समुद्र तट के किनारे बसे सूर्य मंदिर के अनसुलझे रहस्य

समुद्र तट के किनारे बसे सूर्य मंदिर के अनसुलझे रहस्य

कोणार्क शब्द ‘कोण’ और ‘अर्क’ को मिलाकर बना है। अर्क का मतलब होता है सूर्य और कोण का मतलब होता है कोना या फिर किनारा। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को पहले समुद्र के किनारे बनाया गया था, लेकिन समुद्र धीरे-धीरे कम होते चला गया, तो मंदिर भी समुद्र के किनारे से थोड़ा दूर हो गया है।

कोणार्क सूर्य मंदिर युनेस्को का वर्ल्ड हेरिटेज साइट है। यह मंदिर अपने रहस्यों के लिए पूरी दुनिया में फेमस है। यह मंदिर हिंदू धर्म के भगवान सूर्य को समर्पित है। यहां का पूरा का पूरा आर्किटेक्चर का काम पत्थर से किया गया है। इस मंदिर की ओर बड़े से बड़े जहाज भी खींचा चला जाता था। यह मंदिर ओडिशा के पूरी के पास समुद्र के किनारे स्थित है।

कोणार्क शब्द ‘कोण’ और ‘अर्क’ को मिलाकर बना है। अर्क का मतलब होता है सूर्य और कोण का मतलब होता है कोना या फिर किनारा। ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर को पहले समुद्र के किनारे बनाया गया था, लेकिन समुद्र धीरे-धीरे कम होते चला गया, तो मंदिर भी समुद्र के किनारे से थोड़ा दूर हो गया है।

तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे समुद्र किनारे बने कोणार्क मंदिर के इतिहास के बारे में। साथ ही हम आपको इस मंदिर के अनसुलझे रहस्यों से भी अवगत कराएंगे।

कोणार्क मंदिर का इतिहास (Konark Sun Temple history in hindi)

कोणार्क सूर्य मंदिर का निर्माण 1250 ईस्वी में गांग वंश के राजा नरसिंहदेव प्रथम ने करवाया था। कहावत है कि कुछ आक्रमणकारियों के खिलाफ जीतने के बाद उन्होंने इस मंदिर का निर्माण करवाया था। लेकिन 15वीं शताब्दी में आक्रमणकारियों ने इस मंदिर पर अटैक किया और लूटपाट करने के साथ ही मार-काट भी की। इस दौरान मंदिर में स्थापित मूर्तियों को बचाने के लिए पूजारियों ने उसे पूरी में जाकर रख दिया। आक्रमण में मंदिर पूरी तरह से नष्ट हो गया। इसके बाद 20वीं शताब्दी में ब्रिटिश शासनकाल में इसके रेस्टोरेशन का काम शुरू हुआ और मूर्ति की खोज की गई। यहं मंदिर कलिंग शैली में बना हुआ है। मंदिर को पूर्व दिशा में इस तरह से बनाया गया है कि सूरज की पहली किरण मंदिर के प्रवेश द्वार में पड़ती है।

सूर्य मंदिर की खासियत (Surya Mandir ki khasiyat) 

कोणार्क के सूर्य मंदिर को भगवान सूर्य के रथ की तरह से बनाया गया था है। इस रथ में 12 जोड़ी पहिए हैं, जिसे सात घोड़े खींच रहे हैं। यह सात घोड़े सात दिनों के प्रतीक हैं और 12 जोड़ी पहिए दिन के 24 घंटे के बारे में बतलाते हैं। यह भी माना जाता है कि 12 पहिए साल के 12 महीनों के प्रतीक हैं। यहां की सूर्य मूर्ति को पूरी के जगन्नाथ मंदिर में रखा गया है। इसलिए यहां कोई प्रतिमा नहीं है। एक तरह से कहें, तो यह मंदिर समय की गति को दर्शाता है। वहीं, मंदिर में बनी 8 ताड़ियां दिन के 8 प्रहर को दिखाती हैं।

कोणार्क मंदिर से जुड़ी पौराणिक कथा (Konark Mandir se judi pauranik katha)

कोणार्क मंदिर दो भागों में बना हुआ है। इसमें से पहले भाग को नट मंदिर कहते हैं। इस मंदिर के बारे में पौराणिक कथा है कि भगवान कृष्ण के बेटे को शांभ को श्राप से कोढ़ रोग हो गया था। उन्हें ऋषि कटक ने इस श्राप से बचने के लिए सूर्य भगवान की पूजा करने की सलाह दी थी। शांभ ने मित्र वन में चंद्रभागा नदी के संगम पर कोणार्क में 12 सालों तक तपस्या की और सूर्य देव को प्रसन्न किया। सूर्य देव जो सभी रोगों के नाशक थे, उन्होंने इनके रोगों को भी खत्म कर दिया। इसके बाद शांभ ने सूर्य भगवान का एक मंदिर बनाने का निश्चय किया। रोग के खत्म होने के बाद वो चंद्रभागा नदी में स्नान कर रहे थे, तो उन्हें सूर्य की एक मूर्ति मिली। इसके बाद शांभ ने मित्र वन में ही एक मंदिर में इस मूर्ति को स्थापित किया। फिर ये स्थान पवित्र माना जाने लगा।

