मोक्ष की तलाश

मोक्ष की तलाश

आत्मज्ञान की प्राप्ति करने में हम भी योग्यता रखते हैं। यह बात हममें से बहुत से सारे लोग शायद ही कभी सोचते हैं। मगर क्या होगा अगर सही मायने में हम जिंदगी के रहस्यों को समझकर खुद को इससे मुक्ति पा लें?

अगर हम किसी काम को जबरदस्ती किसी पर थोप देते हैं, जो उसे करना बिल्कुल भी पसंद नहीं है। तब हम कहीं न कहीं उस इंसान के साथ अन्याय कर रहे होते हैं। ऐसा करके हम उसे मानसिक यातना की जिंदगी में बांध देते हैं, जो उसके सिर के ऊपर फंदे की तरह कभी न खत्म होने वाले कर्ज की भांति लटका रहता है। यह बोझिल काम उसकी क्रिएटिविटी को पूरी तरह खत्म कर देता है। जबकि, उसने अपने जीवन में कुछ बेहतर करने के मकसद से काफी पैसे खर्च कर अच्छी तालिम हासिल की थी, लेकिन उसे अपने करियर में बहुत कुछ हासिल नहीं हो पाया है। वह चाहती है कि उसकी लाइफ परफेक्ट बन जाए, जबकि वह सोचता है कि वह हवा में ओस की तरह वाष्प बनकर उड़ जाए।

हममें से कई लोग ऐसी परिस्थितियों को खुद से जोड़कर देखते हैं, क्या ऐसा नहीं करते हैं? हममें से अधिकतर लोग ऐसा जीवन जीना पसंद करते हैं, जो परेशानियों से मुक्त हो। जब इस आदर्श स्थिति को पाने में नाकामयाब हो जाते हैं तब हम बेहतरी के लिए इस दुनिया को छोड़कर शून्यता के परम सुख रूपी सफेद प्रकाश में अदृश्य हो जाते हैं। चलो देखते इस परिस्थिति का सामना करते हैं। जीवन बहुत ही मुश्किलों से भरा हुआ है। आमतौर पर यह हर स्तर पर हमें मारता है। शायद यही वजह है कि इस तरह की बीमार मानसिकता ने दार्शनिकों को मोक्ष पर चिंतन-मंथन करने के लिए प्रेरित किया। मोक्ष हमें सांसारिक जीवन से मुक्ति पाने सहायता करता है, जबकि ज्ञान हमारी आत्मा को प्रकाशित करने में मदद कर सकता है।

लेकिन, क्या आपने इस बात पर विचार किया है कि वास्तव में हम सांसारिक जीवन से मुक्ति चाहते हैं? क्या सचमुच हम अपने सांसारिक जीवन का अंत चाहते हैं? जहां तक मेरी बात है, जीवन जीने के लिए मनुष्य को जो कुछ भी मिला है, मैं उसे सुख का आनंद लेने में विश्वास रखता हूं। तमाम परेशानियों से घिरे रहने के बावजूद मैं अपने परिवार के लोगों, अपने घर के सुख या अपनी नौकरी को छोड़ने के बारे में कभी सपने में भी नहीं सोचता हूं। हम खुद को पूरी तरह से दुनिया से अलग-थलग नहीं करना चाहते हैं। बावजूद इसके हम उन परेशानियों से पार पाने की कोशिश नहीं करते हैं, जो हम लोगों को अलग करने के लिए उत्तरदायी है। ऐसा हम तब तक नहीं करते हैं, जब तक कि हम संन्यासी जैसा जीवन जीने के कगार तक पहुंच नहीं जाते हैं। इसलिए आत्मज्ञान का मकसद सांसारिक जीवन से अलग-थलग करने के बारे में नहीं होना चाहिए।

आज निर्वाण की दो साधारण और वस्तुत: व्यापक व्याख्याओं की चर्चा होती है। उनमें से एक को मोक्ष या आत्मज्ञान कहते हैं। सांसारिक जीवन से मुक्ति पाने का यह सशक्त माध्यम भी है। ऐसा माना जाता है कि मौत के बाद ही मोक्ष की प्राप्ति हो सकती है। दूसरी व्याख्या के अनुसार, जीवनपर्यंत अपने व्यावहारिक और सैद्धांतिक कार्यों के जरिए मोक्ष की प्राप्ति की जा सकती है। निर्वाण की दूसरी व्याख्या इन दिनों लगातार काफी तेजी से लोकप्रिय हो रही है।

हममें से बहुत से लोग इस विषय पर कभी नहीं सोचते हैं कि आत्मज्ञान की प्राप्ति करने में हम भी योग्यता रखते हैं। संभवत: हम इस बात पर विश्वास करने लगे हैं कि मृत्यु के बाद ही हम जीवन की परेशानियों से मुक्ति पा सकते हैं। मगर क्या होगा अगर सही मायने में हम जिंदगी के रहस्यों को समझ कर खुद को इससे मुक्ति पा लें? गिरिधर शास्त्री अद्वैतवाद के प्रसिद्ध जानकार हैं। उनका मानना है कि मोक्ष की प्राप्ति तभी संभव है, जब हम इस बात से बखूबी अवगत हो जाएं कि जीव मात्र के अस्तित्व की प्रकृति क्षणभंगुर यानी अस्थायी है। वे कहते हैं कि “स्थिरता एक मिथ्या है और यह हमारी अज्ञानता का अभिन्न हिस्सा है। इस भौतिक दुनिया में हर चीज़ एक-दूसरे से जुड़ी हुई है। इस तरह का बोध हमें मोक्ष के पथ पर ले जाने का पहला मार्ग है। मोक्ष नश्वर जीवन से निजात दिलाने की बजाय अज्ञानता से मुक्ति दिलाता है। यह हमें तमाम आसक्तियों से मुक्त करती है।

