कर्म चक्र

कर्म चक्र

हर किसी के जीवन में एक दिन ऐसा आता है, जब वह मुक्त होना चाहता है। जन्म-मरण का चक्र कोई प्रसन्नता का चक्र नहीं है।

सचमुच, मानव की स्थिति बहुत ही दयनीय है। जब वह प्रारब्ध कर्मों को भोग रहा होता है, तब साथ ही साथ संचित कर्मों का भंडार भी भरता रहता है, क्योंकि नए-निए कर्मों के बीज वह निरंतर बोता रहता है। हमारे संचित कर्म निरंतर बढ़ते रहते हैं और इस अनिवार्य सत्य से हम अनभिज्ञ ही रह जाते हैं। अपने ही कर्मों से हम अपने आप को मुक्त नहीं कर पाते और अपने आपको कर्म के पाशों से जकड़ा हुआ अनुभव करते हैं। हम अपना भविष्य जानने के लिए ज्योतिषाचार्यों से परामर्श करते हैं, यह समझे बिना कि हमारे विगत और वर्तमान कर्म ही हमारे भविष्य का निर्माण करते हैं।

एक सदी पुरानी बात मुझे याद आ रही है। उन दिनों ग्रामीणों की स्थिति बहुत ही दयनीय थी। जब भी उन्हें पैसे की ज़रूरत आ पड़ती, तो बेचारे किसान गांव के साहूकार से उधार ले लिया करते। परिवार में शादी हो, संतान हो या किसी का इलाज करवाना हो, कोई भी कारण हो, साहूकार उन्हें खुशी-खुशी कर्ज़ा दे देते।

साहूकार कहता कि आज अगर तुम मुझसे एक हजार रुपए उधार लोगे, तो ब्याज के रूप में हर महीने केवल 40 रुपए चुकाने होंगे।

अज्ञानी किसान बहुत खुश हो जाता, आखिर 40 रुपए महीना चीज़ ही क्या है? एक रुपया, रोज़ से थोड़ा सा ज्यादा। वह संतुष्ट हो जाता कि ब्याज दर बहुत ही उचित है। वह ब्याज का गणित नहीं जानता था, इसलिए यह समझ नहीं पाता कि वस्तुत: उसे 48% ब्याज देना होगा।

ब्याज देते समय साहूकार राषि देने से पहले ही 6 महीने का ब्याज काट लेता है। अत: 240 रुपए शुरू में ही कट गए। ग्रामीण के हाथ में आए कुल 760 रुपए, जिस पर वह हर महीने 40 रुपए ब्याज देता रहता है। यदि किसी कारण वह ब्याज नहीं चुका पाता, तो वह मूल राशि में जोड़ दिया जाता और फिर उस पर नया ब्याज लिया जाता था। अत: वह बढ़ता ही जाता और अपने जीवन काल में वह उसे चुका नहीं पाता था।

कुछ ऐसा ही हमारे संचित कर्मों के साथ होता है। वे दिन दुगने, रात चौगुने बढ़ते रहते हैं। हम उन्हें पूरी तरह भोग नहीं पाते, इसलिए हम निर्दयतापूर्वक कर्म-चक्र एवं जन्म-मरण के चक्र में पिसते रहते हैं।

पुराणों में एक राजा की कहानी है, जिसने अपनी भावी नियति पर नियंत्रण करना चाहा। वह एक संत के पास गया और कहा, “हे संत! आप त्रिकालदर्शी हैं, आप से भूत, वर्तमान और भविष्य की कोई भी घटना छिपी नहीं है। मैं आपसे अनुरोध करता हूं, मुझे बताएं कि भविष्य के भंडार में मेरे लिए क्या है?”

संत ने कहा- “हे राजा! मुझे यह बताओ कि भविष्य को जानकर तुम क्या पाना चाहते हो?”

‘यदि मुझे पता चल जाए कि मेरे साथ क्या बुरा होने वाला है, तो निश्चय ही उस अनहोनी को होने से मैं रोक लूंगा’ राजा ने उत्तर दिया।

संत ने सावधान करते हुए कहा, यदि मैं कहूं कि आप चाहे कुछ भी कर लें, जो होना है उसे आप रोक नहीं सकते।

राजा ने विरोध करते हुए कहा, यहां मैं आपसे सहमत नहीं हूं, यदि मुझे दुर्घटना का पता चल जाए, तो आप और मैं दोनों मिलकर उसे मेरे साथ घटित होने से रोक सकते हैं, अपने लिए हम निश्चित ही कोई रास्ता ढूंढ़ लेंगे।

संत ने कहा-ऐसा ही सही, अब मैं आपके भविष्य की घटनाओं के विषय में बताता हूं और साथ ही यह चुनौती भी देता हूं कि जो होना है उसे आप रोक नहीं सकते, भले ही आप कितना ही कठिन परिश्रम क्यों न कर लें।

मैं इसी घड़ी से शुरू करता हूं। आज गुरुवार है, अगले बुधवार को, कोई आपको एक बहुत ही श्रेष्ठ घोड़ा उपहार स्वरूप देगा। मैं आप से अनुरोध करता हूं कि आप वह घोड़ा मत लेना। पर मैं साथ ही यह भी अभी बता देता हूं कि आप मना नहीं कर पाओगे, आप उसे ले लोगे।

अगले दिन, आप घोड़े पर सवार होकर जंगल में जाओगे और दोराहे पर पहुंचोगे। मैं आप से कह देता हूं कि आप बाईं ओर न मुड़ना, दाईं ओर जाना। पर मैं जानता हूं कि आप बाईं ओर जाओगे और आगे बढ़ते रहोगे।

