आध्यात्मिकता द्वारा व्यापार-उद्योग में दृष्टिकोण परिवर्तन

आध्यात्मिकता द्वारा व्यापार-उद्योग में दृष्टिकोण परिवर्तन

व्यापार-उद्योग करके अति धन कमाने की अक्सर हमारी वृत्ति रहती है लेकिन धन के प्रति भी दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है।

व्यापार-उद्योग में व्यस्त रहते हुए हम सहज जीवन जी सकें, हल्केपन का अनुभव कर सकें, इसके लिए हमें दृष्टिकोण में परिवर्त्तन करना जरुरी है तथा समस्या रहित व्यापार के लिए रचनात्मक साधन और आध्यात्मिक प्रज्ञा का साथ होना जरुरी है।

व्यापार और व्यवहार में जब कभी कोई समस्या आती है तो हम उसका समाधान बाहर ढूंढ़ते हैं परंतु कई समस्याओं का कारण हम स्वयं ही होते हैं इसलिए पहले हमें स्वदर्शन कर अपने अंदर से समाधान ढूंढ़ना चाहिए।

परिस्थिति या व्यक्ति को बदलने में बहुत राह देखनी पड़ती है क्योंकि वे हमारे कंट्रोल में नहीं हैं, हम स्वयं पर कंट्रोल सहज कर सकते हैं। इससे हम कम समय में बड़ा परिणाम प्राप्त कर सकते हैं तथा न उलझेंगे न तनावग्रस्त होंगे।

व्यापार में जब हम निष्फल होते हैं तो बहुत जल्दी डर जाते हैं लेकिन आध्यात्मिकता सिखाती है कि उस समय हमें अपने आपमें धीरज और आत्मविश्वास धारण करना चाहिए। कई बार उस निष्फलता की परिस्थिति में जल्दी परिणाम पाने के निर्णय, और ही भूलों को जन्म देते हैं। इसके बजाय उस समय हम बहुत सावधानीपूर्वक मूल्यांकन कर निर्णय लेते हैं तो टिकाऊ परिणाम पा लेते हैं। व्यापार में मंदी की स्थिति है तो उस समय हमारे में सयानापन हो, समझदारी से काम लेना जरुरी है। अगर व्यापार अच्छा है तो हमारे में संतुष्टता हो। अति लोभ, पाप का मूल है और अनर्थ को न्योता देता है।

व्यापार-उद्योग करके अति धन कमाने की अक्सर हमारी वृत्ति रहती है लेकिन धन के प्रति भी दृष्टिकोण बदलने की आवश्यकता है। धन कमाकर जमा करते जाने से लोभ बढ़ता जाता है और भय भी बढ़ता है परंतु धन को सही दिशा में लगाने से धन सलामत भी हो जाता है और फायदा भी होता है।

व्यापार और उद्योग क्षेत्र में कारोबार प्रति सोचें भी और योग्य प्रदर्शनकारी रणनीति को अख्तियार भी करें। संबंधों में समझदारी से काम लें, चाहे कार्यक्षेत्र के संबंधों में, चाहे पारिवारिक संबंधों में और हर बात में उमंग-उत्साह की रणनीति अपनाएं। स्वयं की क्षमता और कमजोरियों का भी कर्मक्षेत्र पर प्रभाव पड़ता है। स्वयं के जिम्मेवार बन, स्व के उर्ध्वगामी परिवर्त्तन की रणनीति अपनाएं।

व्यक्ति से समष्टि बनती है इसलिए व्यापार जगत के वातावरण को सही बनाने के लिए, हर व्यापारी को स्वयं अपने विचारों में, वृत्ति में, व्यवहार में सकारात्मक परिवर्त्तन करने की जरुरत है। व्यवहारिक और व्यवसायिक जगत में मूल्यों को धारण करने के लिए आध्यात्मिक ज्ञान को जीवन की नींव बनाना है। आध्यात्मिक बनना अर्थात् शांति, अंतर्मुखता, उच्च विचार और आत्मसम्मान को अपनाना है।

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