महालक्ष्मी मंदिर

कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर के आश्चर्यजनक अनसुने किस्से

राजा दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने प्राण त्याग दिए, तब भगवान शिव उनके शरीर को कंधे पर लेकर, सारे ब्रह्मांड में घूम रहे थे। उस वक्त विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के कई भाग कर दिए, वे भाग पृथ्वी पर 108 जगह गिरे, इनमें आंखें कोल्हापुर में गिरीं और वहां माता लक्ष्मी का मंदिर प्रकट हो गया।

मुंबई और महाराष्ट्र की यात्रा के दौरान जब हम लोनावाला की सैर करके वापस महाराष्ट्र लौटे तो हमने यात्रा के आखिरी दिन कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर (Mahalaxmi Temple) जाने का फैसला किया।

महाराष्ट्र के इस महालक्ष्मी मंदिर की आस्था के बारे में मैंने बहुत सुना था और बहुत समय से मन में यहां जाने की इच्छा भी थी, तो इसी इच्छा और श्रद्धा को मन में लिए हम पहुंच गए कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर।

इस महालक्ष्मी मंदिर की खासियत है कि यह 51 शक्तिपीठों में से एक है। कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर शक्तिपीठों की सूची में 18वें स्थान पर आता है। इस मंदिर का निर्माण चालुक्य वंश के समय पर हुआ था, यानी यह मंदिर 600 ईस्वी पुराना है। अठारहवीं शताब्दी के भूकंप और बाढ़ झेलने के बाद भी यह मंदिर वैसा ही है।

तो चलिए मैं अपने अनुभवों के ज़रिए आपको कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर के न केवल दर्शन करवाती हूं, बल्कि वहां के लोगों के द्वारा बताई गई कहानियों के आधार पर कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर के अनसुने किस्से भी सुनाती हूं।

कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर का इतिहास (Kolhapur Mahalakshmi Temple ka itihaas)

कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर मुंबई के महाराष्ट्र राज्य में है। यह महालक्ष्मी मंदिर मुंबई और महाराष्ट्र में ‘अंबाबाई मंदिर’ के नाम से भी जाना जाता है। यह मंदिर भगवान विष्णु की पत्नी माता लक्ष्मी को समर्पित है। महाराष्ट्र के कोल्हापुर शहर में होने की वजह से इसका नाम कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर पड़ा।

ऐसा कहा जाता है कि इस मंदिर में इतनी शक्ति है कि इसके दर्शन मात्र से मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। महालक्ष्मी मंदिर के बाहर लगे शिलालेख को देखकर कहा जा सकता है कि यह 1800 साल पुराना है। इस महालक्ष्मी मंदिर का निर्माण 634 ईस्वी में चालुक्य शासन काल में शालिवाहन घराने के राजा कर्णदेव करवाया था। यहां विराजित माता लक्ष्मी की मूर्ति काली पाषाण (काले पत्थर) पर उभारी गई है और यहां माता कमल के फूल पर खड़ी है। इस मूर्ति का वजन लगभग 40 किलोग्राम है। माता के सिर पर जो मुकुट है, उसमें बहुत से रत्न जड़े हुए हैं, और उसपर पांच सिर वाला सांप भी विराजमान है। मंदिर की एक दीवार पर श्रीयंत्र भी लगा हुआ है। माता के पीछे एक मूर्ति शेर की है, जिसे माता के वाहन के रूप में दिखाया गया है।

महालक्ष्मी मंदिर का प्रांगण (Mahalakshmi Mandir ka prangan)

इस मंदिर में मुख्य मंदिर माता लक्ष्मी का है। मंदिर में चारों दिशाओं से प्रवेश किया जा सकता है। मंदिर के महाद्वार से प्रवेश के साथ ही देवी महालक्ष्मी के दर्शन होते हैं। मुख्य मंदिर के दोनों ओर मंदिर बने हुए हैं। एक तरफ माता सरस्वती का मंदिर है और दूसरी तरफ माता काली को समर्पित एक मंदिर है।

मंदिर के खंभों पर नक्काशी का खूबसूरत काम देखते ही बनता है और मंदिर की भव्यता देखकर कोई भी मंत्रमुग्ध हो सकता है। मंदिर के बाहर के प्रांगण में भगवान विष्णु, विठ्ठल और अन्य देवी-देवताओं को समर्पित 30 से 35 मंदिर हैं।

कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर के रहस्यमयी किस्से (Kolhapur Mahalakshmi Mandir ke rahasyamai kisse)

ऐसा कहा जाता है कि जब‌ राजा दक्ष के यज्ञ में सती ने अपने प्राण त्याग दिए, तब भगवान शिव उनके शरीर को कंधे पर लेकर, सारे ब्रह्मांड में घूम रहे थे। उस वक्त विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के शरीर के कई भाग कर दिए, वे भाग पृथ्वी पर 108 जगह गिरे, इनमें आंखें कोल्हापुर में गिरीं और वहां माता लक्ष्मी का मंदिर प्रकट हो गया। कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर एक ऐसा पवित्र स्थान है, जिसे दक्षिण का काशी माना जाता हैं। कहा जाता है कि यहां अब भी साक्षात मां लक्ष्मी वास करती हैं, और उनके आशीर्वाद से हर श्रद्धालु की मनोकामनाएं पूरी होती हैं।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि कोल्हापुर महालक्ष्मी मंदिर का नाम एक असुर यानि राक्षस के नाम पर रखा गया है। कोल्हासुर नाम के एक राक्षस का वध माता लक्ष्मी ने किया तो असुर ने मरने से पहले उनसे वरदान मांगा कि इस स्थान का नाम कोल्हासुर और करवीर बना रहे। कोल्हासुर ही अब कोल्हापुर है।

इस मंदिर की दीवारों और खंभों पर बनी भव्य वास्तुकला का तो हर कोई दीवाना हो ही जाएगा, लेकिन इन खंभों को गिनना किसी बड़े से बड़े वैज्ञानिक के बस की भी बात नहीं है। कहते हैं, इन खंभों की संख्या आज तक कोई जान नहीं पाया, क्योंकि जिसने भी गिनने की कोशिश की उसी के साथ या उसके परिवार में कुछ अनहोनी घट गई और गिनती अधूरी रह गई।

इस मंदिर की सबसे बड़ी खासियत यह है कि यहां साल में एक बार सूरज की किरणें देवी की मूर्ति पर सीधे पड़ती हैं। इस दृश्य को देखने पर्यटक श्रृद्धालु दूर-दूर से आते हैं। इस मंदिर में कदम रखते ही लगता है जैसे सबकुछ हमारे केंद्र में लौट गया हो

आपको यह जानकर भी हैरानी होगी कि ये मंदिर बड़े-बड़े पत्थरों को जोड़कर बनाया गया है, लेकिन, इन पत्थरों को जोड़ने के लिए किसी तरह के चूने का उपयोग नहीं किया गया है। सालों से यह मंदिर बिना किसी चूने के ही मजबूत खड़ा हुआ है। यह मंदिर अपने आप में कई ऐसे सवाल लिए खड़ा है, जिनके जबाव ढूंढ पाना अब तक नामुमुकिन रहा है और शायद आगे भी रहेगा।

अगर आप कोल्हापुर मंदिर के दर्शन कर चुके हैं तो अपना अनुभव कमेंट में ज़रूर बताएं। ऐसे ही और आर्टिकल पढ़ने के लिए सोलवेदा हिंदी से जुड़े रहें।

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