बुद्ध पूर्णिमा

बुध पूर्णिमा पर जानें गौतम बुद्ध के जीवन के कुछ अनोखे किस्से

हिंदू पंचांग के अनुसार वैसाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाया जाता है। बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और इसी दिन उन्हें बोधि की प्राप्ति भी हुई थी।

पूरी दुनिया में कुछ ऐसे महापुरुष हुए हैं, जिन्होंने अपने ज्ञान से मानव समाज को एक नई राह दिखाई है। ऐसे ही एक महापुरुष थे गौतम बुद्ध। इन्हें पूरी दुनिया महात्मा बुद्ध के नाम से भी जानती है और इन्हें भगवान का दर्जा भी दिया जाता है। गौतम बुद्ध ने अपनी पूरी ज़िंदगी लोगों के कल्याण और विकास में लगा दिया। उनका विचार, जीवन और संदेश आज भी उतना ही प्रासंगिक (उचित) है, जितना की उनके जीवन काल में हुआ करता था। गौतम बुद्ध के विचारों की ताकत ही है कि बौद्ध धर्म भारत से निकलकर विश्व के अलग-अलग देशों में फैला। 

करीब 2500 वर्ष पहले भगवान गौतम बुद्ध ने जिन विचारों और दर्शन का उपदेश दिया, वो सिर्फ भारत तक ही सिमटा हुआ नहीं रहा बल्कि दुनिया के अनेक देशों में अपनाया गया और उसका प्रचार-प्रसार हुआ। बौद्ध धर्म ऐसे नियमों का एक संग्रह है, जिसमें शांति, अहिंसा और न्याय की बात की गई है। तो चलिए सोलवेदा हिंदी के इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि गौतम बुद्ध कौन थे? और साथ ही बुद्ध पूर्णिमा के इतिहास और इसे क्यों मनाया जाता है, इसके बारे में भी जानेंगे। इसके अलावा बुद्ध पूर्णिमा के महत्व और महात्मा बुद्ध के जीवन के अनोखे किस्से के बारे में भी जानेंगे। 

महात्मा बुद्ध कौन थे? (Mahatma Buddh kaun the?)

गौतम बुद्ध का जन्म 483 ईस्वी पूर्व शाक्य गणराज्य की राजधानी कपिलवस्तु के पास लुंबिनी में हुआ था। बचपन में उन्हें राजकुमार सिद्धार्थ के नाम से जाना जाता था। बौद्ध धर्म ग्रंथों के अनुसार उनके जन्म से 12 साल पहले ही मुनियों ने भविष्यवाणी की थी कि यह बच्चा सार्वभौमिक सम्राट या फिर महान ऋषि बनेगा। 35 साल की उम्र में गौतम बुद्ध को ज्ञान की प्राप्ति हुई थी और वह संसार के मोह का त्याग करते हुए तपस्वी बन गए थे। गौतम बुद्ध के जन्म या फिर महापरिनिर्वाण को हर साल बुद्ध पूर्णिमा के रूप में पूरे विश्व में मनाया जाता है। 

बुद्ध पूर्णिमा का इतिहास (Buddh Purnima ka itihaas)

हिंदू पंचांग के अनुसार वैसाख मास की पूर्णिमा को बुद्ध पूर्णिमा मनाया जाता है। बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए यह सबसे महत्वपूर्ण त्योहार है। मान्यता है कि इसी दिन भगवान गौतम बुद्ध का जन्म हुआ था और इसी दिन उन्हें बोधि की प्राप्ति भी हुई थी। माना जाता है कि पूर्णिमा का दिन बौद्ध धर्म को मानने वालों के लिए शुभ होता है।

बुद्ध पूर्णिमा का महत्व (Buddh Purnima ka mahatva)

हिंदू धर्म के पौराणिक मान्यताओं के अनुसार भगवान बुद्ध को भगवान विष्णु का नौवां अवतार माना जाता है। इस दिन लोग उपवास भी करते हैं। वहीं, बौद्ध धर्म के लोग इस दिन को एक उत्सव के रूप में मनाते हैं। बौद्ध और हिंदू धर्म को मानने वालों के लिए यह एक विशेष महत्व का दिन होता है। यह दिन बुर्द्ध के आदर्शों और धर्म के रास्ते पर चलने का संदेश देता है। इस दिन बोधिवृक्ष की पूजा भी की जाती है। 

राजकुमार से कैसे बनें गौतम बुद्ध? (Rajkumar se kaise banein Gautam Buddh)

