गंगटोक की सैर

पहाड़, रोप वे, मोनेस्ट्री-मंदिर में शांति है गंगटोक की खासियत

मैं इस बार ऐसी जगह जाना चाहता था जहां मैं प्रकृति के बीच शांति के पल बीता पाऊं। बर्फ से ढके पहाड़ों को देख सकूं, मंदिर या आध्यात्मिक जगह पर शांति के पल बिता पाऊं और आकाश में एक पक्षी उड़ान भरते वक्त जैसा महसूस करता है, वैसा ही एहसास कर पाऊं। इन वजहों से मैंने अगला ट्रैवल डेस्टिनेशनल सिक्किम के गंगटोक को चुना। मेरे साथ इस सफर का आनंद लेने के लिए पढ़ें ये खास लेख।

ऑफिस से छुट्टी लेकर मैं निकल गया अपने अगले सफर की ओर। मैंने कोलकाता के हावड़ा से, न्यू जलपाईगुड़ी पहुंचने के लिए ट्रेन से सफर किया। यहां से गंगटोक (Gangtok) जाने के लिए कैब से सफर करते हुए 122 किलोमीटर की यात्रा कब पूरी हुई, मुझे पता ही नहीं चला। गाड़ी में बैठे-बैठे मैं पहाड़ों, नदियों और पुल को पार करते हुए सफर का आनंद लेते हुए मैं पहुंच गया गंगटोक। रास्ता अगर खूबसूरत वादियों से घिरा हो तो कब कट जाए पता ही नहीं चलता।

अब मैं पहुंच चुका था गंगटोक के एमजी मार्ग, यानि महात्मा गांधी मार्ग। यहां लाइन से काफी दुकानें थी। मौसम में ठंडक मुझे ये एहसास दिला रहा था कि जहां मैं पहुंचना चाहता था अब मैं वहीं हूं। यहां खाने के लिए काफी रेस्टोरेंट दिखे। इसी इलाके मैं एक ऐसे होटल में रुका, जहां खिड़कियों के पर्दे हटाते ही खूबसूरत वादियों को देख सकूं।

अगले दिन मैंने नाथुला पास (Nathula pass) जाने की प्लानिंग की। ये इंडो-चाइना का बॉर्डर है। इसी रूट से कुछ दूरी आगे है, बाबा हरभजन मंदिर, मैंने यहां भी दर्शन करने की योजना बना ली। तीसरा स्थान था चंगुलेक। यहां जाने के लिए टैक्सी ली व निकल गया सफर पर।

यदि आपको बर्फीली पहाड़ियां पसंद है, पहाड़ों से छनकर आ रही ठंडी हवाओं का एहसास करना पसंद है, खूबसूरत वादियों की शांति पसंद है, तो नाथुला पास परफेक्ट जगह है। यहां पहुंचने की सबसे अच्छी बात ये रही कि कुछ वक्त गुजारते ही बर्फबारी होने लगी। आसमान से रुई के समान गिरते बर्फ को हाथ से छूने का आनंद ही अलग है। अपने शहर में मैंने कई बार खिड़की से हाथ बाहर निकालकर, बारिश की बूंदों को पकड़ने की कोशिश की है, लेकिन वे बूंदें किसी की पकड़ में आती कहां है! मगर, जब आप आसमान से गिरते हुए रुई जैसे बर्फ को हाथ में पकड़ते हैं, तो उस बर्फ का टुकड़ा आपके हाथ में ही रह जाता है और ये वक्त आपके दिल और आंखों में ताउम्र के लिए कैद हो जाता है।

