नचिकेता से आई भारतीय सोच में क्रांति

नचिकेता से आई भारतीय सोच में क्रांति

नचिकेता की कथा हमें 2500 वर्ष पहले उपनिषदों से मिलती है। यह वह काल था, जब ऋग्वेद के रूढ़िवादी यज्ञों से परेशान लोगों ने कर्म योग से ज्ञान योग की ओर यात्रा शुरू की थी। लोग यज्ञ छोड़कर तपस्या की ओर और बाहरी दुनिया से भीतरी दुनिया की ओर जा रहे थे।

इस कथा में बताया गया है कि नचिकेता के पिताजी गोदान कर रहे थे, ताकि उन्हें स्वर्ग की प्राप्ति हो। नचिकेता ने देखा कि उनके पास दुधारू नहीं, बल्कि एक बूढ़ी गाय थी। गरीब होने के कारण उनके पास देने के लिए और कुछ नहीं था। नचिकेता को यह देखकर बुरा लगा कि ऐसा दान देकर उनके पिता को स्वर्ग की प्राप्ति नहीं होगी। इसलिए उन्होंने अपने पिता से कहा, क्यों ना आप मुझे ही दानयोग्य वस्तु मानकर दान कर दीजिए ताकि आपको स्वर्ग की प्राप्ति हो सके।

नचिकेता की बातों से उनके पिता को बहुत बुरा लगा। उन्हें लगा कि वह उनकी गरीबी का मजाक उड़ा रहे हैं। इसलिए गुस्से में आकर उन्होंने कहा, ‘हां, मैं तुम्हें मृत्यु के देवता यमराज को दान में देता हूं।’ उसी क्षण नचिकेता मनुष्य लोक या भू लोक से पितृलोक चले गए जहां उनकी भेंट यमराज से हुई।

यमराज नचिकेता को देखकर चकित हो गए और उन्होंने कहा, मेरे लेखा-जोखा के अनुसार तो तुम्हारी मृत्यु अभी नहीं लिखी गई है, तो तुम यहां क्यों आए हो बालक? नचिकेता ने बताया, मुझे दान के रूप में दिया गया है। इस पर यमराज ने कहा, मैं कोई दान स्वीकार नहीं करता। जब प्राणी का समय पूरा हो जाता है, तब मैं केवल प्राण लेता हूं। यमराज को नचिकेता की इस स्थिति पर काफी तरस आया और उन्होंने उनसे एक वरदान मांगने को कहा।

इस पर नचिकेता ने कहा, मुझे यह ज्ञान दीजिए कि मृत्यु के पश्चात होता क्या है। इस पर यमराज धर्मसंकट में पड़ गए। उन्होंने कहा, इस प्रश्न का उत्तर बहुत ही कठिन है। देवता भी इसका उत्तर नहीं जानते, लेकिन मैं प्रयत्न करूंगा। इसके बाद यमराज ने उन्हें एक बड़ा उपदेश दिया, ‘मृत्यु के बाद दो पथ होते हैं, एक होता है पुनर्जन्म का पथ और दूसरा होता है मोक्ष का पथ। जो मनुष्य जीवन में अपनी इंद्रियों और अहंकार के सहारे जीता है, वह ऋण में रहता है और इसलिए ऋण चुकाने के लिए वह पुनर्जन्म लेता है। लेकिन, जो अपने इंद्रियों से छुटकारा पाता है और अहंकार को त्यागकर आत्मा की ओर यात्रा करता है वह ऋणमुक्त होता है और मोक्ष प्राप्त करता है। इसलिए दोनों पथ हमारे पास हैं, कुछ लोग पितृलोक द्वारा वापस भू लोक जाकर पुनर्जन्म के पथ जाते हैं और कुछ लोग मोक्ष के पथ जाते हैं।’ यह ज्ञान प्राप्त करके नचिकेता भू लोक में आए और उन्होंने इसका प्रचार सभी जगह किया।

उपनिषद के काल में भारत में पुनर्जन्म और कर्म की बातें फैली। यही बातें हमें बौद्ध धर्म और जैन धर्म में भी मिलती हैं। कर्म और पुनर्जन्म में विश्वास यही भारतीय संस्कृतियों की पहचान है। भारत में जन्मी कई संस्कृतियां पुनर्जन्म पर आधारित हैं। जो परंपराएं भारत में अन्य देशों से आईं जैसे इस्लाम और ईसाई धर्म, वे पुनर्जन्म में विश्वास नहीं करतीं। जिन धर्मों में पुनर्जन्म का विश्वास नहीं है, वहां ईश्वर को न्यायाधीश माना जाता है। लेकिन, जहां पुनर्जन्म का विश्वास होता है, वहां पर न्यायाधीश की कोई आवश्यकता नहीं होती, जैसे बौद्ध धर्म और जैन धर्म में। हिंदू धर्म में भगवान हैं, लेकिन वे न्यायाधीश का काम नहीं करते। यमराज, चित्रगुप्त के सहारे एक मुनीम का काम करते हैं, जो हमारे कर्मों का लेखा-जोखा रखते हैं। इसके अनुसार यह निर्णय लिया जाता है कि दूसरे जन्म में हम कौन-सा रूप लेंगे स्त्री, पुरुष, मनुष्य या पशु रूप और किस घर में हमारा जन्म होगा।

उपनिषदों से ही मोक्ष शास्त्र का जन्म हुआ। इसके पहले अधिकतर लोग धर्म, अर्थ और काम पर ध्यान देते थे। यज्ञ का कार्य था स्वर्ग की प्राप्ति, ना कि मोक्ष की प्राप्ति। उपनिषद के बाद भारत में एक नई सोच आ गई कि गृहस्थ जीवन से क्या हमें मोक्ष की प्राप्ति होती है या उससे हम संसार में बंधे रहते हैं। इसलिए नचिकेता की कहानी बहुत ही मूल्यवान और महत्वपूर्ण है। उससे भारतीय सोच में एक प्रकार की क्रांति और एक नई सोच आ गई। भारतीय परंपरा की नींव इसी समय रखी गई।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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