खाली बांस हो जाएं

खाली बांस हो जाएं

तुम्हें कुछ बनना नहीं है, केवल जानो तुम कौन हो, बस। बस जानो तुम्हारे भीतर कौन छिपा है। अगर सुधार करना चाहोगे, जो कुछ भी तुम सुधारोगे, तुम हमेशा चिंतित रहोगे और परेशानी में रहोगे…

यह तिलोपा की विशेष विधियों में से है। प्रत्येक सदगुरू की अपनी विशेष विधि होती है जिसके द्वारा उसने उपलब्धि की है, और जिससे वह लोगों की मदद करना चाहता है। यह तिलोपा की विशेषता है: एक खोखले बांस के समान अपने शरीर के साथ सहजता से विश्राम करो।

एक बांस: अन्दर एकदम खोखला। जब तुम विश्राम करो,  तुम बस अनुभव करो कि तुम एक बांस हो: अन्दर एकदम खोखला और खाली। और सच में ऐसा ही है: तुम्हारा शरीर एक बांस की तरह है और अन्दर यह खोखला है। तुम्हारी त्वचा, तुम्हारी हड्डियां, तुम्हारा खून सब बांस का हिस्सा है,  और अन्दर आकाश है, खालीपन।

जब तुम एकदम शांत मुंह के साथ बैठे हो, निष्क्रिय, जीभ तालु को छूती हुई और स्तब्ध, विचारों से कंपित नहीं, मन निष्क्रियता के साथ देखता हुआ, किसी भी चीज की प्रतीक्षा ना करते हुए, एक खोखले बांस की तरह अनुभव करो। अचानक, तुम्हारे अन्दर अनंत ऊर्जा प्रवाहित होने लगती है। तुम अज्ञात से, रहस्यमयता से, दिव्यता से भर उठते हो। एक खोखला बांस बांसुरी बन जाता है और दिव्यता इसे बजाती है। एक बार तुम खाली हो जाओ तब तुम्हारे भीतर दिव्यता के प्रवेश के लिए बाधा नहीं रह जाती।

इसे करो। यह सबसे खूबसूरत ध्यान विधियों में से है, एक खोखला बांस बन जाना। तुम्हें और कुछ नहीं करना है। तुम बस ऐसे हो जाते हो, और सब अपने आप घटता है। अचानक तुम अनुभव करते हो कि तुम्हारे खोखलेपन में कुछ अवतरित हो रहा है। तुम एक गर्भ की तरह हो और एक जीवन तुम में प्रवेश कर रहा है, एक बीज पड़ रहा है। और एक क्षण आता है जब बांस पूर्णरूप से विलीन हो जाता है।

सहज रूप से शिथिल हो जाओ, कोई भी आध्यात्मिक कामना मत करो, स्वर्ग की कामना मत करो, ईश्वर की भी नहीं। जब तुम कामनारहित हो, तुम मुक्त हो। बुद्धत्व की कामना नहीं की जा सकती, क्योंकि कामना ही बाधा है। जब कोई बाधा नहीं रही, अचानक तुम्हारे अन्दर बुद्धत्व का विस्फोट होता है। तुम्हारे पास बीज तो है ही। जब तुम खाली हो, तो आकाश प्रगट होता है, बीज फूट पड़ता है।

कुछ भी देने को नहीं है, कुछ भी पाने को नहीं है। सब कुछ पूरी तरह से पूर्ण है… जैसा भी है। कुछ भी लेने-देने जैसा नहीं है। तुम जैसे भी हो पूरी तरह से योग्य हो।

तुम्हें कुछ बनना नहीं है, केवल जानो तुम कौन हो, बस। बस जानो तुम्हारे भीतर कौन छिपा है। अगर सुधार करना चाहोगे, जो कुछ भी तुम सुधारोगे, तुम हमेशा चिंतित रहोगे और परेशानी में रहोगे क्योंकि सुधारने मात्र का प्रयास तुम्हें गलत मार्ग पर ले जाएगा। यह भविष्य को अर्थपूर्ण बनाता है, एक अर्थपूर्ण लक्ष्य, अर्थपूर्ण आदर्श, और तब तुम्हारा मन एक कामना हो जाता है।

कामना करने से तुम खोते हो। कामना को शांत होने दो। एक कामनारहित शांत झील बनो और अचानक तुम आश्चर्यचकित हो उठोगे, अनपेक्षित रूप से वह मौजूद होता है। और तुम अट्टहास कर उठोगे, जैसे बोधिधर्म हंसा था।

तब अभ्यास किस बात का करना है? अधिक से अधिक विश्राम में होने का। अधिक से अधिक अभी और यहां होने का। अधिक से अधिक सहज कृत्य में और कम से कम सक्रियता में। अधिक से अधिक खाली, शून्य, निष्क्रिय। अधिक से अधिक एक साक्षी, उपेक्षा,  कुछ अपेक्षा नहीं, कोई कामना नहीं। अपने में प्रसन्न जैसे तुम हो। उत्सवपूर्ण।

और तब, किसी भी क्षण, किसी भी क्षण जब चीजें पक जाती हैं और सही ॠतु आती है, तुम एक बुद्ध के रूप में खिल जाते हो।

ओशो, तंत्रा:दि सुप्रीम अंडरस्टैंडिंग, प्रवचन #4 से उद्धृत

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।

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