पुराणों और उपनिषदों में एकल पालक

पुराणों और उपनिषदों में एकल पालक

किसी बच्चे के लालन-पालन के लिए माता और पिता दोनों का होना महत्वपूर्ण है, यह सोच हमारे समाज में प्रचलित है। इसलिए जब भी कोई व्यक्ति गोद लेने के लिए जाता है, तब उससे यह जरूर पूछा जाता है कि आप शादीशुदा हैं या नहीं।

यदि वह व्यक्ति शादीशुदा नहीं है या उसका कोई पार्टनर नहीं है, तो लोगों को लगता है कि उसे कोई बच्चा गोद नहीं देना चाहिए। लोगों को लगता है कि वह व्यक्ति बच्चे की बेहतर तरीके से परवरिश नहीं कर पाएगा। लेकिन, हमारे शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में हम कुछ और ही पाते हैं। शास्त्रों और पौराणिक कथाओं में हमें ऐसे कई उदाहरण मिलते हैं, जहां किसी बच्चे का लालन-पालन एक ही व्यक्ति करता है या तो माता या पिता। यह व्यक्ति अकेले ही बच्चे को संस्कार और व्यवहार सिखाता है।

उदाहरण के तौर पर, उपनिषदों में हमें जबाला नामक एक स्त्री का वर्णन मिलता है। जबाला ने अपने पुत्र का लालन-पालन अपने दम पर किया। उसका पुत्र ब्रह्मज्ञान हासिल करना चाहता था और इसलिए वह ब्रह्मज्ञान की खोज में गौतम ऋषि के आश्रम पहुंचा। वहां गौतम ऋषि ने उससे उसके पिता का नाम पूछा। जब वह अपनी मां से अपने पिता का नाम पूछने गया, तब जबाला ने कहा कि उसके पिता के बारे में उसे भी कुछ नहीं मालूम। दरअसल, जबाला एक दासी थी और कई पुरुषों ने उसके साथ संबंध बनाए थे। इसलिए जबाला ने अपने पुत्र जाबालि से कहा कि वह अपने गुरु के पास जाकर बोलें कि वह जबाला का पुत्र है और अपने पिता के बारे में कुछ नहीं जानता

तो जबाला के पुत्र जाबालि ने गौतम ऋषि के पास जाकर वही कहा, जो उसकी मां ने बोला था। यह सुनकर आश्रम में उपस्थित लोगों ने कहा कि जिसे अपने पिता के बारे में पता नहीं, वह गौतम ऋषि का शिष्य कैसे बन सकता है? लेकिन, गौतम ऋषि ने कहा कि जो व्यक्ति सत्य बोलने से भी नहीं डरता, वहीं ब्रह्मज्ञान प्राप्त करने के योग्य है। इसलिए गौतम ऋषि ने जाबालि को नया नाम दिया ‘सत्यकाम’ और उसे स्वीकार कर शिक्षा-दीक्षा दी। आगे चलकर सत्यकाम उपनिषद के बहुत बड़े ऋषि और ब्रह्मज्ञानी बने।

ऐसी ही एक कहानी हमें रामायण में मिलती है। लव और कुश का पालन-पोषण सीता ने जंगल में अकेले ही किया। इसका मतलब है कि राम उनके पिता होने पर भी वे लालन-पालन में भागीदार नहीं थे। महाभारत में भी हम देखते हैं कि कुंती ने अकेले ही पांच पांडवों को पाल-पोसकर बड़ा किया क्योंकि कुंती के पति का अकाल निधन हो गया था। इस तरह रामायण और महाभारत दोनों में दो स्त्रियों के उदहारण हैं, जिन्होंने अकेले ही अपने बच्चों की परवरिश की। पुराणों में उल्लेख मिलता है कि कपिल मुनि को उनकी माता देवहुति ने अकेले ही पाला, क्योंकि कपिल मुनि के जन्म के बाद उनके पिता कर्दमा ऋषि ने संन्यास ले लिया था।

यह बात केवल स्त्रियों तक ही सीमित नहीं है, बल्कि पुरुषों में भी इसके उदाहरण मिलते हैं। मेनका नामक अप्सरा एक बच्ची को जन्म देकर स्वर्ग चली गई। उस बच्ची के पिता विश्वामित्र ने उसे ‘पाप का बीज’ मानकर त्याग दिया। कान्व ऋषि ने इस बच्ची को शकुन पक्षी के नीचे पाया और उसे शकुंतला नाम देकर उसका पालन-पोषण किया। शांतनु को जंगल में दो बच्चे मिले थे – क्रिपा और क्रिपि – जिनकी माता एक अप्सरा थी और पिता तपस्वी। दोनों ने उन्हें त्याग दिया था। तो शांतनु ने दोनों बच्चों को गोद लिया और अकेले उनका पालन-पोषण किया। इस तरह हम देखते हैं कि शास्त्रों में एकल पालक, फिर चाहे वह पुरुष हो या स्त्री, को बहुत मान्यता दी गई थी। इसलिए आधुनिक समाज में भी हमें यह स्वीकार करना होगा कि कोई व्यक्ति अकेले भी किसी बच्चे की अच्छे से परवरिश कर सकता है।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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