भारत में शाक्य वंश के शासक थे राजा शुद्धोदन। उनकी पत्नी थी मायदेवी। इन्हीं के यहां राजकुमार सिद्धार्थ का जन्म हुआ। जन्म के बाद जब ज्योतिषी को कुंडली दिखाया गया, तो ज्योतिषि ने कहा कि यह राजा नहीं बनेगा, लेकिन इनके कुंडली में उत्तम ग्रह है। यह सुनने के बाद राजा ने राजकुमार सिद्धार्थ के लिए महल में ही भोग-विलास की व्यवस्था की, जिससे वह संन्यासी नहीं बने। इसके बाद सिद्धार्थ की शादी हुई और उन्हें पुत्र हुआ, जिनका नाम रखा गया राहुल। एक दिन राजकुमार बिना किसी सुरक्षा व्यवस्था के नगर भ्रमण पर निकलें, तो उन्होंने शवयात्रा देखी। इसे देख उन्हें मृत्यु के बारे में पता चला। शवयात्रा देख उनका मन विचलित हो गया और वो दुख से बचने का उपाय अपने मन में ही खोजने लगे। यहां से जब वो आगे बढ़े, तो उन्हें एक संन्यासी दिखे, जिसे देखते ही उन्हें शांति का एहसास हुआ। इसके बाद राजकुमार सिद्धार्थ के मन में सत्य की खोज के बारे में विचार चलने लगें। 

अचानक एक दिन रात में वो अपनी पत्नी यशोधरा और पुत्र राहुल सहित सभी को छोड़ कर सन्यास के लिए महल से निकल गए। वो वहां से बोधिवृक्ष के नीचे पहुंच गए। यहां वो बैठकर तपस्या करने लगे और छह साल के बाद उन्हें पूर्ण और दिव्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। इसके बाद वो राजकुमार सिद्धार्थ से गौतम बुद्ध बन गए।

महात्मा बुद्ध से जुड़ी एक दिलचस्प कहानी (Mahatma Buddh se judi ek dilchasp kahani)

महात्मा बुद्ध को लेकर एक कहानी प्रचलित है कि एक बार एक आदमी उनके पास पहुंचा और उनसे पूछा कि “प्रभु मुझे जीवन क्यों मिला है? इतनी बड़ी दुनिया में मेरी कीमत क्या है?” यह सुनते ही महात्मा बुद्ध मुस्कुरा दिए और उसे आदमी को एक चमकीला पत्थर देते हुए कहा कि पहले जाओ इसका मूल्य पता करो, लेकिन इसे बेचना मत, सिर्फ मूल्य पता करना। वो आदमी सबसे पहले पत्थर लेकर आम वाले के पास गया, आम वाला समझ गया कि यह कोई कीमती पत्थर है, लेकिन उसने कहा कि “इस पत्थर के बदले में 10 आम दे सकता हूं।”

यहां से वो आगे बढ़ा और एक सब्जीवाले को पत्थर दिखाया, तो उसने कहा कि “इसके बदले में एक बोरी आलू दे सकता हूं।”

इतने में उस आदमी को पता चल गया कि ये कोई कीमती पत्थर है, तो वो उसे लेकर हीरे के व्यापारी के पास पहुंचा। उसने पत्थर देखते ही व्यापारी ने कहा कि “मैं इसके लिए 10 लाख रुपए दे सकता हूं।”

यह सुनते ही वह आदमी पत्थर लेकर गौतम बुद्ध के पास जाने लगा, तो व्यापारी ने कहा कि “50 लाख रुपए दे दूंगा।” लेकिन वह आदमी नहीं रुका और गौतम बुद्ध के पास पहुंच कर सारी कहानी सुनाई।

गौतम बुद्ध ने उस व्यक्ति की बातें सुनने के बाद कहा कि आम वाले ने इसकी कीमत 10 आम लगाया, सब्जी वाले ने इसकी कीमत एक बोरी आलू लगाई और उस व्यापारी ने पत्थर के गुण को समझ उसका मूल्य लगाया 50 लाख लगाया। इसी तरह इंसान का जीवन है, जो इंसान का जितना गुण समझ पाता है, उतना ही महत्व देता है। वैसे इंसान और हीरे में फर्क है, हीरे को कोई इंसान तराशता है, लेकिन आदमी को खुद अपने आप को तराशना होता है। इसलिए खुद के भीतर के गुणों को तराशों, कोई ने कोई तुम्हें पहचानने वाला मिल ही जाएगा।       

इस आर्टिकल में हमने महात्मा बुद्ध के बारे में तो बताया ही। साथ ही हमने उनसे जुड़ी कहानियां भी बताईं। यह आर्टिकल आपको कैसा लगा, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। इसी तरह की और भी जानकारी के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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