यही शरीर, बुद्ध हां, तुम।

यही शरीर, बुद्ध हां, तुम।

शरीर बहुत सी बातें कह रहा है पर तुमने कभी नहीं सुनी क्योंकि तुम्हारा कोई संपर्क नहीं है। तो अपने शरीर के बारे में अधिक से अधिक संवेदनशील बनने की कोशिश करो।

अगर सब कुछ ठीक है [तुम्हारे शरीर के साथ], तुम पूरी तरह इससे अनजान रहते हो और वास्तव में, वही क्षण है जब संपर्क किया जा सकता है, जब सब कुछ ठीक होता है। क्योंकि जब कुछ गलत हो जाता है तो संपर्क बीमारी के साथ बन जाता है, कुछ ऐसी वस्तु के साथ जो गलत हो गई है और अब स्वास्थ्य नहीं है। तुम्हारे पास एक सिर है, फिर सिर दर्द होता है और तब तुम संपर्क करते हो।

लेकिन हमने वह क्षमता लगभग खो दी है। कोशिश करो अपने शरीर के साथ संपर्क बनाने की जब सब कुछ अच्छा है।

बस घास पर लेट जाओ, आंखें बंद करो और संवेदना जो भीतर जारी है महसूस करो, सुख जो अन्दर बुदबुदा रहा है। नदी में लेट जाओ। पानी शरीर को छू रहा है और प्रत्येक कोशिका ठंडी हो रही है। महसूस करो अन्दर ठंडक कैसे प्रवेश करती है, कोशिका दर कोशिका, और शरीर में गहरी चली जाती है। शरीर एक महान घटना है, प्रकृति के चमत्कारों में से एक है ।

धूप में बैठो। सूरज की किरणों को शरीर में प्रवेश करने दो। गर्मी को अपने अन्दर जाता महसूस करो, किस तरह यह गहरी जाती है, किस तरह यह तुम्हारी रक्त कोशिकाओं को छू लेती है और हड्डियों तक पहुंच जाती है। सूरज जीवन है, उसका स्रोत है। तो बंद आंखों से महसूस करो क्या हो रहा है। सावधान रहो, देखो और आनंदित रहो।

धीरे-धीरे तुम एक बहुत ही सूक्ष्म सामंजस्य से अवगत हो जाओगे, एक बहुत ही सुंदर संगीत लगातार अंदर चल रहा है। तो फिर तुमने शरीर के साथ संपर्क किया है, नहीं तो तुम मृत शरीर ढो रहे हो।

तुम्हारा शरीर किसी प्रणाली के रूप में इस्तेमाल किया जा सकता है,  तो तुम्हें इसके बारे में बहुत संवेदनशील नहीं होना चाहिए। शरीर बहुत सी बातें कह रहा है पर तुमने कभी नहीं सुनी क्योंकि तुम्हारा कोई संपर्क नहीं है। तो अपने शरीर के बारे में अधिक से अधिक संवेदनशील बनने की कोशिश करो। इसकी बात सुनो, यह बहुत सी बातें कहे चला जा रहा है,  और तुम इतने ज्यादा ख्यालों में रहते हो कि तुम इसकी कभी नहीं सुनते।

जब भी तुम्हारे मन और शरीर के बीच संघर्ष होता है,  तुम्हारा शरीर लगभग हमेशा सही होगा, तुम्हारे मन से भी अधिक, क्योंकि शरीर प्राकृतिक है,  तुम्हारा मन सामाजिक है। शरीर इस विशाल प्रकृति का है,  और तुम्हारा मन तुम्हारे समाज, तुम्हारे विशिष्ट समाज, उम्र और समय के अंतर्गत आता है। शरीर की अस्तित्व में गहरी जड़ें हैं और मन सिर्फ सतह पर लहरा रहा है। लेकिन तुम हमेशा मन की सुनते हो, तुम कभी शरीर की नहीं सुनते। इस लम्बी आदत की वजह से संपर्क खो गया है।

पूरा शरीर हृदय केन्द्र के आसपास स्पंदित होता है जैसे कि संपूर्ण सौर मंडल सूरज के चारों तरफ घूमता है। जब दिल ने धड़कना शुरू किया तभी तुम जिंदा हो गए, तुम मर जाओगे जब दिल धड़कना बन्द कर देगा। दिल तुम्हारे शरीर का सौर केंद्र बना रहता है। इसके प्रति सजग हो जाओ। लेकिन तुम धीरे-धीरे केवल तभी सजग हो सकते हो, जब तुम पूरे शरीर के प्रति सचेत होते हो।

ओशो, वेदांत: सेवन स्टेप्स टु समाधि, प्रवचन #12 से उद्धृत

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।

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