एकमत से विजय

एकमत से विजय

किसी भी कार्य में सफलता पाने के लिए आपसी एकता होना बहुत ज़रूरी है। एकता के लिए चाहिए आपसी स्नेह और विश्वास।

स्नेह के आधार से ही सहयोगी बन पाते हैं। सहयोगी बनने के लिए अपने आपको मिटाना पड़ता है अर्थात अपने पुराने संस्कारों को मिटाना होता है।

माला के मणकों की विशेषता यह है, जो एकमत होकर, एक ही धागे में पिरोए जाते हैं। यदि किसी बात में भिन्नता हो जाती है, तो उसे समाना है और विशेषता को देखना है। जैसे सूर्य को ग्रहण लगता है तो कहते हैं, नहीं देखना चाहिए, नहीं तो ग्रहचारी बैठ जाएगी। इसी प्रकार, किसी की कमी भी ग्रहण है, सबके साथ एकता में रहते उसे देख लिया तो समझो ग्रहचारी बैठ जाएगी। एकमत से कैसे विजय होती है, इस पर एक कहानी इस प्रकार है;

किसी जंगल में एक शेर रहता था, जिससे सभी पशु-पक्षी बहुत डरते थे। शेर रोज किसी एक जानवर को मारकर अपना पेट भरता था। उसी जंगल में खरगोश, कछुआ, बंदर और हिरण, ये चारों पक्के और सच्चे दोस्त थे, जो हमेशा हर जानवर की मदद करने को तैयार रहते थे।

एक दिन एक भेड़िया पहली बार उस जंगल में आ पहुंचा। रास्ते में उसे एक भालू मिला। भालू ने उसे जंगल के सारे कायदे-कानून बताए और यह भी बताया कि यहां का राजा शेर रोज एक जानवर को मारकर खा जाता है, तुम उससे बचकर रहना। चालाक भेड़िए ने सोचा, शेर से मित्रता करके उसका हितैषी बनकर उसका दिल जीतना चाहिए, इससे मेरी जान तो बच ही जाएगी।

भेड़िया शेर की गुफा की तरफ गया और वहां सोए हुए शेर के पैर के पास बैठ गया। शेर नींद से जागा और पास बैठे भेड़िए को खाने को उद्यत हुआ तो भेड़िया चिल्लाया, महाराज, मुझे खाने से पहले मेरी बात सुन लीजिए। शेर ने कहा, कहो, क्या कहना है? भेड़िये ने कहा, महाराज, पशुलोक से, पशु-देवता ने आपकी सेवा के लिए मुझे भेजा है। अब आपको शिकार पर जाने की कोई ज़रुरत नहीं है। आज से यह सेवक आपको यहीं शिकार लाकर देगा। शेर ने भेड़िए की बात मान ली।

दूसरे दिन भेड़िए ने जंगल में ढिंढ़ोरा पिटवाया कि मैं पशुलोक से राजा शेर का सेवक बनकर आया हूं। अब रोज एक प्राणी मेरे साथ चलकर जंगल के राजा की भूख मिटाएगा। जो इस आज्ञा को नहीं मानेगा उसे इस जंगल से बाहर कर दिया जाएगा। जंगल के सभी जानवर डर गए और भेड़िए की बात मानने को तैयार हो गए।

जानवरों के शेर के पास जाने के क्रम में एक दिन चारों मित्रों में से खरगोश की बारी आई और भेड़िया उसे अपने साथ ले जाने लगा। तभी वहां हिरण, बंदर और कछुआ भी आ पहुंचे और उसके साथ जाने की जिद्द करने लगे। शेर के सामने पहुंचकर चारों ने बारी-बारी अपनी बात शेर से कही। सबसे पहले खरगोश बोला, महाराज, आज मैं आपका भोजन हूं, मुझे खा लीजिए पर इन सबको छोड़ दीजिए। फिर कछुआ बोला, महाराज, आप अकेले खरगोश को नहीं खाइए, मुझे भी खाइए, आपका पेट भर जाएगा, बंदर और हिरण को छोड़ दीजिए। तभी बंदर कहता है, महाराज, इन तीनों को छोड़ दीजिए, मैं बड़ा हूं, मुझे अपना भोजन बना लीजिए। इतने में हिरण बोल पड़ा, महाराज, इन तीनों को छोड़ दीजिए, मैं अकेला इन तीनों के बराबर हूं, आप मुझे अपना शिकार बना लीजिए।

इन सबकी बातें सुनकर भेड़िया कहता है, महाराज, देर ना करें, इन चारों की बातों में ना आएं, एक झटके में इनको खत्म करके अपनी भूख मिटाएं। तभी शेर ने चारों को अपने पास बुलाया और कहा, मैं तुम्हारी सच्ची एकता, मित्रता और त्याग देखकर बहुत खुश हुआ। मैं भूल गया था कि तुम लोगों की वजह से ही ये जंगल है। इस भेड़िए की बातों में आकर मैं भटक गया था। आज से ये जंगल आप लोगों को सौंपकर मैं दूर जा रहा हूं। यह कहकर शेर ने भेड़िए को अपना शिकार बनाया और दूसरी दिशा में चला गया।

कहानी का सार यही है कि जहां त्याग, प्रेम, एकता और दूसरों को देने की भावना हो वहां असंभव भी संभव हो जाता है।

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