क्रिसमस की परंपरा

क्रिसमस और बहुदेववादी लोक धर्मों में संबंध

जैसे-जैसे ईसाई धर्म यूरोप के उत्तर की ओर फैलता गया, वैसे-वैसे बर्फ़ ईसा के जन्म के साथ जुड़कर पवित्रता का चिह्न बन गया। लाल रंग उनके लहू और बलिदान का चिह्न बन गया।

औपनिवेशी शक्तियों नेपेगनशब्द का उपयोग अपमानजनक ढंग से, ग़ैरईसाई धर्मों के लिए किया, विशष रूप से बहुदेववादी लोक धर्मों के लिए जो प्रकृति अर्थात पौधों, जानवरों, नदियों, पहाड़ों और तारों के माध्यम से दिव्यता को मनाते थे। फिर भी, आज जो रीतिरिवाज़ और त्यौहार ईसाई मानते हैं उनमें बहुदेववाद का बड़ा योगदान रहा है।

हालाँकि ईसा 2,000 वर्ष पहले रहते थे, उनसे जुड़ी माइथोलॉजी, जिसमें कुंवारी मदर मैरी से उनका जन्म, चमत्कार और पुनरुत्थान का समावेश है, उनकी बाद की सदी में उभरी। जनसमूह चमत्कार करने वाले व्यक्ति के प्रति आकर्षित हुआ। इसलिए, ईसा की प्रारंभिक छवियों में उन्हें डंडा या छड़ी पकड़े हुए युवक अर्थात परोपकारी चरवाहे या गुड शेपर्ड दिखाया गया। इन छवियों ने बहुदेववादियों को यूनानी देवता, एडोनिस, की याद दिलाई। हर वसंत ऋतु में एडोनिस का अपनी प्रेमिका, जीवन की मेसोपोटामियाई देवी, इश्तार, के लिए पुनरुत्थान होता है। ईस्टर के त्यौहार का उगम यहाँ से हुआ।

औपचारिक ईसाई चर्च 1,700 साल पहले रोमीय सम्राट कॉन्सटेंटाइन के ईसाई धर्म अपनाने के बाद उभरा। रोमीय साम्राज्य को एकजुट करने के लिए ईसाई धर्म ने सम्राट पर आधारित पंथ की जगह ले ली। रोमवासी स्वयं बहुदेववादी हुआ करते थे। लेकिन अब उन्होंने अन्य सभी लोक धर्मों और रहस्य्मय पंथों को कष्ट पहुंचाए और बहुदेववादी मंदिर नष्ट किए।

यदि पांचवी सदी में एक रोमीय सम्राट की बहन, पुलचीरिया, ने प्रयास नहीं किए होते, तो मदर मैरी को कैथोलिक चर्च में मदर ऑफ़ गॉड का आदरणीय स्थान नहीं मिलता (जिस दर्जे को प्रोटेस्टेंट शाखा ने नकारा)। इस दर्जे ने कई बहुदेववादियों को उन देवियों की याद दिलाई जो अपने शिशुओं को छाती से पकड़ीं दूध पिलाती, जैसी मिस्र की आइसिस होरस को पिलाती।

रविवार सप्ताह का पवित्र दिन बन गया चूँकि कई बहुदेववादी सूर्य की पूजा करते थे। सैनिकों में प्रसिद्ध मिथरा का पंथ सूर्यपूजा के लिए विशेषतः जाना जाता था। क्रिसमस शिशिर अयनांत (वर्ष की सबसे लंबी और ठंडी रात) के पास मनाया जाने लगा। अयनांत के बाद रातें क्रमशः छोटी और उष्ण बन जाती, जिस कारण कई लोग इस दिन सूर्य से प्रार्थना करते।

जैसे-जैसे ईसाई धर्म यूरोप के उत्तर की ओर फैलता गया, वैसे-वैसे बर्फ़ ईसा के जन्म के साथ जुड़कर पवित्रता का चिह्न बन गया। लाल रंग उनके लहू और बलिदान का चिह्न बन गया। स्कैंडिनेवियाई क्षेत्र में पाए जाने वाले चीढ़ के पेड़, जो सदाबहार और शंक्वाकार होते हैं, ने सबको मरणोपरांत जीवित रहने वाली आत्मा और ईसाई धर्म की ट्रिनिटी की याद दिलाई। शूलपर्णी के नोकदार पत्तों और उसके लाल फलों ने लोगों को ईसा के लहू से ढके काँटों के ताज की याद दिलाई। केल्ट जाति के धर्माध्यक्षों में प्रसिद्ध मिसलटो नामक मादा परजीवी पौधा नर बलूत के पेड़ से चिपकता था, जिस कारण इसे मृत्यु के बीच जीवनदायक माना जाने लगा।

ईसा के जन्म के बाद उन्हें थाइम के पत्तों से बने मुलायम बिस्तर पर रखा गया। आयरलैंड की शैमरॉक तिपतिया, जिसकी युवा टहनी पर भी परिपक्व पत्ते होते हैं, ट्रिनिटी का चिन्ह बन गईयह माना जाने लगा कि लैवेंडर और रोज़मैरी को अपना रंग और सुगंध इसलिए मिला कि मदर मैरी ने अपने गीले कपड़े उनपर सुखाए। जब मैरी हेरड के सैनिकों से छिप रहीं थी तब उन्होंने सेज की झाड़ी में आश्रय लिया, एक ऐसी झाड़ी जिसे रोमीय भी पवित्र मानते थे। मेक्सिको में पाया जाने वाला पॉइन्सेटिया पौधा, जिसके स्टार के आकार के लाल पत्ते होते हैं, ने ईसाइयों को उस तारे की याद दिलाई जिसने ज्ञानी राजाओं को ईसा की दिशा दिखाई।

सैंटा क्लॉज़ की धारणा ने तीसरी सदी की टर्की (जहाँ दयालु और उदार सेंट निकोलस रहते थे) से 18वीं सदी के नेदरलैंड्ज़ (जहाँ उन्हें सिंटर क्लास यह उपनाम मिला, सेंट निकोलस का संक्षिप्त रूप) से होते हुए 19वीं सदी की अमरीकी सैल्वेशन आर्मी (जिसमें बेघर लोगों को घंटियाँ देकर लाल रंग के कपड़े पहनाए गए और उन्होंने सड़कों से दान इकट्ठा किया) तक लंबी यात्रा की।

यहाँ से सैंटा क्लॉज़ 19वीं सदी में अमरीकी सुपरमार्केट पहुंचे। सैंटा के कपड़े पहने लोग इन सुपरमार्केटों के बाहर खड़े होकर अच्छे बच्चों को खिलौने देते, जिस कारण ग्राहक वहाँ बढ़ती मात्रा में आने लगें। इस तरह, सैंटा क्लॉज़ एक प्रकार केधर्मनिरपेक्षन्यायाधीश का रूप लिया। फिर 19वीं सदी के अमरीकी लेखकों और व्यंग्य चित्रकारों ने अपनी कलाकृतियों में सैंटा को कुछ यूं कल्पित कियाउड़ते हुए स्लेज पर सवार उत्तरी ध्रुव से आए एक मोटे, पैत्रिक व्यक्ति जो चिमनी से घर में उतरकर तोहफ़े रखते हैं। पूंजीवादियों और बहुदेववादियों की ये कहानियां इतनी प्रभावशाली थीं कि आज अधिकतर बच्चे क्रिसमस को प्रार्थना और ईसा मसीह के साथ नहीं, बल्कि खरीदारी और सैंटा क्लॉज़ के साथ जोड़कर देखते हैं।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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