अच्छे ‘नेता’ के बारे में क्या कहती हैं हमारी पौराणिक कथाएं?

त्रेता युग में लोग संपत्ति और महिलाओं का आदर किया करते थे। लेकिन, त्रेता युग की समाप्ति के बाद लोग दूसरों की संपत्ति पर अपना हक जमाने लगे, महिलाओं का अनादर करने लगे। झूठ बोलना और चोरी करना भी मामूली बातें बन गईं।

इस बात से चिंतित होकर कुछ लोग ब्रह्मा (Brahma) के पास गए। ब्रह्मा ने लोगों को अनुशासित करने और धर्म अनुसार आचरण करने के लिए धर्म, अर्थ और काम को लेकर नियम बनाए। लेकिन, ये नियम काफी जटिल थे। तो पहले भगवान शिव और फिर देवों के गुरु बृहस्पति व असुरों के गुरु शुक्र ने नियमों को छोटा और सरल बनाया।

लेकिन, लोगों ने इन नियमों का भी आदर नहीं किया। इसलिए लोग भगवान विष्णु (Bhagwan Vishnu) के पास गए। विष्णु ने अपने मन से विराज को जन्म दिया। विराज को विश्व पर राज करने के लिए कहा गया। लेकिन वे नहीं माने। उनके बेटे और पोते ने भी राजपद से इनकार कर दिया। आखिरकार इनके बाद जन्मे अनंग राजा बने। वे अच्छे राजा साबित हुए। लेकिन अनंग के बेटे अतिबल अच्छे राजा की कसौटी पर खरे नहीं उतरे। वे राज करने की बजाय ‘स्वांत: सुखाय’ में लगे रहे।

अतिबल के बेटे वेना उनसे भी बुरे राजा निकले। वे भोग-विलास में निमग्न रहने वाले, वहशी, लोभी और दुष्ट थे। इसलिए ऋषियों ने पवित्र कुश घास लेकर उनका वध कर दिया और उनके शव का मंथन किया। मंथन में वेना की दाहिनी जांघ से एक असभ्य व्यक्ति ने जन्म लिया, तो उसे जंगल में भगा दिया गया। दाहिने हाथ से एक सज्जन बालक ने जन्म लिया। विष्णु ने उसमें प्रवेश किया। ऋषियों ने उन्हें शिक्षा दी और देवों ने उन्हें धनुष देकर उनका राजा के रूप में अभिषेक किया। नीच राजाओं और उनसे भी बुरी प्रजा के बर्ताव से धरती माता चली गई थी। इस राजा ने धरती को आश्वस्त किया कि जैसे एक ग्वाला गाय की देखरेख करता है, वैसे ही वे उनकी करेंगे। धर्म के अनुसार नियम ईस्थापित करेंगे ताकि लोग धरती का उपयोग तो करें, लेकिन शोषण किए बिना।

महाभारत (Mahabharat) के शांति पर्व में भीष्म ने पांडवों को यह कहानी बताई। राजाओं के आविर्भाव के बारे में उन्होंने एक दूसरी कहानी भी बताई। इस कहानी के अनुसार त्रेता युग के बाद लोगों ने आपस में समझौते किए कि संपत्ति और महिलाओं का अनादर करने वाले लोगों से कैसे छुटकारा पाना चाहिए। लेकिन, इन समझौतों को अमल में लाना मुश्किल था। इसलिए वे ब्रह्मा के पास गए ताकि किसी को राजा नियुक्त किया जा सके। ब्रह्मा ने मनु को चुना। मनु जानते थे कि नियम लागू करने के लिए राजाओं को अपना काम क्रूरता से करना ज़रूरी था। इसलिए मनु राजा बनने में संकोच कर रहे थे। लेकिन, लोगों ने मनु को आश्वासन दिया कि उनके कठोर बर्ताव की वजह से उन्हें कोई पाप नहीं लगेगा। सिपाही उनकी आज्ञा का पालन करेंगे। उन्हें सभी लोगों का पुण्य मिलेगा। मनु ने यह व्यवस्था स्वीकार की और वे पहले राजा बन गए। सूर्यवंश और चंद्रवंश की शुरुआत उनसे हुई।

बुद्ध द्वारा बताई कहानी इससे कुछ अलग है। उन्होंने माना कि राजपद का निर्माण समाज में अशांति के कारण किया गया। लोग अशांति से तंग आ गए थे और ऐसे व्यक्ति की खोज करने लगे जो सबसे खूबसूरत था और जिसके आकर्षक व्यक्तित्व से लोग उसकी आज्ञा का पालन भी करते। लोगों ने उसे राजा घोषित किया और उसे अपनी अक्लमंदी के अनुसार लोगों की आलोचना करने, उन्हें शिक्षा देने और देश से बाहर निकालने तक का अधिकार दिया। राजा को वे सब अपनी पैदावार का एक हिस्सा भी देते। लेकिन, एक राजा सम्मानित राजा सिर्फ तब बनता है, जब वह बौद्ध धर्म के ‘धम्म’ के अनुसार राज करता है। इससे चक्रवर्ती (विश्व का राजा) ‘धम्मो धम्म राजा’ (धार्मिक और नैतिक राजा) बन जाता है।

इन शास्त्रों से स्पष्ट है कि लोग ही नेता को नियुक्त करते हैं। यह नेता लोगों में से ही चुना जाता है और लोगों की सेवा करता है। इस सेवा के लिए उसे पारिश्रमिक भी दिया जाता है। लेकिन, उसकी सफलता उसकी बुद्धिमत्ता पर निर्भर करती है, जिसे हिंदू धर्म आत्मज्ञान कहता है और बौद्ध धर्म ‘धम्म’। इनके अनुसार, नेता अपनी इच्छाओं को बढ़ावा नहीं देता, बल्कि उनसे लगाव कम करते जाता है। इसके साथ वह राज्य में ऐसा वातावरण निर्माण करता है, जिससे कि उसकी प्रजा फल-फूल सकें।