2000 साल पुराने ग्रंथों में है कुंभ मेला का ज़िक्र: जानें इतिहास

प्रयाग कुंभ मेला बहुत खास है। दूर-दूर से पर्यटक और श्रद्धालु आकर, यहां की पवित्रता से मगन हो जाते हैं। कुम्भ मेले में न केवल यहां के लोक कलाकार बल्कि अलग-अलग शहरों से भी लोग आकर अपनी कलाएं और रचनात्मकता को दिखाते हैं।

हिन्दू धर्म रीतियों से संबंधित भारत का सबसे बड़ा मेला, कुंभ मेला, हर 12 साल में चार बार आयोजित किया जाता है। इस मेले की मान्यता न केवल भारत के हिन्दुओं में है बल्कि देश-विदेश के सैलानी भी इसकी भव्यता देखने आते हैं। हिन्दू परिवार में जन्म लेने और धार्मिक रीतियों के साथ बड़े होने की वजह से मुझे कुम्भ मेले से जुड़ी कहानियां और किस्से सुनने का सौभाग्य मिलता रहा है, और इन्हीं किस्सों ने मुझे भी कुम्भ का हिस्सा बनने की प्रेरणा दी, क्योंकि मैं अपनी आंखों से इस मेले का हर पल देखना चाहती थी। परिवार के सभी लोगों से बात करके, और अपने-अपने कामों से वक्त निकाल कर, मैं और मेरा परिवार 2021 के कुम्भ मेले का हिस्सा बनने हरिद्वार पहुंच गया। हम वहां चार दिन के लिए गये और पांचवे दिन गंगा स्नान के साथ वापस आ गये। पर इन 4 दिनों में मैंने भक्ति और श्रद्धा को जितने करीब से महसूस किया उसे शब्दों में पिरो पाना मुश्किल है।

मैंने सुना है कि कुम्भ मेला ज्योतिषीय गणना के मुताबिक, जब बृहस्पति ग्रह वृषभ राशि में और सूर्य मकर राशि में होते हैं, तब लगता है। मुझसे पूछिए तो कुम्भ मेला और उसका अनुभव मेरे लिए उन सभी जगहों से खास है, जहां अब तक मैं अपनी छुट्टियां बिताने जाती रही हूं। गंगा नदी के किनारे सूरज निकालने से पहले ही पवित्र स्नान करने उमड़ी श्रद्धांलुओं की भीड़, शाही स्नान करते साधु और हर तरफ हर-हर महादेव के जाप की आवाज़ें, जब धूप और आरती की खुशबू के साथ हवाओं में फैलती है, तब एक अलग ही सकारात्मक और आध्यात्मिक शक्ति महसूस होती है।

कुम्भ मेले के उन 4 दिनों का हर खूबसूरत अनुभव को मैंने इस आर्टिकल में पिरोने की कोशिश की है। तो चलिए सोलवेदा के साथ जानते हैं कुम्भ मेले से जुड़ी और भी बातें।

क्या आप जानते हैं कुंभ का मेला कहां लगता है? (Kya aap jante hain kumbh ka mela kahan lagta hai?)

मैंने अक्सर ज़्यादातर लोगों को इस बात से अनजान देखा है कि आखिर कुम्भ मेला कहां लगता है (kumbh mela kahan lagta hai?)। 12 सालों में कुंभ मेला, भारत के चार जगहों पर लगता है। उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में, उत्तराखंड के हरिद्वार में, मध्य प्रदेश के उज्जैन में और महाराष्ट्र के नासिक में। हर जगह का मेला 12 साल के अंतराल पर आयोजित होता है। यह स्थान इसीलिए चुने गए हैं क्योंकि यहां पौराणिक कथा के अनुसार अमृत की कुछ बूंदें गिरी थीं।

बहुत खास है प्रयाग कुंभ मेला (Bahut khash hai prayag kumbh mela) 

प्रयागराज जो पहले इलाहाबाद के नाम से जाना जाता है, इस साल यानी 2024 में कुम्भ मेले की शुरुआत यहीं से होगी। प्रयाग कुंभ मेला प्रयागराज में इसलिए लगता है क्योंकि यह स्थान धार्मिक, पौराणिक और खगोलीय दृष्टि से बहुत खास है।

