भारतीय उपमहाद्वीप

अच्छाई जो भीतर समा गई

भारतीय उपमहाद्वीप की ओर ध्यान सबसे पहले उस वक्त आया, जब अलेक्जेंडर द ग्रेट (Alexander the Great) ने 326 बीसी (ईसापूर्व) में यहां का रुख किया था।

समय की शुरुआत से ही मानव अपराजित भूमि को जीतने की महत्वाकांक्षा पालता आया है। यह महत्वाकांक्षा उसे दुनिया के हर छोर की अनजान जगह ले जाती रही है। शुरुआत में जो बात जिज्ञासा और खोज से शुरू हुई थी बाद में वह प्रतिष्ठा की बात बन गई। राजाओं और रानियों की नज़र जहां तक जाती उन्हें वहां राज करना होता था और महत्वाकांक्षा बढ़ने के साथ सेना का भी विस्तार हुआ। युद्ध (War) हुए और परिणामस्वरूप हुआ खून खराबा और आक्रमण।

इसे आप खोज कहें, आक्रमण कहें या साम्राज्य विस्तार, अनेक देशों पर बाहरी ताकतों ने कब्जा कर लंबे समय तक वहां राज भी किया। युद्ध तो विनाश लेकर आया, लेकिन युद्ध रुकने के बाद विजेता देश ने पराजित के विकास में सहायक बनकर अहम भूमिका अदा की।

दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र भारत या भारतीय उपमहाद्वीप के लिए युद्ध और आक्रमण नया नहीं है। समय-समय पर भारतीय उपमहाद्वीप को पूर्वी गोलार्ध से लेकर उत्तरी गोलार्ध तक के उपनिवेश और राजघरानों ने अपने कब्ज़े में लिया है। कुछ साम्राज्य बगैर निशान छोड़े ही चले गए, लेकिन कुछ ने विरासत की छाप यहां छोड़ी है।

भारतीय उपमहाद्वीप सबसे पहले उस वक्त प्रकाश में आया जब अलेक्जेंडर द ग्रेट (सिकंदर Alexander the Great sikendra) ने 326 बीसी (ईसापूर्व) में इस उपमहाद्वीप में कदम रखा था। कुछ लोगों का मानना है कि अलेक्जेंडर को पंजाब के पास रोका गया था। उसके तुरंत बाद उपमहाद्वीप पर बाहरी ताकतों के एक के बाद एक हमले शुरू हो गए। कुछ आए और विनाश करने के बाद घर लौट गए। कुछ रुके और यहां की विविधता का हिस्सा बन गए। सभी भारतीय उपमहाद्वीप को कुछ न कुछ देकर भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति और पहचान का हिस्सा बन गए।

सोलवेदा ने ऐसी कुछ सांस्कृतिक घटनाओं पर नज़र डाली है जो पुरानी पर भारत के लिए नई थी। सोलवेदा की यह खोज रोचक साबित हुई है।

यूनान-मॅसेडोनियन का प्रवेश

अलेक्जेंडर द ग्रेट अपनी सेना के साथ यहां ईसापूर्व वर्ष 326 में आया लेकिन उपमहाद्वीप के अधिकांश हिस्से पर राज नहीं कर सका। बाद में ईसा पूर्व वर्ष 180 में इंडो-ग्रीक्स कहे जाने वाले हेलेनिस्टिक साम्राज्य ने उत्तर पश्चिमी और उत्तर भारत पर हमला किया। इस दौर में प्राचीन ग्रीक, हिंदू तथा बौद्ध परंपराओं का मिश्रण देखा गया।

देश में विदेशी ही अशोक स्तंभ लेकर आए। ग्रीक स्तंभ की तर्ज पर बने ‘अशोक स्तंभ’ की डिज़ाइन और कलाकृति उस वक्त भारत में नहीं पाई जाती थी। आज इसी डिज़ाइन को विभिन्न इमारतों और ग्रेट कम्युनिटीज के गेट पर देखा जा सकता है।

