जानें हिंदू धर्म में प्रयागराज का महत्व और यहां का इतिहास

जानें हिंदू धर्म में प्रयागराज की महत्वता और यहां का इतिहास

कुछ लोगों का कहना है कि सरस्वती नदी अदृश्य रूप से बहकर प्रयाग पहुंचती है और यहां आकर गंगा और यमुना के साथ संगम करती है। कुछ लोगों यह कहते हैं, कि सरस्वती नदी का कहीं कोई वजूद ही नहीं है और यह केवल एक मिथकीय धारणा या कही-सुनी बात है, जिसमें कोई सच्चाई नहीं है।

प्रयागराज जिसे पहले इलाहाबाद के नाम से जाना था, एक अद्भुत शहर है। प्रयागराज, उत्तर प्रदेश के बड़े जनपदों में से एक है। यह गंगा, यमुना तथा गुप्त सरस्वती नदियों के संगम पर स्थित है। संगम स्थल को त्रिवेणी कहा जाता है और इस पवित्र स्थान का हिन्दूओं के लिए बहुत महत्व है। प्रयागराज अपने गौरवशाली अतीत और वर्तमान के साथ भारत के ऐतिहासिक और पौराणिक नगरों में से एक है। यहां हिंदू, मुस्लिम, सिख, जैन एवं ईसाई सभी समुदाय मिश्रित रूप से रहते हैं।

कहा जाता है कि यहां स्वयं ब्रह्मा निवास करते हैं और यहां आकर त्रिवेदी नहाने से तन के सारे रोग दूर होते हैं और जीवन के पाप धुलते हैं। यहां हर रोज़ त्रिवेदी घाट पर बहुत से श्रद्धालु पूजा याचना करते नज़र आते हैं। तो आइए प्रयागराज के इतिहास और धार्मिक महत्व को और अच्छे से समझने के लिए इस आर्टिकल को पूरा पढ़ते हैं।

इलाहाबाद है तीन नदियों का संगम (Allahabad hai teen nadiyon ka sangam)

संगम का मतलब होता है, मिलन या सम्मिलन। भूगोल में संगम उस जगह को कहते हैं जहां पानी की दो या दो से अधिक धाराएं मिल रही होती हैं। जैसे इलाहाबाद में गंगा, यमुना और लोककथाओं के अनुसार, सरस्वती का मिलन होता है, इस संगम को हम त्रिवेणी संगम कहते हैं। गंगा और यमुना को प्रयागराज में मिलते हुए तो सब देखते हैं पर सरस्वती नदी पर कई तरह के भ्रम हैं। कुछ लोगों का कहना है कि सरस्वती नदी अदृश्य रूप से बहकर प्रयाग पहुंचती है और यहां आकर गंगा और यमुना के साथ संगम करती है। कुछ लोगों यह कहते हैं, कि सरस्वती नदी का कहीं कोई वजूद ही नहीं है और यह केवल एक मिथकीय धारणा या कही-सुनी बात है, जिसमें कोई सच्चाई नहीं है। आखिर इस रहस्यमय नदी की क्या सच्चाई है आइए जानते हैं।

धर्म और संस्कृत ग्रंथों के अनुसार सरस्वती नदी का अस्तित्व था और इसे सिन्धु नदी के समान ही पवित्र माना जाता था। ऋग्वेद में भी सरस्वती नदी का उल्लेख मिलता है। इसके अतिरिक्त बहुत से भूगोलकारों ने भी इस नदी के होने की पुष्टि की है। सरस्वती का इतिहास 4,000 साल पुराना माना जाता है। भूचाल आने के कारण जब जमीन ऊपर उठी तो सरस्वती का आधा पानी यमुना में गिर गया इसलिए यमुना में यमुना के साथ सरस्वती का जल भी बहने लगा। इसीलिए सरस्वती को मिलाकर प्रयाग में आज 3 नदियों का संगम माना जाता है। गंगा और यमुना के इस संगम के बारे में ऋग्वेद के नये खंडों में लिखा हुआ है कि, जो लोग इस पवित्र संगम में स्नान करते हैं, उन्हें स्वर्ग की मिलता है।

प्रयागराज की धार्मिक मान्यता और इतिहास (Prayagraj ki dharmik manyata aur itihaas)

हिंदू मान्यताओं के अनुसार, प्रयागराज में सृष्टि के निर्माता कहे जाने वाले ब्रह्मा ने दुनिया बनने के बाद सबसे पहला यज्ञ किया था। इसी प्रथम यज्ञ के ‘प्र’ और ‘याग’ अर्थात यज्ञ से मिलकर प्रयाग बना और इस स्थान का नाम प्रयाग पड़ा। ऐसा कहा जाता है कि इस पावन नगरी के निर्माता भगवान श्री विष्णु स्वयं हैं और वे यहां माधव या श्री कृष्ण के रूप में विराजमान हैं। भगवान के यहां बारह स्वरूप विध्यमान हैं, जिन्हें द्वादश माधव कहा जाता है।

हर बारह साल में एक बार यहां कुंभ मेले का आयोजन होता है। हिन्दू धर्मग्रन्थों के मुताबिक प्रयाग स्थल पवित्र नदी गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। यहीं सरस्वती नदी गुप्त रूप से संगम में मिलती है और ये त्रिवेणी संगम कहलाता है। त्रिवेणी के इस संगम पर हर रोज़ हज़ारों श्रद्धालु पर्यटक स्नान करने आते हैं और भगवान ब्रह्मा के आशीर्वाद से खुद को सराबोर समझते हैं।

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