मकर संक्रांति, संक्रांति

इस मकर संक्रांति चलो खुशियां बांटें

मकर संक्रांति भारत के कई हिस्सों में मनाया जाता है। इस दिन खरवास खत्म होता है, यानि इस दिन के बाद से हिंदू समाज के लोग शुभ काम करते हैं, जैसे गृह प्रवेश, शादी के लिए रिश्ते लेकर जाना आदि। आइए, मकर संक्रांति के खास दिन पर इस लेख में हम इस त्योहार व इससे जुड़े खास तथ्यों को जानते हैं।

मकर संक्रांति पर्व पर पतंगबाजी, खिचड़ी, दही-चूड़ा, तिलकुट की सुगंध देशभर में छा जाती है। जब हम छोटे थे, तो हम सभी लोगों को इस खास पर्व का बेसब्री से इंतजार रहता था। क्योंकि इस दिन हम दोस्तों व रिश्तेदारों के साथ पतंबाजी कर सकते थे, साथ में दही-चूड़ा और दोपहर में खिचड़ी का सेवन कर इस पर्व को सेलिब्रेट करते थे। वहीं इस दिन तिलकुट खाने का अपना ही मज़ा होता है।

28 राज्य, 1652 बोलियां, 1.4 अरब लोग और अनगिनत त्योहार। भारत में विविधता साफ झलकती है। यही वजह भी है कि यहां पर सभी धर्मों के लोग एक साथ रहते हैं। जब आप भारत जैसे विशाल और सांस्कृतिक विभिन्नता (Cultural Diversity) में एकता वाले देश में रहते हैं, तो हर रोज़ ही त्योहार होता है। यह जीवन का उत्सव है। इस देश की समतल भूमि, पहाड़ियों, रेगिस्तान और समुद्र किनारे के लोग त्योहार ऐसे उत्साह के साथ मनाते हैं कि रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कुछ अलग ही आनंद आ जाता है।

हमारे यहां मौसम का स्वागत करने के लिए एक त्योहार है, तो फसल काटने की खुशी मनाने के लिए दूसरा। हम वर्षा ऋतु के आने पर झूमते हैं। प्रकृति ने हमें भरपूर खुशियों से नवाज़ा है। हम नव वर्ष मनाते हैं। हम बुराई पर अच्छाई की जीत मनाते हैं और हर उस बात का, विशेष रूप से प्रकृति का, खुले दिल से स्वागत करते हैं, जो हमारे दिल के बहुत करीब है। हमारे अस्तित्व से हम प्रकृति को जुदा नहीं कर सकते। हमारे जीवन का चक्र प्रकृति के साथ बंधा हुआ है। यह हमारी संस्कृति, परंपरा और पुराणों का अभिन्न अंग रहा है। इसी वजह से शायद प्रकृति का हमारे त्योहारों के साथ एक प्यारा रिश्ता है। सैकड़ों वर्ष पहले त्योहार ऋतु परिवर्तन, स्थान और विकसित परिदृश्य के साथ मनाए जाते थे। समय के साथ त्योहारों के रंग बदले, लेकिन उसका सार और प्रकृति नहीं बदली।

भारत में अधिकांश हिंदू त्योहार चंद्रकाल से जुड़े होते हैं। इसी वजह से तिथि हर वर्ष बदलती रहती है। लेकिन, मकर संक्रांति का हिंदू त्योहार सूर्य काल के हिसाब से मनाया जाता है, अत: वह हर वर्ष तय तारीख को ही आता है। संक्रांति 14 जनवरी को मनाई जाती है। हालांकि, पृथ्वी को सूर्य का चक्कर लगाने में जो वक्त लगता है उसे देखते हुए 80 वर्षो में एक बार इसे एक दिन आगे बढ़ा दिया जाता है।

मकर संक्रांति के दिन सूर्य अपने आकाशीय पथ में मकर राशि में प्रवेश करता है। संक्रांति का अर्थ होता है गति। इस दिन सूर्य मकर रेखा से गुजरते हुए कर्क रेखा में आती है। मकर संक्रांति के साथ ही वसंत ऋतु का आगमन होता है और दिन बड़े तथा रात छोटी हो जाती है।

मुख्यत: फसल कटाई का त्योहार, मकर संक्रांति दक्षिणपूर्वी एशिया के देशों में मनाया जाता है, जिसमें थाईलैंड का भी समावेश है। मकर संक्रांति के अनेक नाम हैं। इसे कर्नाटक, आंध्रप्रदेश, केरल, महाराष्ट्र और मध्यप्रदेश में मकर संक्रांति कहा जाता है, जबकि गुजरात में उत्तरायण, तमिलनाडु में पोंगल, असम में भोगाली बिहू, पंजाब में लोहड़ी, नेपाल में माघ संक्रांति, थाईलैंड में सोंक्रान और म्यांमार में थिंग्यान कहा जाता है। मकर संक्रांति के साथ जितने नाम जुड़े हैं उतने ही किस्से भी जुड़े हैं। सोलवेदा इसमें से उन किस्सों पर नज़र डाल रहा है, जो अधिक प्रसिद्ध नहीं हैं।

