हर दर्द की दवा मुस्कान

हर दर्द की दवा मुस्कान

बहुत ही सुंदर एक कहावत है कि जीने के लिए मनुष्य का खाना एक गुणा, पीना दो गुणा, शारीरिक श्रम तीन गुणा एवं मुस्कुराना चार गुणा होना चाहिए। लेकिन आज के मनुष्य की जीवन प्रणाली इसके सर्वथा विपरीत है। जिस मुस्कान के लिए इंसान सब कुछ कर रहा है वही मुस्कान उससे कोसों दूर होती जा रही है।

सृष्टि रंगमंच पर हम मनुष्य ही एकमात्र सौभाग्यशाली प्राणी हैं, जिन्हें परमात्मा ने सौगात के रूप में मुखमंडल पर मुस्कान दी है। आइए, हम जानें कि यह मुस्कान गायब होने का कारण क्या है तथा उसे पुनः मुख पर लाने का उपाय क्या है?

जीवन में रोना किसी को सिखाया नहीं जाता, वह तो अपने आप आ जाता है। किसी ने दुखदाई कुछ कहा, मनमुटाव हुआ, कोई बात बिगड़ गई, किसी के प्रति ईर्ष्या अथवा द्वेष के कारण तनाव उत्पन्न हुआ और हमारी हंसी चली जाती है। हम गम के सागर में डूब जाते हैं। इसलिए आज की दुनिया में कुछ और देखने को मिले या न मिले, उदास व्यक्ति के दर्शन ज़रूर हो जाते हैं। जो हमेशा ही उदास रहता है, तनाव में रहता है, उसके साथ बात करना भी कोई पसंद नहीं करता है। कई ऐसे इंसान भी हैं जो अपने मन में बहुत प्रकार की तकलीफें, द्वंद्व, नकारात्मकता आदि लेकर चलते हैं और अपनी मायूसी छिपाने के लिए बनावटी हंसी हंसते हैं। मनोविज्ञान के अनुसार 90 बीमारियों का मूल कारण है तनाव और न मुस्कुराना। इससे हमारी कई आंतरिक शक्तियां नष्ट हो जाती हैं। एक छोटा बच्चा दिन में 80 से 100 बार हंसता है, वही इंसान बड़ा होकर हंसने के लिए लाफिंग क्लब जाता है या टीवी पर बहुत प्रकार के लाफ्टर शो देखता है।

मुस्कुराने से जीवन का तनाव और कड़वाहट समाप्त हो जाते हैं। इसीलिए कहावत है ”एक मुस्कान हजारों कुर्बान”। यह ज़िंदगी तो एक खेल की तरह है, खेल में हार और जीत दोनों हैं। जीतने के बाद तो सभी मुस्कुरा लेते हैं, यह बहुत सहज है लेकिन जो हार खाने के बाद भी मुस्कुराता है, उसका मूल्य समाज में बहुत बढ़ जाता है। हास्य-प्रिय लोग किसी भी बात का बुरा नहीं मानते। इतिहास में भी ऐसे अनेक व्यक्तियों का उदाहरण है, जिनके जीवन में बहुत कठिनाई, दुख, दर्द होने के बावजूद भी उन्होंने मुख से मुस्कान को जाने नहीं दिया और इसी वजह से वे अपने दुख को दूर करने के साथ-साथ औरों के जीवन में भी खुशी लाने में सक्षम बने। मुस्कराता हुआ व्यक्ति बहुत सहज ही सभी को अपना बना लेता है। महात्मा गांधी, स्वामी विवेकानंद, श्री कृष्ण, विदूषक तेनाली रमण अथवा प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की पूर्व मुख्य प्रशासिका दादी प्रकाशमणि, वर्तमान मुख्य प्रशासिका दादी जानकी इसका ज्वलंत उदाहरण हैं।

अगर कभी किसी के प्रित ईर्ष्या अथवा द्वेष के कारण मन विचलित हो जाता है, तो हम सभी को एक बात अवश्य ख्याल में रखना चाहिए कि वर्तमान में हमें जो कुछ मिला है, समाज में कइयों को उतना भी प्रात नहीं है। जब यह सोचेंगे तो अवश्य ही अपने भाग्य पर गर्व करते हुए जीवन व्यतीत कर पाएंगे। अगर कोई हमें नफरत, स्वार्थ अथवा घृणा की नज़रों से देखे, फिर भी हम उसके प्रित प्रेम, करुणा एवं दया की भावना रखें, तो हम सहज ही मुस्कुरा सकेंगे।

चेहरे की सच्ची सुंदरता मुस्कान ही है। आजकल खूबसूरती के लिए क्रीम, पाउडर आदि से काले चेहरे को भी गोरा किया जाता है। मेकअप अथवा कॉस्मेटिक सर्जरी के द्वारा चेहरे की रूपरेखा ही बदल दी जाती है, लेकिन इस प्रकार की सुंदरता तो क्षणिक और विनाशी है। असली सुंदरता तो मीठी मुस्कान है, जो हमारी सच्चाई का प्रतीक है और सच्चाई को प्रात करने के लिए हर परिस्थिति में सकारात्मक दृष्टिकोण रखना ज़रूरी है। मुस्कुराता हुआ मुख एवं दमकती हुई आंखें भला किसे प्रभावित नहीं करेंगी, मुस्कान से व्यक्तित्व आकर्षक बन जाता है।

मुस्कान सिर्फ हमारे शारीरिक स्वास्थ्य के लिए ही नहीं, बल्कि मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी बहुत बड़ा टॉनिक है। एक मीठी मुस्कान सैकड़ों दवाइयों से बेहतर है। मुस्कुराने से हमारे शरीर की सभी कर्मेन्द्रियों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है और मन भी सक्रिय हो जाता है। तो आइए हम सभी मुसकान रूपी दवाई के द्वारा अपने जीवन से मायूसी के पर्दे को सदा के लिए हटाकर, हर दर्द को भुलाकर, जीवन को खुशी और आनंद के साथ जीएं।

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