बाहर परिवर्तन लाने की बजाय अपने अंदर परिवर्तन लाएं

बाहर परिवर्तन लाने की बजाय अपने अंदर परिवर्तन लाएं

जब परिस्थितियां हमारे विपरीत जाती हैं तो उस समय हमारे संकल्पों की गति हो जाती हैं,उस समय हमारी फीलिंग भी बदलने से एहसास होता हैं कि कुछ गड़बड़ हैं।

मानो कि अचानक ऑफिस में कुछ ऊपर-नीचे हो गया, आप देख रहे हैं कि लोग बहुत ही निगेटिविटीज में जा रहे हैं। कम्पयूटर क्रैश हो गया उसमें बहुत डेटा था, आप तुरन्त एक मिनट रुके और कहे कि ओके, यह संयोगवश हो गया लेकिन मैं देखता हूँ कि इस वक्त मैं क्या कर सकता हूँ। मतलब कि आप कॉनसियस होंगे कि आप कौन सी क्वालिटी ऑफ थॉट्स रिएक्ट कर रहे हैं। जितना हम धीरे-धीरे ये करेंगे हमें अवेयरनेस आती जायेगी कि अच्छा या बुरा ये तो मैं रिएक्ट करती हूँ।

तो जो हम पहली चीज रिएक्ट करते हैं अंदर, वो संकल्प होती है। जिस क्वालिटी के संकल्प होंगे उसी क्वालिटी की फीलिंग भी होगी। इन दोनों में कभी भी अंतर नहीं आयेगा। मतलब कि आप पॉजिटिव थॉट रिएक्ट करते हैं तो पॉजिटिव फीलिंग भी होगी, निगेटिव थॉट रिएक्ट करेंगें तो निगेटिव फीलिंग भी आयेगी। ये कभी भी नहीं होगा कि आप पॉजिटिव थॉट रिएक्ट करें और आपको निगेटिव फीलिंग हो।

आवश्यकता इस बात की है बाहर परिवर्तन लाने के बजाय हम अपने अंदर परिवर्तन लायें। अगर मैं दर्द में हूँ, मुझे ऐसा लगेगा कि आपने ऐसा किया, इसलिए मैं दर्द में हूँ। अगर मुझे इस दर्द से बाहर निकलना है, तो अपने साथ प्यार से बैठकर अपने थॉट की क्वालिटी को चेक करना होगा। जैसे-जैसे मैं अपने थॉट की क्वालिटी को चेज करती जाउंगी वैसे वैसे मैं आपके प्रति पॉजिटिव सोचने लगूंगी और हमारा आपके प्रति दृष्टिकोण बदलता जायेगा। जैसे ही हमने थॉट की क्वालिटी को चेंज करना शुरु किया तो स्वयं में भी परिवर्तन आता है। हम स्वयं धोखा नहीं दे रहे हैं, सिर्फ अपनी क्वालिटी ऑफ थॉट को चेंज कर रहे हैं। सामने जो व्यक्ति है वह वैसा ही है, परिस्थितियां भी वैसी ही हैं, पर मैं उस अनुरुप अपने थॉट में परिवर्तन ला रही हूँ।

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