चीनी बौद्ध धर्म की देवी

चीनी बौद्ध धर्म की देवी

लगभग 2,000 साल पहले से लोग बुद्ध को शिक्षक कम और उद्धारक ज़्यादा मानने लगे, जो न केवल बुद्धिमान बल्कि दयालु भी थे।

बौद्ध धर्म जिसकी उत्पत्ति लगभग 2,500 वर्ष पहले गंगा के मैदानी इलाक़ों में हुई थी, धीरे-धीरे पूरे भारत में और भारत के बाहर भी फैला। जैसे-जैसे वह फैलता गया, वैसे-वैसे उसमें देश-काल के अनुसार कई बदलाव आते गए। चीन में एक महिला बोधिसत्व गुआनयेनअस्तित्व में आईं। यह उनकी ही कहानी है।

शुरू में बुद्ध को एक भारतीय शिक्षक के रूप में सम्मानित किया गया। लेकिन जैसे सदियां बीतती गईं, ऐतिहासिक बुद्ध की जगह कई पौराणिक बुद्धों ने ले ली, जो अस्तित्व के विभिन्न स्तरों पर निवास करते थे। आकाशीय अमिताभ ऐसे ही एक बुद्ध हैं। लगभग 2,000 साल पहले से लोग बुद्ध को शिक्षक कम और उद्धारक ज़्यादा मानने लगे, जो न केवल बुद्धिमान बल्कि दयालु भी थे। इस काल में बोधिसत्व की अवधारणा उभरी: वे जो ब्रह्मांड के सभी पीड़ित प्राणियों की मदद करने के लिए स्वयं का निर्वाण रोककर रखते हैं। अवलोकितेश्वर एक लोकप्रिय बोधिसत्व हैं, जिन्हें 1500 साल पहले अजंता की गुफाओं में पद्मपाणि अर्थात कमल-धारक के रूप में चित्रित किया गया। उनकी मुद्रा सुरुचिपूर्ण, लगभग स्त्रैण है।

लगभग 1500 साल पहले भारत में देवी पूजा और तंत्र का उदय हुआ। बौद्ध धर्म में बुद्ध और बोधिसत्व के बग़ल में स्थित देवी तारा के उल्लेख बढ़ते गए। कुछ ग्रंथों में तारा का वर्णन चिन-देश अर्थात चीन की निवासी के रूप में किया गया है। दूसरों में तंत्र की एक शाखा को चिन-आचर अर्थात चीनी मार्ग कहा गया है।

चीन में ताओवाद ने पुरुष और महिला सिद्धांतों अर्थात यांग और यिं के बीच सामंजस्य की बात की। चीनी ताओवादी संस्कृतियों में महिला शामनों ने अहम भूमिका निभाई। क्या तंत्र भारत से चीन तक या उलटी दिशा में फैला? हम केवल अनुमान लगा सकते हैं। लेकिन यह बात निश्चित है कि मध्य एशिया से होते हुए भारत और चीन को जोड़ने वाले रेशम मार्ग के माध्यम से बौद्ध धर्म के अलावा कई विचारों का आदान-प्रदान हुआ था।

यदि ज्ञान पौरुष था तो उसे संतुलित करने वाली स्त्रैण करुणा की आवश्यकता महसूस होने लगी। तारा एक केंद्रीय देवी नहीं बल्कि एक पूरक देवी थीं। जैसे-जैसे समय बीता, वैसे-वैसे चीनी बौद्ध धर्म में स्त्रैण तत्व अधिक केंद्रीय भूमिका निभाने लगे।

सबसे पहले हमें शास्त्रों में बोधिसत्व के स्त्री रूप लेने के संदर्भ मिलते हैं। फिर हम उभयलिंगी बोधिसत्व के चित्र पाते हैं। अंत में सफ़ेद वस्त्रों में महिलाके दिव्य दर्शन के बाद महिला बोधिसत्व की छवियां दिखाई देने लगती हैं। महिला बोधिसत्व को गुआनयेन नाम दिया गया, शायद गुआनशियिन का एक संक्षिप्त नाम, जिसका अर्थ अवलोकितेश्वर जैसा ही है: वे जो पीड़ित नश्वर लोगों की पुकार को सुनने के लिए नीचे ताकते हैं।

यह सब शायद इसलिए हुआ कि चीनी महिलाए तेज़ी से पितृसत्तात्मक बन रही कन्फ़्यूशियाई व्यवस्था का विरोध कर रही थीं, जो लिंग-संतुलित ताओवाद पर भी हावी हो रही थी। गुआनयेन जो लोगों की इच्छाएं पूरी करती हैं, जिनकी कृपा से लोगों को बच्चे होते हैं और जो खोए हुए नाविकों को सकुशल बंदरगाह पहुंचाती हैं, चांद और समुद्र से जुड़े स्थानीय ताओवादी देवी-देवताओं के साथ घुलमिलकर उनमें विलीन हो गईं।

सबसे महत्वपूर्ण बात यह है कि गुआनयेन को 1,300 साल पहले टांग राजवंश की महारानी वू ज़ेटियनके शासनकाल के दौरान संभवतः लोकप्रिय किया गया। यह इसलिए कि महारानी ने राज्य पर अपनी पकड़ मज़बूत करने, अपने शासन को वैध बनाने और कन्फ़्यूशियाई प्रतिद्वंद्वियों का मुकाबला करने के लिए बौद्ध धर्म का इस्तेमाल किया था। प्रतिद्वंद्वी मानते थे कि एक महिला को शासन करने के लिए कहना भोर में मुर्गे के बजाय मुर्गी को बांग देने के लिए कहने जैसा है।जब चीनी लोग प्रेम और करुणा की देवी से प्रार्थना करते थे, तब क्या वे गुआनयेन का चेहरा देखते थे? हम केवल अनुमान लगा सकते हैं।

देवदत्त पटनायक पेशे से एक डॉक्टर, लीडरशिप कंसल्टेंट, मायथोलॉजिस्ट, राइटर और कम्युनिकेटर हैं। उन्होंने मिथक, धर्म, पौराणिक कथाओं और प्रबंधन के क्षेत्र मे काफी काम किया है।

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