आता है और उसके अनुसार ही प्रकृति स्थिति बनाती है। यदि मेरे पास ज्ञान है तो मैं सीखूंगी कि स्थिति को कैसे संभालना है। लेकिन अगर मैं अज्ञानी हूं तो मैं लोगों और स्थितियों को दोष देती रहूंगी। दुनिया में बहुत सी चीज़ें गलत हो जाती हैं और कोई भी इसके लिए विशेष रूप से जिम्मेदार नहीं है। जब हमारे कर्म परिपक्व होते हैं तब हम सभी एक समान हो जाते हैं। मैंने जो बोया है मुझे वही काटना है। विपासना की शिक्षिका इसपर जोर देते हुए कहा, यह सिखाती है कि अपने कर्मों के बोझ को हम बढ़ने से कैसे रोकें और जो कर्मों की गठरी लेकर हम चल रहे हैं उससे बाहर कैसे आएं। यह शुद्धि, आत्मबल और मुक्ति का मार्ग है।