कोणार्क के बारे में यह भी कहा जाता है कि यहां रात को नर्तकियों की आत्माएं आती हैं और नृत्य करती हैं। कोणार्क के पुराने लोगों के अनुसार आज भी यहां शाम को उन नर्तकियों के पायल की आवाज़ सुनाई देती है, जो यहां कभी राजा के दरबार में नृत्य किया करती थीं।

कोणार्क मंदिर के अनसुलझे रहस्य (Konark Mandir ka rahasya)

कोणार्क मंदिर में ऐसा काफी कुछ है जो अभी तक रहस्य ही बना हुआ है। चलिए जानते हैं इस मंदिर से जुड़े दो अनसुलझे रहस्यों के बारे में।

रहस्यमयी चुंबक की कहानी

कहा जाता है कि इस सूर्य मंदिर के ऊपर एक 52 टन का चुंबक रखा हुआ था। इसी के कारण भगवान सूर्य की जो प्रतिमा थी, वो हवा में तैरती रहती थी। जिसे देखकर हर कोई हैरत में पड़ जाता था। कहा जाता है कि इस चुंबक को विदेशी आक्रमणकारियों ने तोड़ दिया था। ऐसा भी कहा जाता है कि मंदिर के ऊपर रखे चुंबक के कारण समुद्र से गुजरने वाले जहाज, जो लोहे के बने होते थे क्षतिग्रस्त हो जात थे। इस कारण नाव को बचाने के लिए इस पत्थर को निकाल कर ले गए। ये पत्थर के कारण मंदिर संतुलित रहता था। इस पत्थर के हटने के कारण मंदिर की दीवारों का संतुलन खो गया और इसका परिणाम हुआ कि मंदिर गिर गए। लेकिन इस घटना का कोई ऐतिहासिक विवरण नहीं मिलता है और ना ही ऐसी कोई चुंबकीय पत्थर अस्तिस्व का ना कोई ब्यौरा ही उपलब्ध है।

भगवान सूर्य की मूर्ति की खोज

1568 में ओडिशा में मुस्लिम आक्रांताओं का आतंक नियंत्रित हो चुका था। इसके बाद भी हिंदू मंदिरों को तोड़ने का प्रयास होता रहा। इसलिए यहां के पंडितों ने भगवान सूर्य की मृर्ति को रेत में छिपा दिया था और बाद में मूर्ति को पूरी भेज दिया गया। वहां भगवान जग्गनाथ मंदिर के प्रांगण में स्थित इंद्र के मंदिर में रख दिया गया। कई लोगों का मानना है कि यहां कि मूर्तियां अभी भी खोजी जानी बाकी है। लेकिन कई लोगों का कहना है कि सूर्य देव की मृर्ति जो राष्ट्रीय संग्रहालय में रखी है, वही कोणार्क की प्रधान मूर्ति है। फिर भी कोणार्क में सूर्य भगवान की पूजा मूर्ति हटने के बाद से बंद हो गई है।

पूजा बंद होने के कारण यह धीरे-धीरे जंगल और रेत में दब गया। फिर बाद में इस मंदिर को खोजा गया, लेकिन इसके कई सिरे बहुत ही बुरी हालत में पाए गए। फिर बाद में ऐसा कहा जाता है कि कई आक्रमणों और प्राकृतिक आपदा के कारण जब मंदिर खराब होने लगा, तो 1901 में उस समय के गर्वनर जॉन हुड ने इस मंदिर की चारों दरवाज़े पर दीवारें खड़ी कर दी और पूरी तरह से बंद कर दिया और रेत से भर दिया, ताकि यह सही रहे। इसके कारण यहां का जगमोहन मंडप अभी तक बंद है। बाद में एएसआइ ने इसके हिस्सों पर रिसर्च शुरू किया। कई बाद इस मंदिर के दरवाजे को खोलने की बात कही गई, लेकिन यह खोला नहीं गया। इसे जब भी खोलने का निर्णय लिया गया, उसे आखिरी समय में बदल दिया गया। अब इस मंदिर के रहस्यों पर से पर्दा तभी उठा पाएगा, जब इसे कभी खोला जाएगा।

सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हमने आपको समुद्र के किनारे बने सूर्य मंदिर से रूबरू करवाया। यह आर्टिकल पढ़कर आपको कैसा लगा, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। इसी तरह के और भी ज्ञानवर्द्धक आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

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