हिडिम्बा देवी मंदिर

मनाली के हिडिम्बा देवी मंदिर की अनोखी दास्तां

हिडिम्बा देवी महाभारत की एक ऐसी पात्र हैं जिनके बारे में बहुत कम ही लोगों को पता है। माना जाता है कि वो एख शक्तिशाली व समर्पित महिला की मिसाल हैं। हिमाचल प्रदेश में उनका मंदिर मनाली के सबसे प्रसिद्ध टूरिस्ट प्लेस में से एक है।

दस वर्ष से ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन मेरी बोर्ड परीक्षा के तुरंत बाद मनाली (Manali) यात्रा की यादें अभी भी तरों-ताजा हैं। दुनिया भर के टूरिस्ट के लिए हिमाचल खूबसूरत जगह है। वहां की ऊंची, बर्फ से ढकी चोटियां, मन को लुभाने वाली घाटियां, झरने और हरे-भरे जंगल सब कुछ सुहाने हैं। वहां की लुभावनी सुंदरता और प्राकृतिक दृश्य की भव्यता ने मानो मुझ पर जादू कर दिया हो। हम शिमला, रोहतांग दर्रे, स्पीति घाटी, कांगड़ा और अन्य सभी लोकप्रिय स्थानों पर घूमें। लेकिन एक जगह जिसने मुझे सबसे ज्यादा प्रभावित किया, वह था हिडिम्बा देवी मंदिर (Hidimba Devi Temple) मनाली, जिसकी यादें मैं जीवन भर संजो कर रखूंगी। हिडिंबा देवी को समर्पित यह शानदार मंदिर, महाराजा बहादुर सिंह द्वारा 1553 ई. में बनवाया गया था। यह मंदिर डूंगिरी मंदिर के नाम से भी जाना जाता है।

हिडिम्बा देवी मंदिर

मनाली में हिडिम्बा देवी मंदिर दानव हिडिम्बा को समर्पित है।

हिडिम्बा देवी का वर्णन भारतीय महाकाव्य महाभारत में मिलता है। राक्षसी के रूप में जन्मी हिडिम्बा काम्यक जंगल के शक्तिशाली राक्षस राजा हिडिम्ब की बहन थी। अज्ञातवास के दौरान दुर्योधन द्वारा पांडवों की हत्या के प्रयासों से बचने के लिए पांडव सीधे राक्षस भाई-बहनों के निवास काम्यक वन जा पहुंचे। जब हिडिम्ब को पता चला की पांडव जंगल में रह रहे हैं, तब उसने अपनी बहन को उन्हें मारने का आदेश दिया। तब हिडिम्बा ने पांडवों को लुभाने के लिए एक खूबसूरत महिला का रूप धारण किया। हिडिम्बा ने कभी सोचा नहीं था कि उसे पहली नज़र में ही बलवान व उदार भीम से प्यार हो जाएगा। तब वह अपने भाई के आदेश का पालन करने के बजाय, भीम के पास शादी का प्रस्ताव लेकर गई। हिडिम्बा भीम पर इस कदर मोहित हो गईं कि उन्होंने अपनी सच्चाई भीम को बता दी और पूरी ईमानदारी से उसने हिडिम्ब से होने वाले खतरे से भी आगाह किया। साथ ही उसने हिडिम्ब को युद्ध में हराने के लिए पांडवों की मदद की। कुंती की सहमति से भीम और हिडिम्बा ने विवाह किया। हालांकि, भीम की एक शर्त थी कि हिडिम्बा के बच्चे को जन्म देने के बाद वह उसे छोड़ कर चला जाएगा। प्यार में डूबी हिडिम्बा तुरंत राजी हो गई। एक वर्ष के भीतर एक बच्चे का जन्म हुआ और सहमति के अनुसार भीम अपने भाइयों के साथ उस स्थान को छोड़ कर चले गए। हिडिम्बा को जंगल में अकेले ही अपना और अपने बेटे का देखभाल करना था। हिडिम्बा ने अकेले ही अपने बेटे का लालन-पालन किया, जो बड़ा होकर अपने पिता की तरह एक शक्तिशाली योद्धा बना।