रास्ते की समाप्ति पर आपको एक दुखी और मुसीबत से घिरी एक सुंदर महिला दिखेगी, जो आपसे मदद के लिए गुहार लगाएगी। हे राजन! मैं आपसे अनुरोध करता हूं कि उस महिला पर दया मत करना, उसकी ओर नज़र उठाकर देखना भी मत, बस घोड़े पर सवार आगे बढ़ते रहना। पर मैं निश्चित रूप से जानता हूं कि आप मेरी इस चेतावनी को नहीं मानेंगे। आप उस महिला की मदद करने के लिए घोड़े से उतर पड़ेंगे।

मुसीबत में पड़ी महिला की ओर, मदद का हाथ बढ़ाते ही वह आपसे आगे ले चलने के लिए विनती करेगी। आप स्वयं को उसके आकर्षण में बहकने मत देना, हालांकि मैं जानता हूं कि आप उसके मोहक सौंदर्य के आकर्षण से बच नहीं पाओगे। आप उसे अपने साथ ले आओगे और अपनी रानी बना लोगे।

उसके तुरंत बाद रानी आपको एक विशिष्ट यज्ञ करने के लिए कहेगी, हे राजन! किसी भी प्रकार आप उनकी इच्छा पूरी करने के लिए स्वीकृति न देना। पर मुझे खेद है कि आप ठीक वैसा ही करेंगे, जैसा वह कहेगी।

यज्ञ के दौरान, एक युवा ब्राह्मण आपके सामने उपस्थित होगा और आपसे यज्ञ में भाग लेने की अनुमति मांगेगा। मेरी सारी चेतावनियों की उपेक्षा करने के बाद राजन कम से कम मेरी यह बात मान लेना, उस युवा ब्राह्मण को यज्ञ में भाग लेने की अनुमति मत देना।

मुझे खेद है, आप अनुमति दोगे और वह आपके यज्ञ में भाग लेगा। यज्ञ प्रक्रिया के चलते हुए वह आपका और आपकी रानी का मज़ाक उड़ाएगा। मैं आपको चेतावनी हेता हूं, हे राजन! उस समय आप अपने क्रोध पर नियंत्रण रखना।

मैं भली प्रकार से जानता हूं कि आप अपने क्रोध पर नियंत्रण नहीं रख पाएंगे और क्रोध के तीव्र आवेश में उस ब्राह्मण की हत्या कर देंगे और ब्रह्म हत्या का घोर पाप आपको लगेगा। आपका शक्तिशाली और सुंदर शरीर कोढ़ के असाध्य रोग से भर जाएगा। इस दर्दनाक स्थिति से आपकी मुक्ति तब होगी जब आप गहन श्रद्धा और भक्ति से महाभारत की कथा सुनोगे।

संत ने कहा, मैंने आपको सब कुछ बता दिया है, खतरों से सावधान भी कर दिया है, परंतु आप अपने कर्मों से बच नहीं सकते।

राजा विचारों में डूब गया और उसने निश्चय किया कि हर कदम पर जहां सावधानी की ज़रूरत पड़ेगी वह संत के सुझाव के अनुसार चलेगा। उसने सोचा कि जिसे आने वाले संकट की जानकारी पहले से हो, वह उसके मुकाबले के लिए कदम कस सकता है। उसे लगा कि पूर्व जानकारी पा लेने के कारण वह परिस्थितियों और घटनाओं को बदल सकेगा।

हर परिस्थिति आई और ठीक उसी तरह गुज़री जैसे कि संत ने कहा था। प्रारब्ध कर्म इतने शक्तिशाली होते हैं कि किसी भी स्थिति में राजा संत के सुझावानुसार चल न सका। हर मोड़ पर उसने गलत फैसला लिया। एक के बाद एक क्रमानुसार घटनाएं घटती रहीं, जब तक कि भविष्यवाणी में कहे गए यज्ञ का आरंभ हुआ और युवा ब्राह्मण ने उसकी बर्दाश्त से बढ़कर उसे उकसाया। प्रभावित न होने के अंतिम प्रयास में राजा ने क्रोध को रोकने का प्रयास तो किया, पर पूरी तरह से असफल रहा और क्रोध में आकर ब्राह्मण की हत्या कर डाली और ब्रह्म हत्या का पाप कर डाला।

अत: प्रारब्ध कर्मों के प्रभाव को टाला नहीं जा सकता, भले ही हम परिणामों से बचने का कितना भी प्रयास क्यों न कर लें। हमारे पास केवल दो विकल्प हैं, जो कुछ घटित हो उसे श्रद्धा भाव से स्वीकार करें, खुशी-खुशी सहन करें या फिर उसका विरोध करें और कष्टमय जीवन बिताएं। हम अपने प्रारब्ध कर्मों को नहीं बदल सकते, पर हम निश्चय ही जीवन के प्रति अपने द्रष्टिकोण को बदल सकते हैं।

अत: प्रश्न यह उठता है कि क्या कर्मों से बचने का हमारे पास कोई उपाय है?

आखिरकार, हर किसी के जीवन में एक दिन ऐसा आता है, जब वह मुक्त होना चाहता है। जन्म-मरण का चक्र कोई प्रसन्नता का चक्र नहीं है। हम भली-भांति समझते हैं कि अगर हमें थोड़ी-सी खुशी मिलती है, तो ढेर सारी यातना, संताप, कष्ट और दुख भी झेलने पड़ते हैं। उस समय हम राहत के लिए रोते हैं क्या बचाव का कोई तरीका है? क्या इससे बचा जा सकता है? इसका रास्ता कैसे ढूंढ़ें? इस कर्म के भार से सदा के लिए मुक्ति कैसे पाएं?

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