गिरिधर शास्त्री का विचार कुछ हद तक सही भी है। हम कहते-फिरते हैं कि हम लोगों के पास तो अपना घर है या हम लोगों के पास तो स्थायी नौकरी है। ऐसा कहकर हम खुद को यह जताते हैं कि ये तमाम चीजें स्थायी हैं और समय के साथ हम उन्हें सच भी मानने लगते हैं। हम लोगों के लिए यह स्वीकार करना काफी मुश्किल हो जाता है कि विपरीत परिस्थितियों में हमारी नौकरी और घर सब कुछ हमारे हाथ से निकल सकता है और परिस्थितियों पर हमारा नियंत्रण भी नहीं है। सच्चाई को स्वीकार करने का भय के कारण ही शायद हम लोग इस तरह के विचारों को अपने भीतर जगह देते हैं। अगर हम जीवन की अप्रत्याशित प्रकृति के साथ खुद को सामंजस्य बैठाने में कामयाब हो गए, तो हमें आत्मज्ञान की प्राप्ति से कोई रोक नहीं सकता है।

पतंजलि के योग सूत्र के मुताबिक, एक बार स्वामी सच्चिदानंद ने कहा था: “बंध और मोक्ष की वजह हमारा खुद का मन है। जब हम यह मान लेते हैं कि हम आसक्तियों से बंधे हुए हैं, तो हम सच में बंधे हुए होते हैं। जब हम सोचते हैं कि हम तमाम झंझटों और परेशानियों से मुक्त हैं, तो हम इन चीजों से वाकई मुक्त होते हैं। मन में इस तरह की भावना तभी विकसित होती है जब हम मन से ऊपर उठकर सोचते हैं कि हम इन सभी परेशानियों से मुक्त हैं।” इससे पता चलता है कि हम जिधर अपने मन का को जाने देना चाहते हैं, वह उधर ही जाता है।

जाने-माने लाइफ कोच और कृष्ण भक्ति के साधक ब्रज मोहन दास कहते हैं कि हेल्दी डिटैचमेंट हमें मोक्ष की तरफ एक कदम और आगे ले जा सकती है। दास कहते हैं, “उपनिषद मोक्ष को मुक्तिरहित्वान्यथा-रूपम स्वरूपेण व्यवस्थिति: के रूप में परिभाषित करते हैं। इसका मतलब यह है ‘हम जो कई पहचान जोड़ते हैं, उन्हें छोड़ देना और अपने मूल स्वयं की पहचान करना’। दास मानते हैं कि यदि हम अपनी खुशी के स्तर और जो काम हम लोग करते हैं और उसका नतीजा निकलेगा, इन बातों को दरकिनार कर सकते हैं तो इसमें कोई शक नहीं कि हम जीवनपर्यंत खुशहाल और समृद्ध जीवन जीने की तरफ बढ़ सकते हैं।

मोक्ष को लेकर ब्रज मोहन दास का विचार काफी व्यावहारिक और यथार्थ पर आधारित लग रहा है। ‘गंतव्य पर पहुंचने की बजाय यात्रा का आनंद लेना सीखें’- इस बात से हम लोग पहले ही भलीभांति वाकिफ हैं।” यदि मैं खुद को लेखक बनना अधिक पसंद करता हूं और लिखने पर उतना ध्यान ही नहीं देता हूं, तो यकीन मानिए मैं खुद को निराशा के गहरे सागर में खुद को धकेल रहा हूं। इसके ठीक विपरीत अगर मैं खुद को एक बड़ा लेखक मानना छोड़कर अपनी लेखनी पर अधिक फोकस रहूं, तो इसमें कोई शक नहीं है उतनी ही जल्दी मुझे आत्मज्ञान की प्राप्ति हो सकती है।

यह मायने नहीं रखता है कि हम क्या करते हैं, लेकिन आनंद की खोज हम सभी को होती है। बौद्ध धर्म के जाने-माने साधक कैलाश आडवाणी कहते हैं कि आत्मज्ञान या बुद्धत्व ही अनंत खुश है। उनका मानना है कि जिस स्थिति को भगवान बुद्ध ने तप ने हासिल किया था, उस स्थिति को प्राप्त करने के लिए हर दिन बौद्ध धर्म के नियमों पर चलकर हम भी अपने जीवन स्थिति को उन्नत करने का प्रयास करते हैं। हम लोगों के लिए वही आत्मज्ञान या परम सुख है। इस स्थिति में पहुंच जाने के बाद कोई भी हम लोगों की जीवन-स्थिति में दखल नहीं दे सकता है।

आखिरकार यह मन में व्याप्त अंधेरे से छुटकारा पाने का माध्यम है, जिसे हम चाहते हैं। अज्ञानपूर्ण धारणाओं और झूठी पहचानों से निजात पाकर हम अपनी आत्मा की मुक्ति और उस अनंत सुख को पाने की कोशिश कर सकते हैं।
भले ही हम इसे ‘आनंद’, ‘मोक्ष’, ‘बुद्धत्व-आत्मज्ञान का मार्ग’ जो कुछ भी कहें, अंतत: तमाम उलझनों पर काबू पाने के साथ-साथ जीवन में शांति पाने की यह एक यात्रा है।

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