इसके बाद मैं नाथुला पास से 8 किमी दूर बाबा हरभजन मंदिर भी गया। यूं तो इनके बारे में मैंने टीवी पर किस्से-कहानियों में काफी कुछ सुना था। यहां पहुंचकर और उनके दर्शन कर के काफी अच्छा लग रहा था। मैंने मंदिर के आस-पास एक अजीब सी शांति और सुकून का एहसास किया। वहीं इस बात ने मुझे काफी हैरान किया कि ये मंदिर बाबा हरभजन सिंह के लिए बनाया है। बाबा हरभजन सिंह के बारे में कहा जाता है कि मरने के बाद भी वो हमारे देश की रक्षा कर रहे हैं और आज तक वे सेना से रिटायर नहीं हुए हैं। मंदिर के कैंपस में मैं आध्यात्मिकता का एहसास कर पा रहा था। अब मैं निकल गया चंगुलेक की ओर। यहां का नज़ारा खूबसूरत तो था ही। यहां खुले आसमान के नीचे लोग यार्क राइडिंग भी कर रहे थे।

यहां आने के पहले मैंने गोंजंग मोनेस्ट्री के बारे में काफी सुना था। यकीन मानिए यहां पहुंचकर मैं उसी शांति का एहसास कर पाया, जिसकी तलाश में मैं यहां आया था। यहां मैंने भगवान बुद्ध के दर्शन किए। मंदिर कैंपस में कुछ समय बिताकर आसपास की खूबसूरती का आनंद लिया। यहां से पूरा गंगटोक शहर साफ-साफ दिख रहा था। अब मैं चला गया ताशी व्यू प्वाइंट, यहां से कंचनजंघा पर्वत को साफ-साफ देखा। मैं खुशकिस्मत ही था, क्योंकि खराब मौसम में ये पर्वत बादलों से ढक जाता है। कंचनजंघा पर्वत बर्फ से ढका था। शिखर पर काफी तेज़ हवाएं चल रही थी, पर्वतों से होकर आ रही हवाएं ठंडक का एहसास दिला रही थी। यहीं से कुछ दूरी पर गणेश टोक भी है, यहां मैंने गणेश भगवान की पूजा की।

शहर घूमते-घूमते मैंने रोप वे भी देखा, यहां गंगटोक सिटी को ऊपर से देखने का अपना ही मज़ा आया। मैं ठीक वैसा ही एहसास कर रहा था, जैसा आसमान में उड़ता पक्षी महसूस करता होगा।

मैंने सुना था कि नार्थ सिक्किम के लाछुंग में प्रकृति की सुंदरता देखते ही बनती है। इस 128 किमी के सफर में मैंने काफी कुछ देखा। जैसे, रास्ते में सात झरने मिले, यहां रुककर पहाड़ के बीच से गिरते झरने को देख मन खुश हो गया। फिर, रास्ते में ही भीमा वाटरफॉल (Bheema Waterfall) भी मिला। यहां ठंडे पानी में पांव डालकर, झरने की आवाज़ को सुनकर, जिस शांति का एहसास हुआ, उसे शब्दों में बयां कर पाना मुश्किल है। शाम होते-होते मैं पहुंच गया था लाछुंग।

लाछुंग में बर्फ से ढके पहाड़, घर, सड़क और वादियों को देख दिल में एक आवाज़ आई, “मैं यहीं तो आना चाहता था”। यहां जीरो प्वांइट घूमने का मेरा काफी मन था। बर्फबारी की वजह से मैं वहां जा नहीं पाया। लाछुंग में ही वादियों को निहारते हुए मैंने सुबह का नाश्ता किया और बर्फ के बीच सुकून के पल बिताए।

इसके बाद मैं निकल पड़ा लाछेन की तरफ, यहां जाने के दौरान जंगल, पहाड़, संकरी सड़क से होते हुए सफर करने का अपना ही मज़ा आया। यहां पहुंच मैं निकल पड़ा गुरुडोंगमार लेक की ओर। यहां लेक का नीला पानी, सफेद आसामान और पहाड़ी वादियों को देख अजब सी शांति का एहसास हुआ। अब घर लौटने का समय आ गया था। वहीं मेरे दिल में एक इच्छा हो रही थी कि फिर कभी मौका मिला, तो मैं इन वादियों में ज़रूर आउंगा।

ऐसे ही खूबसूरत वादियों का आनंद लेने के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा पर लेख।

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