त्याग के बिना प्यार का क्या मोल

त्याग के बिना प्यार का क्या मोल

7 साल में पहली बार आकाश घर वापस ना लौटने के लिए खुद को दोषी मान रहा था।

एक दिन आकाश के फोन पर एक मैसेज आया, जिसे देखते ही उसके होश उड़ गए। 20 साल की उम्र में ही उसने घर छोड़ दिया था, उसे इस बात की उम्मीद भी नहीं थी कि उसे ऐसा मैसेज आएगा।

आकाश कई वर्षों से विदेश में रह रहा है। इस बीच वो अपने परिवार के संपर्क में था, दूर से ही सही उनके सुख-दुख का साथी था। उसकी ज़िंदगी में क्या चल रहा है और क्या नहीं तमाम बातें अपने माता-पिता से शेयर करता है। पैरेंट्स (Parents) से बात करने के लिए बकायदा उसने सप्ताह में एक दिन फिक्स कर रखा था। घर वालों को वीडियो कॉल कर अपने जीवन की उपलब्धियों को शेयर करता और उनके साथ जश्न मनाता। वहीं घर वाले भी हमेशा उसे और बेहतर करने के लिए प्रेरित करते थे। उसके मां-पिता तो उसे स्वदेश लौटने, अपनी पसंद से शादी करने और परिवार के साथ छुट्टियां बिताने की मांग भी नहीं करते थे। पैरेंट्स यही सोचते थे कि जब हमने अपने बच्चे को आज़ादी दे ही दी है, तो उसे अपना सफर खुद तय करने दें। ताकि वो जो चाहे उसे पा सके।

आकाश ने ह्यूमन ब्रेन (Human Brain) के रहस्य को हल करने की कोशिश में विदेश का रुख किया था। उसकी रिसर्च और फाइंडिंग्स सारी दुनिया में फेमस थी और सारे विश्व के लोग उससे बात करने को आतुर थे। आइसलैंड की एक ऐसी ही यात्रा के दौरान उसने अपने घर पर नियमित वीडियो कॉल किया, तो उसके पिता ने कॉल उठाया।

आकाश ने पूछा, ‘पापा.. मां कहां हैं? पापा बोले, ‘तुम्हारी मां पूरे घर में बेसब्र होकर अपनी अलमारी की चाबियां खोज रही हैं। उन्हें याद ही नहीं आ रहा है कि चाबियां कहां रख दी हैं’। मां के लौटने पर पिता-पुत्र दोनों ने कुछ देर के लिए उसकी परेशानी का मजाक बनाया और चिढ़ाया। पहली बार आकाश से बात करते हुए उसकी मां खोई लग रही थीं। आकाश ने इस बात पर ध्यान दिया, लेकिन वह इस बारे में ज्यादा कुछ कह नहीं सका।

बाद के हफ्तों में आकाश बहुत व्यस्त हो गया और लगभग एक महीने तक अपने माता-पिता को फोन नहीं कर सका। इतने वर्षों में यह पहली बार हुआ था, जब उसने उनसे बात नहीं की थी। उसे विश्वास था कि वे दोनों अच्छे से ही होंगे। वह ऐसे ही उस वक्त तक निश्चिंत रहा जब तक उसे वह भयावह संदेश नहीं मिला। ‘हम चाहते हैं कि तुम घर वापस आ जाओ’। उसके पिता ने शायद ही उसे कभी कोई मैसेज भेजा था। इस तरह के अचानक आए मैसेज की बात छोड़ ही दीजिए।

आकाश ने तुरंत अपने पिता को फोन किया। 70 वर्षीय उसके पिता ने कम्पन भरी आवाज़ में कहा, ‘यह अल्जाइमर की शुरुआत है, बेटा। वह चीज़ों पर ध्यान नहीं दे पा रहीं हैं और अब उसे नाम याद रखने में भी परेशानी हो रही है’। 7 साल में पहली बार आकाश, घर वापस ना लौटने के लिए खुद को दोषी मान रहा था। वह अपनी ही ज़िंदगी में इतना मशगूल जो हो गया था।

उसने भारत जाने वाली पहली फ्लाइट पकड़ ली। जब वह घर पहुंचा, तो उसने देखा कि उसकी मां के चेहरे पर कोई भाव नहीं था, वो शून्य में देखते हुए खड़ी थी। उसे गले लगाने की बजाय वह दूर से ही उसे देखती रही। यह देखकर आकाश अंदर से टूट गया।

विडंबना यह है कि एक न्यूरोसाइंटिस्ट होते हुए भी वह अपनी मां की बहुत कम मदद कर सकता था, लेकिन एक बेटे के रूप में वह उनके लिए बहुत कुछ अच्छा कर सकता था। मां के प्रति अपनी कृतज्ञता का कर्ज चुकाने का यह मौका था। आज तक हमेशा उसे अपने माता-पिता से केवल उनका प्यार, समझ व बिना किसी शर्त के समर्थन मिला था। आज उसके पास उन्हें कुछ देने का मौका था।

उसने अमेरिका से अपना सामान समेटा और अपनी मां की देखभाल करने के लिए भारत में अपने घर लौट आया। ठीक वही देखभाल जो इतने वर्षों तक मां ने अपने बेटे के लिए किया था।

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