महाभारत में, द्रौपदी ने अपने बाल दुशासन के खून से धोने का ठान लिया था। द्रौपदी का देवर होने के बावजूद, दुशासन ने द्रौपदी को भरी सभा में घसीटकर उसका वस्त्रहरण किया था। द्रौपदी इसका बदला लेने पर तुली थी। इसके विपरीत, पांडवों के वनवास में जब सिंधु राजा जयद्रथ, ने द्रौपदी का तिरस्कार कर उसका अपहरण करने की कोशिश की, तब द्रौपदी ने उसे क्षमा किया। यह इसलिए कि वह अपनी एकमात्र ननद, दुःशला, को विधवा नहीं बनाना चाहती थी।
लेकिन जब किरमिर नामक राक्षस ने वन में उससे छेड़छाड़ की तब द्रौपदी ने उसे क्षमा नहीं किया। वनवास के तेरहवें साल में जब पांडव मत्स्य राज्य में वेश बदलकर रहें तब द्रौपदी रानी की दासी बनी। जब रानी के भाई, कीचक, ने द्रौपदी पर हमला किया तब द्रौपदी ने उसे भी क्षमा नहीं किया। किरमिर और कीचक दोनों भीम के हाथों मारे गए। इस प्रकार, दुर्व्यवहार करने वाले लोगों के साथ एक समान बर्ताव नहीं किया गया।
अर्जुन ने अपने सभी बेटों को एक समान प्रेम नहीं किया। वह अभिमन्यु को बहुत चाहता था, सुभद्रा का बेटा, जो कुरुक्षेत्र के युद्ध में अकेले ही चक्रव्यूह में प्रवेश कर उसमें अपना जीवन गंवाने के लिए प्रसिद्ध था।
दूसरी तरफ अर्जुन को याद दिलाना पड़ा कि नाग कन्या उलूपी के साथ भी उसका अरवान नामक एक बेटा था। महाभारत के तमिल संस्करण में पांडवों की जीत सुनिश्चित करने के लिए अरवान की बलि चढ़ाई गई। तमिल नाडु का अली नामक किन्नर समुदाय भी अरवान को पूजता है। अर्जुन ने मणिपुर की राजकुमारी चित्रांगदा, के साथ उनके बेटे बब्रुवाहन को भी युद्ध के बाद नहीं पहचाना। और द्रौपदी के साथ उनका बेटा, श्रुतकर्म, जो पांडव जीत के बाद मारा गया, का बस औपचारिक तौर पर महाभारत में उल्लेख किया गया है।
मेरा क्या है, इस धारणा को संस्कृत में मम् कहते हैं। महाभारत में इसकी ओर हमारा ध्यान आकर्षित किया गया है। हम कुछ चीज़ों को और चाहते हैं, हमारा कुछ लोगों के प्रति और लगाव होता है। और किसी व्यक्ति के किए पर हमारी प्रतिक्रिया हम उन्हें कितना चाहते हैं इसपर निर्भर होती है।
और इसलिए अपने देश के सिपाही द्वारा किया गया अपराध दूसरे देश के सिपाही द्वारा किए गए अपराध जितना भयानक नहीं होता। अपराधी के देश के अनुसार खून या बलात्कार के अपराध को कम या ज़्यादा क्रूर माना जाता है। अमरीका ने तो विश्वभर में उनके सैन्य आक्रमणों में मरने वाले दूसरे देशों के ग़ैरफ़ौजी लोगों को ‘कोलैटरल डैमेज’ कहकर इस बात को संस्थागत बना दिया है।
यदि भारत के सबसे पुराने राजनीतिक दल में भ्रष्टाचार होता है और वह वंशवादी राजनीति का समर्थन करता है तो वह बुरा है। लेकिन जब दूसरे दलों में, या फ़िल्म इंडस्ट्री में, या फिर परिवारों द्वारा चलाए गए कंगलोमरेट में वह होता है तब उसकी निंदा नहीं होती। बॉलीवुड का कोई मशहूर अभिनेता अपने अपराध के लिए संभवतः दंड से बच भी जाए, लेकिन यदि अपराधी दीन और अनपढ़ है तो उसे दंड मिलना अनिवार्य है।
हम किसी की कितनी आलोचना करते हैं वह हम उससे कितने परिचित हैं इसपर निर्भर है। ISIS समलैंगिक पुरुषों को इमारतों के छतों से नीचे फेंककर उनकी हत्या करता है; भारत में सर्वोच्च न्यायालय ने यौन अल्पसंख्यकों के अधिकार केवल 2018 में बहाल किए। लेकिन हम सर्वोच्च न्यायालय को ISIS से श्रेष्ठ मानते हैं – न्यायालय लोगों की हत्या नहीं करता, उन्हें बस अदृश्य बनाता है।
हमारे टीवी सीरियल द्रौपदी का कौरवों पर क्रोध बड़े नाटकीय ढंग से दिखाने में रूचि लेते हैं। लेकिन क्या किसी ने इस क्रोध का विश्लेषण किया है: कीचक, किरमिर और दुशासन के साथ जयद्रथ से अलग बर्ताव क्यों किया गया? क्या हमारे विचार जाति, वर्ग और रिश्तों पर निर्भर हैं? अर्जुन अपने एक बेटे का दूसरे बेटे से अधिक शोक क्यों मनाता है? यह महान योद्धा दोनों बेटों को एक समान क्यों नहीं चाहता है?
मानव मन में समानता के लिए कोई जगह नहीं है। हम जिसे भी ‘अपना’ मानते हैं उसका वर्गीकरण करना, उसपर राय पेश करना और उसे न्यायसंगत बनाना पसंद करते हैं। उससे हमें अपने बारे में अच्छा लगता है और इसलिए हम उनका कोई भी अपराध क्षमा करने के लिए तैयार हो जाते हैं।