प्रकृति

प्रकृति पर विजय

"शक्तिशाली होने की इच्छा प्रकृति के खिलाफ है। क्योंकि मूलतः शक्तिशाली बनने की इच्छा एक प्रतिरोधी विचार है।" – ओशो

विज्ञान का मूल आधार प्रकृति पर विजय प्राप्त करना है। यही विज्ञान की परिभाषा भी है – प्रकृति पर विजय। हमें यदि इसपर पर हावी होना है और हमें इसके सभी रहस्यों को जानना है, हमें शक्ति के सभी रहस्यों को खोजना है, चाहे वह कहीं भी हों। लेकिन यही विचार आपको नेचर से दूर ले जाता है, आपको इसका विरोधी बनाता है और विनाशकारी बन जाता है। शक्ति की इस चाह से पृथ्वी का पर्यावरण नष्ट हो गया है। आंतरिक और बाह्य, जीवन की दोनों स्वाभाविक लय अस्त-व्यस्त हो गई है।

मैने सुना है….

पर्शिया के फ्रेडरिक के मन में एक बार बहुत ही अजीब विचार आया। गांव में घूमने के दौरान उसने चिड़ियों को दाना चुगते देखा। वह सोचने लगा कि इस तरह तो वे उसके राज्य के लाखों दाने चुग जाती होंगी। इसकी अनुमति नहीं दी जा सकती। या तो उन पर विजय प्राप्त कर लिया जाए या फिर उन्हें नष्ट कर दिया जाए।

उन्हें नष्ट करना मुश्किल था, तो उसने हर मृत गौरैया पर ईनाम रख दिया। पर्शिया के सब लोग शिकारी बन गए और जल्द ही देश से गौरैया समाप्त हो गईं। क्या शानदार जीत थी!

पर्शिया का फ्रेडरिक बहुत खुश था। उसने इस घटना का जश्न प्रकृति पर महान विजय के रूप में मनाया। राजा की खुशी तब समाप्त हो गई, जब अगले साल उसे बताया गया कि कैटरपिलर और टिड्डियों ने फसलें चट कर दीं, क्योंकि गौरैया के न होने से जीवन की पूरी लय खत्म हो गई थी। गौरैया इल्लियों और टिड्डियों को खाती रहती थी। गौरैया के नहीं होने के कारण पूरी फसल कैटरपिलर ने नष्ट कर दी। तब विदेश से गौरैया लाना आवश्यक हो गया। फिर राजा ने कहा, “मैंने ज़रूर गलती की है। भगवान ही जानता है कि वह क्या कर रहा है।“

शताब्दी के महान वैज्ञानिक एक-एक करके धीरे-धीरे अनिच्छा से यह सोचने लगे कि एक बड़ी गलती हो गई है।

शक्तिशाली होने की इच्छा ही नेचर के खिलाफ है, क्योंकि शक्तिशाली होने की इच्छा के विपरीत है। आप शक्तिशाली क्यों होना चाहते हैं? आप किसी को नष्ट करने के बारे में सोच रहे होंगे। नष्ट करने के लिए शक्ति चाहिए। हावी होने के लिए शक्ति चाहिए। विजय प्राप्त करने के लिए शक्ति चाहिए।

भिक्षु ने अवश्य पूछा होगा, ‘दुनिया में सबसे शक्तिशाली वस्तु क्या है?’ वास्तव में, शब्द होना चाहिए था ‘सिद्धि’। भिक्षु को पूछना था, ‘सिद्धि क्या है, शक्ति क्या है?’

विज्ञान अधिक शक्ति प्राप्त करने के लिए प्रकृति में घुसने की कोशिश करता है और कई प्रणालियां हैं, जो आपके अंतरतम में प्रवेश करती हैं लेकिन फिर भी लक्ष्य होता है, अधिक शक्ति प्राप्त करना। इससे कोई अंतर नहीं पड़ता कि आप वैज्ञानिक रूप से शक्तिशाली होते हैं या मानसिक रूप से। पश्चिम अब मनो-विज्ञान में रुचि ले रहा है, लेकिन लालसा वही है, अधिक शक्तिशाली होना।

इन विचारों को ओशो द्वारा ‘मूविंग इनटू द अननोन’ से लिया किया गया है ।

ओशो को आंतरिक परिवर्तन यानि इनर ट्रांसफॉर्मेशन के विज्ञान में उनके योगदान के लिए काफी माना जाता है। इनके अनुसार ध्यान के जरिए मौजूदा जीवन को स्वीकार किया जा सकता है।

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