आदर्श हिंदू पिता

हिंदू माइथोलॉजी में अच्छे से लेकर बुरे और प्रेममय से लेकर उदासीन तक, हर प्रकार के माता-पिता हैं।

भारतवासी अपनी मांओं से आसक्त हैं। बॉलीवुड फ़िल्मों से यह स्पष्ट है। मां कोई ग़लती नहीं कर सकती। अपने बच्चों के लिए वह हमेशा जीवन न्योछावर करती है। इसके विपरीत मान्यता यह है कि पिता कठोर होते हैं और अपने बेटों से आज्ञाकारिता की अपेक्षा रखते हैं। हिंदू माइथोलॉजी में ये अक्सर दर्शाया जाता है। लेकिन ऐसे निष्कर्ष एकपक्षीय हैं। चूंकि हिंदू माइथोलॉजी में अच्छे से लेकर बुरे और प्रेममय से लेकर उदासीन तक, हर प्रकार के माता-पिता हैं।

उदाहरणार्थ, रामायण में दशरथ अपने बेटों के प्रति आसक्त थे। इसलिए, वे उन्हें अपनी नज़रों से बाहर जाने देने को अनिच्छुक थे। इसलिए, जब विश्वामित्र ने राजकुमारों को जंगल स्थित आश्रम में शिक्षा देने का प्रस्ताव रखा, तब दशरथ ने उन्हें मना किया। दूसरी ओर, जनक, जिन्हें सीता एक मैदान में मिली, ने ख़ुशी-ख़ुशी उनकी परवरिश की। रावण का बेटा उन्हें इतना चाहता था कि वह उनके लिए लड़ने और मरने के लिए भी तैयार था, यह जानने के बावजूद कि रावण दूसरे की पत्नी को बंदी बनाकर ग़लत कर रहा था।

महाभारत में शांतनु की पत्नी, गंगा, ने उसे छोड़कर उनके बच्चे की अपने दम पर परवरिश की। जब एक ऋषि और अप्सरा ने अपने जुड़वां बच्चों, कृपा और कृपि, को वनभूमि में त्याग दिया तब शांतनु ने उनकी परवरिश की। पांडु के बच्चे वास्तव में उसके जैविक बच्चे नहीं थे; देवों की मदद से उसकी दो पत्नियों का गर्भधारण हुआ था। चूंकि वे पांडु की न्यायसंगत पत्नियों के बच्चे थे, इसलिए कुरु नियमों के अनुसार वे पांडव अर्थात पांडु के बच्चे बनें और उसके राज्य के यथोचित उत्तराधिकारी बन गए।

कृष्ण की कहानी में हमारा परिचय प्रेममय पिताओं से होता है: उनका पालन-पोषण करने वाले पिता, नंद और उनके जैविक पिता, वासुदेव से। स्वयं कृष्ण के कई बेटे, जैसे प्रद्युम्न और सांब तथा अनिरुद्ध जैसे पोते थे। बाणासुर की बेटी से प्रेम करने के लिए कैद अनिरुद्ध को छुड़ाने के लिए कृष्ण और प्रद्युम्न बाणासुर से लड़ें। दुर्योधन की बेटी से प्रेम करने के लिए कैद किए गए सांब को छुड़ाने के लिए बलराम दुर्योधन से लड़ा।

हम हिरण्यकशिपु जैसे बुरे पिता भी पाते हैं, जिसने अपने बेटे प्रह्लाद को इसलिए तड़पाया कि उसने उनसे अधिक विष्णु को महत्त्व दिया। उत्तानपाद अपनी एक पत्नी से इतना मोहित हुआ कि उसने अपनी दूसरी पत्नियों के बच्चों को और विशेषतः ध्रुव की उपेक्षा की। इसलिए ध्रुव घर छोड़कर एक ऐसे पिता की खोज में निकला जो उसे हमेशा प्रेम करते। अंत में उसे विष्णु की दिव्य गोद में जगह मिल गई।

शांतनु ने उनसे छोटी उम्र की महिला से विवाह करने के लिए अपने बेटे को संभवतः आनंदमय, वैवाहिक जीवन से वंचित किया। ययाति ने अपने बेटों से कहा कि उसके प्रति प्रेम व्यक्त करने के लिए उन्हें अपने यौवन के बदले उनका बुढ़ापा लेना होगा। राम ने गर्भवती सीता की पवित्रता पर अपने राज्य की अफ़वाहों पर विश्वास कर उन्हें राज्य छोड़ने के लिए कहा, जिस कारण सीता को उनके बेटों का अकेले जंगल में पालन करना पड़ा।

महाभारत में अर्जुन के बेटों को उनकी मांओं ने बड़ा किया – चित्रांगदा ने बब्रुवाहन को, उलूपी ने इरावन को और सुभद्रा ने अभिमन्यु को बड़ा किया। भीम की राक्षसी पत्नी हिडिंबा ने उनके बेटे घटोत्कच को बड़ा किया। यहां बेटों के पालन-पोषण में पिताओं का कोई योगदान नहीं था।

रामायण और महाभारत दोनों में पिताओं और बेटों में लड़ाई हुई। लव और कुश ने राम के राजसी घोड़े पर दावा कर उनसे लड़ाई की। बब्रुवाहन ने अर्जुन के घोड़े को अपने राज्य में आने से रोका। इसके बाद हुई लड़ाई में बेटे ने पिता का वध किया और फिर पिता को पुनर्जीवित किया गया। हम इसे आदर्श न्याय समझ सकते हैं क्योंकि बब्रुवाहन ने अपने पिता को उसकी मां को त्यागने का दंड दिया।

पुराणों की कई कहानियों में अपने बच्चों के जन्म के बाद अप्सराओं ने उन्हें त्याग दिया। जिस कारण पुरुषों ने उनका पालन-पोषण किया, जैसे विभण्डक ने ऋष्यश्रृंगमुनि, भरद्वाज ने द्रोणाचार्य और व्यास ने शुक का पालन-पोषण किया।

ऐसी सबसे पहली कहानी ऋग्वेद में है, जहां उर्वशी पुरूरव और उनके बच्चों को छोड़कर स्वर्ग की विलासिता में लौट गई।

इस प्रकार, हमें विभिन्न पिताओं की कहानियां मिलती हैं। इसलिए, यह कह पाना बहुत कठिन है कि सभी हिंदू पिता केवल एक प्रकार के होते हैं, चाहें ऐसा करना कुछ लोगों को बहुत पसंद क्यों न आता हो।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।