तुर्क-अफगान और मुगलों का प्रवेश

ईसा पश्चात 1210 में दिल्ली सल्तनत के नाम से मशहूर तुर्क-अफगान साम्राज्य की शुरुआत हुई जो बाद में मुगल साम्राज्य में मिल गया। यह साम्राज्य अपने साथ एक ऐसी चीज़ लेकर आया, जिसके बगैर आज पूजा अधूरी रहती है, यह चीज़ है अगरबत्ती। इसी प्रकार किसी भी फैशन के कदरदान व्यक्ति के पास यदि अनारकली सूट न हो तो उसे मज़ा नहीं आता। भारतीय परिधान को यह सूट मुगल साम्राज्य की देन है। इसी प्रकार इस साम्राज्य ने भारत को चिकनकारी एंब्रॉयडरी भी दी। कहते हैं कि पर्शिया के कुछ कलाकारों को यहां आने के बाद बादशाह जहांगीर की बेगम नूरजहां ने आसरा दिया। इसके बाद चिकनकारी की कला को अपने पैर फैलाने में देर नहीं लगी।

इस्लामिक वास्तुकला की वजह से गुंबद, आर्च – या संगमरमर जालियों की डिजाइन अब भारत में इस्तेमाल होती है। इसी तरह इस्लामिक डिज़ाइन से सजी खिड़कियां अब आम हो गई हैं, यह उसी वक्त से यहां आई हैं।

भोजन की बात करें तो खाने के शौकीन को दम बिरयानी की कसमें खाते देखा जा सकता है। कुछ इतिहासकार इसे तुर्की व्यंजन मानते हैं, जिसे मुगलों ने यहां लाया। कहा जाता है कि मुगलों ने इसका नाम पर्शियन भाषा से लिया था।

यूरोपियन प्रभाव : फ्रेंच, पुर्तगाली और अंग्रेज़

फ्रेंच : भारत में पहला फ्रेंच आक्रमण 17वीं शताब्दी के पूर्वाद्ध में हुआ था। इसके बाद कुछ फ्रेंच नागरिक यहां के विभिन्न हिस्सों में बस गए। अब फ्रेंच खिड़कियां और स्ट्रीट कैफे हमारी विरासत का हिस्सा बन चुके हैं। इसी प्रकार ‘लॉज’ शब्द का उपयोग भी फ्रेंच, व्यापार केंद्रों के लिए किया करते थे। अब इसका उपयोग देशभर में निवास व्यवस्था वाली जगह के लिए किया जा रहा है।

पुर्तगाली : भारत में पुर्तगाली 1505 में आए थे और 1960 तक राज किया। इसी वजह से गोवा, पुर्तगाली संस्कृति से काफी ज्यादा प्रभावित दिखाई देता है। यह अब गोवा की विशेषता बन चुकी है।

पुर्तगाली राज के बारे में एक बात की जानकारी ज्यादातर लोगों को नहीं है। उन्होंने ही फसल की 300 से ज्यादा किस्में यहां पहुंचाई। इसमें आलू, टमाटर, गाजर, सीताफल, अमरूद, मूंगफली और पपीता शामिल है। भारत में अगली बार जब आप अमरूद का स्वाद लें तो आपको पता होना चाहिए कि आपको किसे धन्यवाद देना है।

ब्रिटिश : 17वीं शताब्दी के पश्चात ईस्ट इंडिया कंपनी ने भारत पर अपनी पकड़ मजबूत करनी शुरू कर दी थी। अत: उनकी संस्कृति और परंपराएं बड़ी तेज़ी से यहां फैलती चली गई। उनका सबसे बड़ा योगदान इंग्लिश भाषा है। यह भाषा आज केंद्र सरकार की दो अधिकृत भाषाओं में से एक है। गलती से ही सही लेकिन ब्रिटिश साम्राज्य के दौर में ही भारतीय मध्यम वर्ग शिक्षा को लेकर जागरूक हुआ। उन्होंने शिक्षा प्रणाली को बदला और उससे ही मिलती-जुलती शिक्षा प्रणाली हम आज तक चला रहे हैं।

भारत ने अनेक आक्रमण झेले, लेकिन हर आक्रमण उसे समृद्ध करके गया। खुशबूदार हवा का झोंका कहीं से भी आ सकता है फिर भले ही वह किसी मूसलाधार आंधी में ही क्यों न फंसा हो। समय के साथ भारतीय उपमहाद्वीप की सरजमीं ने ऐसे सभी आक्रमणों को बर्दाश्त किया। आज एक समृद्ध, ऊर्जावान तथा अनूठी संस्कृति हमें मोहित कर रही है।

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