भगवान का अर्थ

भगवान शब्द का स्रोत ‘भाग’ इस शब्द में है। हर मनुष्य इस जीवन की प्रसन्नता का एक भाग अपने लिए चाहता है।

वेदों में भगवान इस शब्द का कोई उल्लेख नहीं है। हालाँकि वेदों में परमात्मा की धारणा की विविध प्रकार से जांच की गई है, उनमें भगवान की कोई निश्चित धारणा नहीं है। यह धारणा हम केवल पुराणों में पाते हैं। वेद 4000 वर्ष पहले और पुराण 2000 वर्ष पहले रचे गए। वेद अनुष्ठानों से अधिक आसक्त थे। लेकिन पौराणिक काल तक सर्वशक्तिमान के प्रति समर्पण के विचार को बहुत महत्त्व दिया जाने लगा, जिन्हें अक्सर भगवान के रूप में पहचाना गया।

बौद्ध और जैन धर्मों में भगवान शब्द का उपाधि के रूप में उपयोग होता है। दोनों मठवासी धर्मों में परमात्मा की धारणा को कोई महत्त्व नहीं दिया जाता। इसके बदले में वे सांसारिक जीवन के बंधनों से मुक्त होने में अधिक रूचि रखते हैं। जो लोग यह कर पाते हैं उन्हें भगवान कहा जाता है। इसलिए जैन धर्म में भगवान महावीर और बौद्ध धर्म में भगवान बुद्ध का उल्लेख है। इन मठवासी संप्रदायों में भगवान सार्वभौमिक ज्ञान अर्थात कैवल्य प्राप्त करते हैं। इसलिए वे उन भयों और इच्छाओं में फंस नहीं जाते जो साधारण लोगों को पीड़ित करते हैं। बुद्धिमानों में सबसे बुद्धिमान व्यक्ति को भगवान कहा जाता है।

हिंदू धर्म में भगवान शब्द बहुधा विष्णु को संदर्भित करता है। वे परमात्मा हैं, जो राम और कृष्ण के रूप में विश्व से कुछ मांगे बिना, उसके साथ जुड़ते हैं। हम यज्ञ नामक वैदिक अनुष्ठान के माध्यम से हिंदू धर्म में भगवान का अर्थ समझ सकते हैं।

यज्ञ इस समझ पर आधारित है कि सभी जीवों को भूख लगती है। यज्ञ के माध्यम से इन भूखे जीवों में आदानप्रदान होता है। यज्ञ शुरू करने वाले यजमान देवों का आवाहन कर उन्हें खिलाते हैं। इस प्रकार, देव यजमान को खिलाने के लिए बाध्य हो जाते हैं।

2500 वर्ष पहले जब मठवासी संप्रदायों का उगम हुआ, तब लोग इस बात पर विचार करने लगें कि क्या भूख को वश में करना संभव था। बुद्ध ने माना कि भूख इच्छा है। जैन धर्म के जिनों ने माना कि भूख वह बंधन थी जो जीवों को उच्च लोक प्राप्त करने से रोकती थी। हिंदुओं ने एक ऐसे व्यक्ति की कल्पना की जो भूख से परे जा चुके हैं और इसलिए जो देवों से श्रेष्ठ हैं। ये महादेव अर्थात ईश्वर अर्थात शिव हैं। लेकिन, शिव को कभी भूख नहीं लगती थी और इसलिए उन्हें यज्ञ में भाग लेने का कोई कारण नहीं था। यज्ञ में भाग लेने वाले परमात्मा को भूखों के लिए सहानुभूतिशील होना आवश्यक था। ये परमात्मा विष्णु हैं। इस प्रकार, ईश्वर (शिव ) और भगवान (विष्णु) देवत्व के दो पहलुओं के मूर्त रूप हैं।

भगवान शब्द का स्रोतभागइस शब्द में है। हर मनुष्य इस जीवन की प्रसन्नता का एक भाग अपने लिए चाहता है। हमें अक्सर लगता है कि हमें जो भाग मिला है वह दूसरों को मिलें भाग से कम है। जब अपनी संपत्ति बांटने का समय आता है तब हम नहीं जानते कि किसे कितना भाग मिलना चाहिए। केवल परमात्मा जानते हैं कि कर्म के आधार पर किसे कितनी संपत्ति मिलनी चाहिए। केवल वे उचितभागतय कर सकते हैं और इसलिए उन्हें भगवान कहते हैं।

भाग का अर्थ गर्भ या सांसारिक आनंद या भाग्य भी है। दूसरे शब्दों में कहना हो तो भाग शब्द सांसारिक विश्व को संदर्भित करता है। संपूर्ण सांसारिक आनंद, संपत्ति और भाग्य इस गर्भ रुपी विश्व में स्थित हैं। भगवान वे परमात्मा हैं जो इस सांसारिक विश्व, उसमें स्थित इंद्रिय आनंदों और भाग्य के साथ जुड़ते हैं। भगवान विश्व से पीछे नहीं हटते हैं। शिव, बुद्ध और महावीर के विपरीत वे संन्यासी नहीं हैं।

भगवान को पूजने वालों को भगवत कहा जाने लगा। उनका शिलालेखों में सबसे पहला उल्लेख मध्य प्रदेश के विदिशा में पाए जाने वाले एक शिलालेख में मिलता है। गरुड स्तंभ पर ब्राह्मी लिपि में वासुदेव (विष्णुकृष्ण) को समर्पित इस शिलालेख को सन 100 ईसा पूर्व तक कालांकित किया गया है। वह तक्षशिला के एक भारतीययूनानी राजदूत थे, जिन्हें यवन राजा अंतलिखित के दरबार से भगभद्र के दरबार में भेजा गया था। उसका नाम हेलियोडोरस था।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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