कहते हैं, समुद्र मंथन के वक्त जब देवता और राक्षसों में युद्ध हुआ तो अमृत कलश की कुछ बूंदें यहां गिर गयी थीं। प्रयागराज की धार्मिक मान्यता के चलते इसे ‘तीर्थराज’ यानी तीर्थों का राजा कहा जाता है और यहां गंगा, यमुना, और सरस्वती नदियों का संगम भी होता है।

प्रयाग कुंभ मेला बहुत खास है। दूर-दूर से पर्यटक और श्रद्धालु आकर, यहां की पवित्रता से मगन हो जाते हैं। कुम्भ मेले में न केवल यहां के लोक कलाकार बल्कि अलग-अलग शहरों से भी लोग आकर अपनी कलाएं और रचनात्मकता को दिखाते हैं। साधु-संतों के प्रवचन और भक्ति गीतों से भरा कुम्भ मेला ऐसा लगता है, जैसे स्वर्ग से खुद सभी देवता आकर अपना आशीर्वाद भक्तों पर बरसा रहे हो।

यहां लाखों श्रद्धालु स्नान करके अपने पापों का प्रायश्चित करते हैं। साधुओं के अलग-अलग करतब सभी को चौंका देने वाले होते हैं। सच पूछिए तो आस्था और कला का सही संगम आपको कुम्भ मेले में ही देखने को मिल सकता है।

इस साल का कुंभ मेला कब है? (Is saal kab hai kumbh mela?)

इस साल का कुंभ मेला प्रयागराज में 13 जनवरी से 26 फरवरी महाशिवरात्रि के दिन तक के लिए लगने वाला है। अगर आप इस साल मेले में जाने की सोच रहे हैं, तो अपनी यात्रा की योजना पहले से बनाना बेहतर होगा।

जानें क्या हैं कुम्भ मेला का इतिहास और ग्रंथो में क्या लिखा है? (Janein kya hai kumbh mela ka itihas aur granthon mein kya likha hai?)

कुंभ मेला की परंपरा 2000 साल पुरानी मानी जाती है। इसके बारे में हमारे धर्म ग्रंथों, जैसे- महाभारत, पुराणों और विष्णु पुराण में भी लिखा है। ऐसा माना जाता है कि समुद्र मंथन के दौरान देवताओं और राक्षसों के बीच अमृत का कलश पाने के लिए संघर्ष हुआ था, और अमृत की कुछ बूंदें धरती पर छलक गयीं, और जहां-जहां ये बूदें गिरीं वहां-वहां कुम्भ मेला लगता है। इसी पौराणिक कथा से जुड़ा है कुंभ मेला, जिसे हिंदू धर्म का सबसे बड़ा धार्मिक महोत्सव माना जाता है।

महाभारत ग्रन्थ में कुंभ मेला से जुड़े धार्मिक मान्यताओं जैसे कि गंगा स्नान के महत्व को बताया गया है। विष्णु पुराण में प्रयागराज की महत्त्वता, कुंभ मेले को धर्म और मोक्ष पाने के लिए ज़रूरी बताया गया है, इसलिए तो लाखों की भीड़ कुम्भ आकर अपने पापों को धोती है।

भागवत पुराण में समुद्र मंथन और अमृत की कथा को बताया गया है। कुंभ मेला खगोलीय गणनाओं के आधार पर आयोजित होता है, जब सूरज मकर राशि में और बृहस्पति कुंभ राशि में होते हैं, तो कुंभ मेला लगता है। इन ग्रह स्थितियों को शुभ माना जाता है, और इस दौरान संगम या पवित्र नदियों में स्नान करने से मोक्ष या मुक्ति मिलने की मान्यता है।

ऐतिहासिक रूप से देखें तो इसका पहला जिक्र चीनी यात्री ह्वेनसांग ने 7वीं शताब्दी में किया था। फिर आदिगुरु शंकराचार्य ने भी कुंभ मेले को व्यवस्थित रूप से स्थापित करने में अहम भूमिका निभाई।

कुंभ मेला न केवल आस्था से जुडा है, बल्कि यह जीवन के कर्म और धर्म की ओर भी इशारा करता है। यह आयोजन मानवता को यह संदेश देता है कि संघर्ष और धैर्य के बिना अमृत यानि सफलता मिलना बहुत मुश्किल है।

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