राजस्व की समझ

इंद्र राजा कैसे बनें

यजुर्वेद के साथ तैत्तिरीय ब्राह्मण जुड़ा है। इसमें इंद्र की दुर्लभ कहानियाँ हैं जो और कही नहीं पाईं जाती।

ब्राह्मण ग्रंथ पुजारियों ने मौखिक रूप से प्रसारित किए, जिस कारण इन पुजारियों कोब्राह्मणकहा जाने लगा। इन ग्रंथों में यज्ञ नामक वैदिक अनुष्ठान करने के निर्देश और निरूपण हैं। चारों वैदिक संहिताओं के साथ ब्राह्मण ग्रंथ जुड़ें हैं। यजुर्वेद के साथ तैत्तिरीय ब्राह्मण जुड़ा है। इसमें इंद्र की दुर्लभ कहानियाँ हैं जो और कही नहीं पाईं जाती। इन कहानियों से हमें पता चलता है कि 3,000 वर्ष पहले, वैदिक काल में, राजत्व की क्या समझ थी। 2,000 वर्ष पहले, पौराणिक काल में, इस समझ में बहुत बदलाव आया। तब तक इंद्र ने वैदिक काल का अपना उच्च दर्जा खो दिया था और वे विष्णु से हीन एक असुरक्षित देवता बन गए थे।

इन कहानियों के अनुसार देवों का निर्माण प्रजापति ने किया। इंद्र सबसे छोटे देव थे। हालाँकि प्रजापति ने इंद्र को राजा घोषित किया, चूँकि इंद्र सबसे छोटे थे उनके बड़े भाइयों ने उनके आधिपत्य को स्वीकार नहीं किया। इसलिए इंद्र ने प्रजापति के पास जाकर उनसे उनका तेज मांगा। इस तेज के साथ इंद्र अपने भाइयों से और शक्तिशाली बन गए और उन्हें इंद्र का आधिपत्य स्वीकारना पड़ा। और इंद्र ने प्रजापति को निस्तेज कर दिया। यहाँ तेज शक्ति के लिए रूपक है। किसी राजा को स्थापित करने के लिए शक्ति वरिष्ठता से अधिक महत्त्वपूर्ण है।

एक और कहानी में यह बताया गया है कि इंद्र ने अपनी प्रजा से कर कैसे इकठ्ठा किए। चूँकि उन्होंने लोगों पर बहुत ज़्यादा कर लगाए, लोग उनसे नाखुश थे। जब इंद्र ने पूर्व में कर अधिकारी भेजें तब लोग उनसे बचने के लिए दक्षिण भागें। फिर, जब इंद्र ने दक्षिण में अधिकारी भेजें तब लोग पश्चिम की ओर भागें, और जहाँ से वे उत्तर की ओर भाग गए। अंत में जब कर अधिकारी उत्तर पहुंच गए तब प्रजा अधिकारियों को कर देने के लिए विवश हो गई। लोग स्वेच्छा से कर कभी नहीं देते थे और उन्हें हमेशा लगता कि कर बहुत ज़्यादा था, जिस कारण इंद्र को कर इकठ्ठा करने के लिए अधिकारी भेजने पड़ें।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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