शून्य का इतिहास

जीरो का इतिहास, शून्य से शिखर तक

जीरो एकमात्र ऐसा नंबर है, जिसका कहने के लिए तो कुछ नहीं लेकिन काफी मज़बूत नंबर है। इसके बिना बाकी के अंकों का कोई मोल नहीं। इसके इतिहास और महत्व को जानने के लिए पढ़ें ये खास लेख।

हमारे ग्रह के इतिहास का सबसे ज्यादा विरोधाभासी तथ्य यह है कि पहली नज़र में जो अंक हमें नजर आता है, दरअसल वह कुछ नहीं दर्शाता, अर्थात वह ज़ीरो होता है। मजेदार बात तो यह है कि यही आंकड़ा जीरो आगे जाकर सब कुछ बन जाता है।

सोलवेदा ने जब शून्य के इतिहास को खंगालने की कोशिश की, तो पता चला कि एक आंकड़े और एक धारणा के रूप में ज़ीरो हैरान कर देने वाला विचार है।

एक धारणा के रूप में जीरो खुद को अनिश्चित रूप से तत्वविज्ञान पर संतुलित करता है। ऐसे में हम धारणा को कुछ देर के लिए छोड़कर एक अंक के रूप में शून्य और शून्य के इतिहास पर नज़र डालेंगे।

शून्य क्या है? (Shunya Kya Hai?) 

शून्य (Zero) एक बिना किसी रूप का गणितीय स्वरूप है।  हालांकि मैथ्स की दृष्टि से इसका महत्व ‘कुछ नहीं, है। वहां यह एक ऐसा स्वरूप होता है, जिसका कुशलतापूर्वक उपयोग करने से इसका अर्थ निकाला जा सकता है। हालांकि, धारणा के मुकाबले अंक से काम चलाना आसान दिखाई देता है, लेकिन यह आपको आश्चर्यचकित कर सकता है। ऐसा कैसे संभव है कि जब आप किसी एक आंकड़े को दूसरे आंकड़े से जोड़ें, तो इसके परिणामस्वरूप मिलने वाला आंकड़ा मूल्यवान नज़र आता है, लेकिन जब वही आंकड़ा अकेला होता है, तो वह मूल्यहीन हो जाता है।

प्रसिद्ध गणितज्ञ एवं पब्लिक स्पीकर डॉ. जेम्स ग्राइम कहते हैं, ‘दरअसल ज़ीरो गणित के इतिहास में मील का पत्थर माना जाता है। आरंभ में हमें ‘पांच भेड़’, ‘पांच गाय’ अथवा ‘अनाज के पांच बोरे’ को ही समझना होता था, लेकिन बाद में हम ‘पांच’ की संकल्पना को वह क्या गणना कर रहा है, इससे जुदा करने में सफल रहे और ‘पांच’ अपने आप में अर्थपूर्ण हो गया’।

उन्होंने आगे कहा कि ज़ीरो इस मामले में ज्यादा पेचिदा साबित हुआ। ज़ीरो अर्थात कुछ नहीं। जब कुछ है ही नहीं, तो फिर ‘कुछ’ का क्या अर्थ रह जाता है? इसके लिए फिर एक अलग स्तर की कल्पना की गई अर्थात दूसरे आंकड़ों की कल्पना की जरुरत पड़ी। लेकिन गणित का तो सारा खेल ही कल्पना पर आधारित है। यह कल्पना की शक्ति ही है, जिसका उपयोग करते हुए हम ‘भेड़’, ‘गाय’ अथवा ‘अनाज’ से जुड़ी समस्या तक सीमित नहीं रहे, बल्कि अन्य समस्याओं का हल भी खोज सके। यह बात ही गणित का अपने आप में वर्णन करने के लिए काफी है।

तो फिर ‘कुछ नहीं’, आंकड़े में कैसे परिवर्तित हो पाया? (To Fir Kuch Nahi, Aakde Mein Kaise Parivartit Ho Paya)