ऐसा माना जाता है कि अपने जीवन के अंतिम समय में हिडिम्बा कठिन तपस्या करती थी और अंत में उन्हें अलौकिक शक्तियों का आशीर्वाद प्राप्त हुआ। वह एक ‘देवी’ या पूज्य स्त्री बन गईं और उस क्षेत्र की रक्षक बन गईं। अपने मानवीय स्वभाव के कारण हिडिम्बा अन्य राक्षसों से अलग थीं। वह अपने भाई हिडिम्ब की तरह दुष्ट प्रवृत्ति कि नहीं थी और न ही किसी का अहित चाहती थीं; बल्कि वह दयालु थीं। स्थानीय लोगों ने उन्हें देखा और जाना, फिर उनके नाम पर एक मंदिर बनवाया। आज हिडिम्बा को देवी के रूप में पूजा जाता है और उनका हिडिम्बा मंदिर मनाली का सबसे लोकप्रिय स्थान और पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र बन गया है। राक्षसी से देवी बनने की इस कहानी ने मुझे आकर्षित तो किया ही साथ ही मंदिर की अथाह सुंदरता ने भी मुझे मंत्रमुग्ध कर दिया। मैं देश भर के कई मंदिरों में गई हूं पर पगोडा शैली के इस हिंदू मंदिर की वास्तुकला कुछ अलग और नई थी।

हिडिम्बा देवी मंदिर

सींग वाले जानवरों के कंकाल के साथ नक्काशी वाला लकड़ी का बरामदा।

मैं शाम के वक्त वहां पहुंची थी, शायद इसलिए हिडिम्बा देवी मंदिर कुछ अंधकारमय और डरावना लग रहा था। लेकिन अंदर पहुंचते ही मेरी राय बदल गई। भीतरी हिस्सों में लकड़ी पर की गई अद्भुत नक्काशी से मंदिर देखने में शानदार लग रहा था। इसका निर्माण एक विशाल, पवित्र चट्टान पर किया गया था, जो “भू-देवी की अभिव्यक्ति” है। हिडिम्बा देवी मंदिर के नीचे की तीन छतें देवदार लकड़ी के तख्तों से बनी हुई हैं और चौथी या सबसे ऊपर की छत तांबे और पीतल से निर्मित की गई है। यह खूबसूरत मंदिर निश्चित ही पुराने समय के कलाकृति को प्रकट करता है। इसका शांत वातावरण किसी की आत्मीय गहराई को आसानी से छू सकता है, जिससे यह प्रकृति और मेरे जैसे शांति प्रेमियों के लिए एक बेहतर जगह है। मंदिर घने देवदार के जंगल के बीच स्थित है, जो प्रकृति प्रेमियों के लिए किसी आश्चर्य से कम नहीं है। जंगल में टहलते हुए मैंने यह महसूस किया कि यह शायद मेरे द्वारा की गई सबसे अच्छी मंदिर यात्रा थी। यह अनुभव मेरे लिए मनमोहक, ठंडा और आनंदमय था। यहां चारों ओर से सुखदायक एहसास ने मन को शांत किया और हल्का होने के लिए प्रेरित किया। जंगल में मुझे किसी की उपस्थिति का एहसास हुआ। हालांकि, यह सवाल बेतुका लग सकता है पर क्या यह हिडिम्बा देवी थीं?

खैर! वहां के स्थानीय लोगों का मानना है कि हिडिम्बा देवी अभी भी जंगल की रक्षा करती हैं और वहां के लोगों का मार्गदर्शन करती हैं। हम बहुत सी जगहों की यात्रा करते हैं, लेकिन उनमें से कुछ ही हमारे दिल में बसते हैं – मनाली में हिडिम्बा देवी मंदिर ऐसा ही एक स्थान था। इसने मुझे महाभारत के अपने अधूरे ज्ञान के बारे में फिर से सोचने पर मजबूर कर दिया। लेकिन अब, मेरे लिए हिडिम्बा देवी महाभारत की ऐसी नायिका हैं, जिनका ज़िक्र हुआ ही नहीं था। वह एक शक्तिशाली और निष्ठावान महिला का उदाहरण है, जो अपने भाग्य को शान से स्वीकार करती हैं और एक योद्धा पुत्र को अकेले ही अत्यंत विनम्रता और निष्ठा से पालती है।

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