नंदी की दुविधा (Nandi ki duvidha)

नंदी की कहानी खुशगवार होने के साथ ही संदेश देने वाली भी है। हिंदू पुराणों के अनुसार भगवान शिव ने अपने द्वारपाल नंदी बैल को आदेश दिया कि वह धरती पर जाकर उनके भक्तों से कहे कि वे तेल से स्नान करें और प्रति माह केवल एक दिन भोजन करें। इसी बीच भ्रमित नंदी ने भक्तों से कह दिया कि वह रोजाना भोजन करें और केवल एक दिन तेल से स्नान करें। जब शिव को यह बात पता चली तो वे नाराज हुए और सजा के तौर पर उन्होंने नंदी को पुन: धरती पर जाकर उनके भक्तों की कृषि कार्य में सहायता करने का आदेश दे दिया। इसका कारण यह था कि नंदी के संदेश की वजह से भक्तों को अब रोज अनाज की जरूरत पड़ती थी, जिससे वह अपना पेट भर रहे थे। इसी वजह से इस त्योहार पर नंदी की पूजा की जाती है। यह लोगों का कृषि कार्य में उसके सहयोग के लिए आभार प्रकट करने का उनका तरीका है। संक्रांति के दिन पशु धन को नहलाकर प्रार्थना की जाती है और उन्हें उनकी सेवाओं के लिए धन्यवाद दिया जाता है।

कृष्ण की लीला (Krishna Ki leela)

एक और मजेदार किस्सा संक्रांति से जुड़ा है। यह भगवान कृष्ण से जुड़ा है, जो कि अनेक लीलाएं करने के लिए पहचाने जाते हैं। भोगी दिवस : (आंध्र में इस दिन को इसी नाम से पुकारा जाता है) कृष्ण ने अपने साथियों को इंद्र के स्थान पर गोवर्धन पर्वत की पूजा करने के लिए कहा, जिससे इंद्र नाराज हो गए और भीषण वर्षा और बाढ़ से उन्होंने तबाही मचा दी। इंद्र की इस हरकत से नाराज कृष्ण ने फिर गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली पर उठाकर अपने दोस्तों की रक्षा की। अपनी हरकत से शर्मिदा इंद्र ने कृष्ण से क्षमा मांगी। कृष्ण ने इंद्र को वरदान दिया कि उसकी वर्ष में एक बार भोगी दिवस पर पूजा की जाएगी।

पुराणों के अनुसार (वैदिक ग्रंथ) संक्रांति के दिन ही सूर्य अपने पुत्र शनि से मिलने आते हैं और एक माह उनके साथ व्यतीत करते हैं। पिता, पुत्र में बनती नहीं है, लेकिन सूर्य यह वक्त, शनि के साथ गुजारते हैं। यह कहानी पिता व पुत्र के बीच विवाद के बावजूद साथ रहने की सीख देती है। इसमें आम धारणा यह भी है कि यदि किसी व्यक्ति की मकर संक्रांति के दिन मृत्यु होती है तो वह सीधे स्वर्ग जाता है और जन्म-मरण के चक्र से उसे मुक्ति मिल जाती है।

मकर संक्रांति को जितना किस्से कहानियों की वजह से याद किया जाता है उतना ही तिल से बनी मिठाई और पतंगबाजी के लिए भी पहचाना जाता है। कहा जाता है कि पुराने जमाने में लोग सुबह-सुबह जब सूर्य का ताप तेज नहीं होता था, पतंग उड़ाते थे। इस वजह से शीतल सूर्य की किरणें उन्हें सर्दी में होने वाली विभिन्न बीमारियों से निजात दिलाती थी और भविष्य की बीमारियों से बचाती थी। पतंग उड़ाने की वजह से लोग न केवल धूप का आनंद लेते हैं बल्कि अपने मित्र, परिवार और पड़ोसियों के साथ मिलकर इस त्योहार का मजा भी उठाते हैं। मिठाई बांटकर संबंधों में मिठास लाकर एक नई शुरुआत की जाती है। इसी मान्यता की वजह से आज भी यह त्योहार बखूबी मनाया जाता है। जीवन रुकने का नाम नहीं है, बल्कि विकास और गति का नाम है। यह पर्व गति का ही प्रतीक है। बुरे से अच्छे की ओर, पुराने से नए और अंधेरे से उजाले तथा गम से खुशी की ओर बढ़ने का एक बेहतरीन मौका है यह पर्व

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