सुमेरियन लोगों ने ही दुनिया में सबसे पहले गणना की पद्धति अपनाई, लेकिन ज़ीरो का इजाद बेबीलोनियाई, मायन और भारतीय लोगों ने किया। ऐसा माना जाता है कि भारतीय गणितज्ञ, विशेष तौर पर खगोलशास्त्री ब्रह्मगुप्त ने ही कुछ नहीं की संकल्पना को लेते हुए इसे एक अंक अर्थात ज़ीरो (खालीपन) पुकारना शुरू किया था।

उन्होंने ही इसके गणितीय नियम लिखे। उस वक्त इसका स्वरूप अंडाकार नहीं था। उस वक्त आंकड़ों के नीचे बिंदी लगाकर यह दर्शाया जाता था कि इसका अर्थ ज़ीरो होगा।

अरब साम्राज्य में शून्य भारत से ही पहुंचा था। वहां इसे सिफर पुकारा जाता है। इसका सबसे पहले उपयोग अल ख्वारिझमी (बीजगणित के जनक) ने किया था। कालांतर में यह यूरोप पहुंचा जब मूर्स (मूर लोगों) ने स्पेन पर कब्जा किया था। उस वक्त इतालवी गणितज्ञ फिबोनाची ने इसका उपयोग समीकरण के लिए करना शुरू किया। उनकी पद्धति को शीघ्र ही बैंकर्स एवं व्यापारियों ने अपना लिया।

ज़ीरो के अस्तित्व का सबसे पहला प्रमाण के-127 नामक कम्बोडियन अभिलेख में मिलता है। ईसा पश्चात सन 683 का यह अभिलेख खमेर रूज काल में हुए विध्वंस में लुप्त हो गया था। हालांकि भारत में इसका प्रमाण ईसा पश्चात सन 876 में ग्वालियर के पत्थरों को काटकर बनाए गए चतुर्भुज मंदिर की दीवार पर मिला।

कहानी में रोचक मोड़ (Kahani Mein Rochak Mod)

ज़ीरो भले ही दुनियाभर के गणितज्ञों को आकर्षित करता रहा हो, लेकिन आम दुनिया ने इसे आसानी से स्वीकार नहीं किया। सोलहवीं और सत्रहवीं शताब्दी में दुनिया अरस्तु के सिद्धांत को मानती थी, जिसने भगवान के अस्तित्व को साबित किया था। इस सिद्धांत में खालीपन अथवा अनंतता को मान्यता नहीं दी गई थी, अत: इसने ज़ीरो को भी मान्यता नहीं दी। ईसाई धर्म ने अरस्तु के विचारों से सहमति जताई थी। ऐसे में उसके सिद्धांत की आलोचना करने का सीधा अर्थ होता भगवान के अस्तित्व को चुनौती देना। कहा जाता है कि शून्य, पुर्नजागरण के उस काल में चर्चा का केंद्र बिंदु बन गया क्योंकि जहां चर्च उसे खारिज कर रहा था, वहीं व्यापार जगत में उसकी मांग बढ़ रही थी।

यदि अब भी आपको इस आंकड़े ने हैरान, परेशान नहीं किया है तो यह लीजिए: छह सेब को तीन लोगों में बराबर बांट दीजिए। सीधा-सा गणित है कि छह को तीन से भाग दो तो प्रत्येक को दो-दो सेब मिलेंगे।

फिर आप छह सेब को छह लोगों में बराबर बांट दो। अब सीधा गणित है कि प्रत्येक को एक-एक सेब मिलेगा।

लेकिन जब आप ज़ीरो लोगों में सेब बांटने की बात करेंगे तो सोचेंगे कि भाई इसमें क्या तुक है? लेकिन ज़ीरो आखिर एक आंकड़ा है। अत: उससे हम किसी भी दूसरे नंबर के साथ भाग कर सकते हैं। इस सवाल का जवाब ही विरोधाभासी है। 6/0=? अपरिभाषित है, और ज़ीरो के साथ भी यही है।

जैसे ही आप उसे किसी अन्य आंकड़े के साथ भाग देने की कोशिश करेंगे चीजें अस्त-व्यस्त होने लगेंगी।

 

 

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