जैसलमेर की सैर

जैसलमेर; जहां रेगिस्तान के बीच में है गोल्डन सिटी

वैसे तो पूरा राजस्थान ही राजसी ठाठ-बाट और अपनी कला-संस्कृति के लिए विश्व में प्रसिद्ध है, लेकिन जैसलमेर सबमें अनोखा है। इसे गोल्डन सिटी भी कहा जाता है, जिसका कारण है बलुआ रेत वाले पत्थरों से बना किला और सुनहरे रेत के टीले।

सैकड़ों किलोमीटर तक फैला रेगिस्तान, तेज़ हवाओं में उड़ते बालू और इन सबके बीच मदमस्त चालों में चलते रेगिस्तानी जहाज (ऊंट)। जहां के किले और हवेलियां विश्व में प्रसिद्ध हैं। हां, आपने सही समझा हम बात कर रहे हैं जैसलमेर की। वैसे तो पूरा राजस्थान ही राजसी ठाठ-बाट और अपनी कला-संस्कृति के लिए विश्व में प्रसिद्ध है, लेकिन जैसलमेर सबमें अनोखा है। जैसलमेर को गोल्डन सिटी भी कहते हैं, जिसका कारण है बलुआ रेत वाले पत्थरों से बना किला और सुनहरे रेत के टीले। जैसलमेर को यदुवंशी भाटी के वंशज रावल जैसल ने 1156 ई में बसाया था। तो जब मैं जैसलमेर पहुंच ही चुका हूं, तो सोचा क्यूं ना आपको भी इस यात्रा में शामिल कर लूं। तो फिर सोचना क्या, चलिए मेरे साथ इस यात्रा में अपनी नज़रों से जैसलमेर के ऐतिहासिक किला के साथ-साथ अन्य जगहों का दीदार करते हैं।

जैसलमेर किला (Jaisalmer Kila) 

मैं पहुंच चुका हूं जैसलमेर किला के पास, जो शहर के बीचों-बीच सैकड़ों साल के इतिहास और संस्कृति को समेटे अडिग होकर खड़ा है। मैं किले की भव्यता को निहारते हुए कब मेन गेट पर पहुंच गया पता ही नहीं चला। किले के मेन गेट का नाम है अखी पोल। यहां पहुंचने पर मुझे पता चला कि मुख्य किला तक पहुंचने के लिए मुझे ऐसे तीन और गेट पार करने होंगे। पहले गेट से आगे बढ़ते ही सामने दिखता है, बाबा रामदेव जी का मंदिर, जिसको पार करते ही सेकेंड गेट आता है, जिसका नाम है सूरज पोल। इसके पास पहुंचते ही मेरी कानों में धीमे-धीमे आवाज़ में राजस्थानी लोकगीत की धुन सुनाई देने लगी। मैं जब इन धुनों को पीछा करते हुए आगे बढ़ा, तो सामने कई लोग स्थानीय वाद्ययंत्रों के साथ… पधारो म्हारे देश रे… जैसे लोकगीत गा रहे थे। इन लोकगीतों के बोल और संगीत आपको एक अलग ही दुनिया में ले जाएंगे। लोकगीत के बोल मैं समझ ही रहा था कि आसपास के स्टॉल पर बिक रहे हैंडीक्राफ्ट पर नज़रें जा अटकीं, जो राजस्थान और जैसलमेर की समृद्धि और यहां के इतिहास को दर्शा रहे थे। चौथे गेट हवा पोल के बाद आता है, चामुंडा माता मंदिर। यहां से आगे बढ़ते ही जैन मंदिर आता है, जो कि काफी प्रसिद्ध है। इस किले की एक और सबसे खास बात ये है कि यहां अभी भी लोग रहते हैं। जो किसी पुराने शहर जैसा है। किले में लगभग 400 परिवार रहते हैं। साथ ही 50 से 60 होटल हैं। वहीं यहां के जैन मंदिर की सबसे खास बात है कि यहां हिंदू देवी-देवताओं की मूर्तियां भी हैं। पत्थरों को तराश कर किले को आकर्षक बनाया गया है। जो लोगों को अपनी ओर आकर्षित करता है।

बड़ा बाग स्मारक (Bada Bag Smarak) 

जैसलमेर किला से निकलने के बाद मैं पहुंचा शहर से 6 किलोमीटर बाहर बड़ा बाग स्मारक। यहां राजपरिवार के पुरुषों को समर्पित बलुआ पत्थरों की बनी छतरियां हैं, जो लड़ाई में मारे गए थे। बगीचों से घिरे होने के कारण इसका नाम बड़ा बाग रखा गया। स्मारकों में राजस्थानी स्थापत्य किला का अनोखा संगम देखने को मिलता है। यहां से डूबते सूरज का नज़ारा देखने लायक होता है।

पटवों की हवेली (Patwon ki Haveli) 

पटवों की हवेली जैसलमेर में प्रमुख पयर्टन स्थलों में से है। यहां की गलियों में पहुंचते ही आपको नक्काशीदार खिड़कियां और बालकनी देखने को मिल जाएंगी। यहां की हवेलियां काफी भव्य है। यहां 5 छोटी हवेलियों का समूह है, जिसे एक व्यापारी ने बनवाया था। स्थानीय लोग इसे काठारी की पटवा हवेली भी कहते हैं। इन हवेलियों को लगभग 5 वर्षों में बनाया गया था।

गड़ीसर झील (Gadisar Jheel) 

जैसलमेर में पानी की कमी को पूरा करने के लिए 1400 ई. में तत्कालीन राजा महाराला जैसल ने शहर के बाहर विशाल झील का निर्माण करवाया था। इस झील का नाम गड़ीसर झील है। झील कई मंदिरों के अलावा मंडपों से घिरा हुआ है। सर्दी के मौसम में आप यहां विदेशी प्रवासी पक्षियों को भी देख सकते हैं। वहीं, सुबह के समय यहां से त्रिकुट किले का नजारा आकर्षित करता है।

सैम सैंड ड्यून्स (Sam Sand Dunes) 

आप जैसलमेर पहुंचे और यहां के सैम सैंड ड्यून्स को देखने नहीं पहुंचे, तो आपका सफर अधूरा है। यहां ऊंट पर बैठकर बालू के टीलों के बीच घूमना आपको अलग ही दुनिया में ले जाता है। इसके अलावा आप रोमांच को जीना चाहते हैं, तो जीप सफारी का भी आनंद ले सकते हैं। यहां के सम के धोरे सनसेट के लिए काफी प्रसिद्ध है। रेत के समंदर में सूरज को डूबते देखना आपको अलग ही अनुभव दिलाएगा।

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