पारसी धर्म ईरान का मूल धर्म है। इस्लामिक उत्थान के वक्त पारसियों को अपना देश छोड़कर भारत में बसना पड़ा। जरथुस्त्र पारसी धर्म के संस्थापक थे। इतिहासकारों का कहना है कि जरथुस्त्र 1700-1500 ई.पू के बीच पैदा हुए थे। पारसी समुदाय महात्मा जरथुस्त्र के जन्म दिवस को नववर्ष की तरह मनाते हैं।
पारसियों का धर्मग्रंथ ‘जेंद अवेस्ता’ है, जो ऋग्वैदिक संस्कृत की ही एक पुरानी शाखा अवेस्ता भाषा में लिखा गया है। पारसियों के राजा जमशेद ने पारसी कैलेंडर बनाया, इसमें साल में 360 दिन होते हैं। इसी के अनुसार पारसी नववर्ष मनाया जाता है। जब से पारसी भारत आएं, उसके साथ यहां के कई परिवार भी नववर्ष मनाने लगे। इसी तरह भारत के कई हिस्सों में पारसी नव वर्ष यानी नवरोज धूमधाम से मनाया जाने लगा है।
पारसी नववर्ष साल में दो बार क्यों मनाया जाता है? (Parsi navvarsh saal mein do baar kyon manaya jaata hai?)
पारसी लोग नववर्ष को साल में 2 बार मनाते हैं। पहला 21 मार्च को और दूसरा 16 अगस्त को। पहले की शुरुआत शाह जमशेदजी ने की थी, जिसे ‘फासली पंथ’ कहते हैं। हालांकि, इसे ‘नवरोज’ भी कहा जाता है। दूसरा 16 अगस्त को मनाया जाने वाला ‘नववर्ष शहंशाही’ है। दोनों ही दिन पारसी लोग मिल-जुल कर नववर्ष मनाते हैं। नवरोज को ईरान में ‘ऐदे-नवरोज’ कहते हैं।
नवरोज अगस्त में कब है? (Navroj august mein kab hai?)
अगस्त 2023 में 16 तारीख को नवरोज मनाया जाने वाला है।
कैसे मनाते हैं पारसी न्यू ईयर? (Kaise manate hain parsi new year?)
नववर्ष या न्यू ईयर, पारसी समुदाय में बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। पारसी धर्म में इसे ‘खौरदाद साल’ के नाम से जाना जाता है। पारसियों में 1 वर्ष 360 दिन का होता है और बचे हुए 5 दिन गाथा के लिए होते हैं। गाथा यानी अपने पूर्वजों को याद करने का दिन। साल खत्म होने के ठीक 5 दिन पहले से पारसी इसको मनाना शुरू कर देते हैं।
इन दिनों में समाज का हर व्यक्ति अपने पूर्वजों की आत्मा की शांति के लिए पूजा-अर्चना करता है। इस पूजा का भी एक खास तरीका है। रात 3.30 बजे से खास पूजा-अर्चना होती है। धर्म के लोग चांदी या स्टील के पात्र में फूल रखकर अपने पूर्वजों को याद करते हैं।
लगातार पांच दिन पूर्वजों के लिए पूजा करने के बाद नववर्ष के दिन घर की देहरी पर रंगोली बनाई जाती है। पूरा घर सजाया जाता है। सब लोग गुलाब के पानी से नहाकर, तैयार होकर पारसियों के मंदिर ‘अगयारी’ जाते हैं। इस दिन पर, पूरे वर्ष में जो कुछ भी भगवान ने उन्हें दिया है, उसके लिए भगवान को शुक्रिया कहते हैं। एक-दूसरे के घर जाकर आने वाले साल की शुभकामनाएं भी देते हैं। पकवान बनाए जाते हैं और हर तरफ खुशियों का माहौल होता है।
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