इंद्र सभा की अप्सराएं

कुछ पुराण कहते हैं कि अप्सराएं कश्यप ऋषि की बेटियां हैं और कुछ पुराणों के अनुसार उनका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था।

पुराणों में अप्सराओं के बारे में हमने बहुत सुना है। लेकिन आख्यानों में उनका क्या स्थान है? उनमें बताया जाता है कि जब कोई ऋषि तपस्या करता है, तब उसके तप की शक्ति से इंद्र का सिंहासन डोलने लगता है। तब इंद्र अपनी सभा की अप्सराओं से उस ऋषि के तप को भंग करने के लिए कहते हैं। अप्सराओं के नृत्य और संगीत में तपस्या भंग करने की शक्ति होती है। इस प्रकार अप्सराएं प्रलोभन का प्रतीक हैं।

अप्सराओं का पहला उल्लेख ऋग्वेद में मिलता है। यहां पर उर्वशी नामक अप्सरा और पुरुरवा नामक नाशवान मनुष्य के साथ उसके रिश्ते के बारे में बताया गया है। अप्सराएं भूलोक में मनुष्यों के साथ रहने के बाद ऊबकर स्वर्गलोक में लौट जाना चाहती थीं। जब उर्वशी के साथ भी यही हुआ और उसने स्वर्गलोक लौटने की इच्छा जताई, तब पुरुरवा ने उसे रोकने की कोशिश की। चूंकि अप्सराएं किसी से प्रेम नहीं करतीं। तो उर्वशी भी पुरुरवा के लिए नहीं रुकी। इससे पुरुरवा का दिल टूट गया। जब कोई अप्सरा किसी ऋषि की तपस्या भंग कर देती थी, तब उनके समागम से जन्मे बच्चे के पालन-पोषण में भी वह दिलचस्पी नहीं लेती थी और बच्चे को जंगल में छोड़कर चली जाती थी।

यह संभव है कि प्राचीनकाल की गणिकाओं और देवदासियों से प्रेरित होकर अप्सराओं की कथाएं लिखी गईं या फिर अप्सराओं से प्रेरित होकर समाज में गणिकाओं और देवदासियों को बहुत महत्व दिया गया। यह इसलिए कि अप्सराएं 64 कलाओं में निपुण थीं और गणिकाएं भी। एक राजा की महानता केवल उसके शक्तिशाली होने भर से तय नहीं होती थी। इंद्र सभा की तरह उसकी सभा में भी विविध कलाओं में निपुण गणिकाओं की उपस्थिति से उसकी और उसके राज्य की महानता निर्धारित होती थी, उसका दर्जा बढ़ता था। इसलिए प्राचीनकाल में गणिकाओं को समाज में बहुत महत्व दिया गया।

कुछ पुराण कहते हैं कि अप्सराएं कश्यप ऋषि की बेटियां हैं और कुछ पुराणों के अनुसार उनका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था। ‘अप्स’ शब्द जल से जुड़ा हुआ है और ‘तप’ शब्द अग्नि से। जैसे अग्नि और जल के बीच लगातार द्वंद्व होता है, वैसे ही अप्सरा और तपस्वी के बीच द्वंद्व होता है। इसको लेकर भी कई कथाएं मिलती हैं। मेनका और विश्वामित्र की कथा सुप्रसिद्ध है, जिसमें मेनका के कारण विश्वामित्र की तपस्या भंग हो गई। लेकिन उसके पश्चात जब रंभा ने विश्वामित्र की तपस्या भंग करने का प्रयास किया तो उसमें उसे सफलता नहीं मिली।

कई कथाओं में अप्सराओं को श्राप देने के भी प्रसंग मिलते हैं। आद्रिका नामक अप्सरा को श्राप दिया गया था कि वह मछली का रूप लेगी। आद्रिका के गर्भ से दो मनुष्य रूपी बच्चे पैदा हुए, जिनमें से एक बच्चे का नाम सत्यवति था। सत्यवति की कथा हमने महाभारत में सुनी है। ध्यानमलि नामक एक और अप्सरा है, जिसे श्राप दिया गया था कि वह तब तक मगरमच्छ के रूप में पानी में रहेगी, जब तक कि हनुमानजी उस पर विजय प्राप्त कर उसे मुक्ति नहीं देते। कभी-कभी असुरों का संहार करने के लिए भी अप्सराएं जन्म लेती थीं, जैसे तिलोत्तमा का जन्म, जिसे पाने के लिए सुंड और अपसुंड असुरों ने एक-दूसरे को मार डाला।

जब समाज में उन स्त्रियों या नटियों का दर्जा कम होने लगा जो मुक्त थीं या जिनके कई प्रेमी थे, तब धीरे-धीरे लोग अप्सराओं की गिनती वेश्याओं में करने लगे। आज के कई टीवी सीरियल्स में अप्सराओं को बुद्धिहीन और ‘आइटम नंबर’ जैसी लड़कियों के रूप में प्रस्तुत किया गया है। यह इस बात का संकेत है कि आधुनिक समाज में हमने स्त्रियों का स्त्री के रूप में आदर करना छोड़ दिया है। उनकी स्वतंत्रता पर रोक लगाते हुए उन पर बंधन लगाने शुरू कर दिए हैं। विडंबना यह है कि हम स्त्री को केवल देवी के रूप में देखना चाहते हैं, अप्सरा के रूप में नहीं।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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