प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी जी के एक सोशल मीडिया पोस्ट के बाद धरती पर स्वर्ग जैसी एक जगह बहुत सुर्खियों में है, जिसका नाम है लक्षद्वीप। लक्षद्वीप केरल के कोच्चि से क़रीब 440 किलोमीटर दूर भारत का एक केंद्र शासित प्रदेश है। जो 36 छोटे-छोटे द्वीपों का समूह है। इसकी कुल आबादी क़रीब 64 हज़ार है। चारों तरफ फैले नीले समुद्र और सफेद रेत से घिरा ये द्वीप सच में धरती पर स्वर्ग के सुंदर नज़ारों जैसा है। कम आबादी होने की वजह से लक्षद्वीप अब तक पर्यटकों की निगाहों से छिपा हुआ था, पर साल 2024 की शुरुआत से पर्यटक यहां जाने के लिए बेताब हैं।
हरे भरे पहाड़ों के नज़ारे और जमीन को चूमता हुआ-सा सूरज लक्षद्वीप की हर सुबह को खास बनाता है। अगर आप शहर के ट्रैफिक और शोर-शराबे से बहुत दूर प्राकृतिक सुकून पाना चाहते हैं तो लक्षद्वीप बहुत अच्छी पसंद हो सकती है। हालांकि लक्षद्वीप की भूमि पर पहुंचने के लिए सरकार ने कुछ नियम बनाए हैं, जो इस आर्टिकल में आगे दिए गए हैं। आइए हम सोलवेदा के साथ मिलकर जानते हैं लक्षद्वीप पहुंचने से संबंधित कुछ ज़रूरी बातें।
कैसे पहुंचें लक्षद्वीप? (Kaise pahuchein lakshadweep?)
लक्षद्वीप पहुंचने के लिए हमें सबसे पहले कोच्चि पहुंचना होगा। हम भारत के किसी भी हिस्से से, केरल से कोच्चि की फ्लाइट या ट्रेन ले सकते हैं, हालांकि कोच्चि पहुंचने के लिए जलमार्ग की सेवा भी उपलब्ध है। कोच्चि पहुंचते ही हमें सबसे पहले लक्षद्वीप जाने की परमिशन लेनी होगी। भारत में कुछ ऐसी संवेदनशील या सरंक्षित जगह हैं, जहां जाने से पहले हमें प्रशासन से आज्ञा लेनी होती है और लक्षद्वीप ऐसी ही जगहों में से एक है। कोच्चि में विलिंगटन आइलैंड के पास लक्षद्वीप प्रशासन का ऑफिस है। यहां जाकर हम लक्षद्वीप पहुंचने की परमिशन के लिए बात कर सकते हैं।
कोच्चि आने से पहले भी हम परमिट के लिए ऑनलाइन अप्लाई भी कर सकते हैं। इस तरह की आज्ञा मांगते वक्त हमें यात्रा की तारीख़, अपनी आईडी और आईलैंड का नाम आदि से जुड़े पेपर्स को अपलोड करना होता है। यात्रा में कोई विघ्न न आए, इसके लिए हमें कम से कम 15 दिन पहले ही परमिशन फोर्म भर देना चाहिए। लक्षद्वीप का परमिट 30 दिन तक के लिए होता है और इसकी फ़ीस 300 रुपये है। अगर हम हवाई मार्ग से जा रहे हैं तो हमें एयरपोर्ट पर 300 रुपये ग्रीन टैक्स के भी देने होते हैं।
अगर हमें लक्षद्वीप की परमिशन मिल जाती है तो हमें आगे के सफर में अपनी आईडी प्रूफ, पासपोर्ट साइज़ फोटो और परमिट लेटर अपने पास संभाल कर रख लेने चाहिए। ये परमिट हमें लक्षद्वीप के पुलिस थाने या प्रशासन के दफ़्तर में जमा करवाना होता है। इन सबके बाद हम सफेद रेत और नीले समुद्र के नज़ारों को देखने और लक्षद्वीप में खूबसूरत यादें बनाने के लिए तैयार हो जाते हैं।
लक्षद्वीप की राजधानी कवरत्ती (Lakshadweep ki rajdhani kavaratti)
कवरत्ती भारत के केन्द्र शासित प्रदेश लक्षद्वीप की राजधानी है। ये लक्षद्वीप द्वीप-समूह का एक भाग है। कवरत्ती जिस द्वीप पर स्थित है, उसका नाम भी कवरत्ती है। ये अपने सफेद रेत वाले समुद्र तटों और शांत हवा-पानी के लिए मशहूर है, जो इसे पर्यटकों की पहली पसंद बनाता है। स्कूबा डाइवर (गोताखोरों), स्नोर्केलर्स और प्रकृति प्रेमियों को एक चुंबकीय आकर्षण से खींचते हुए, 4,200 वर्ग किलोमीटर की साफ, द्वीप समूह झीलें, गर्म पानी और एकदम साफ मूंगे की चट्टानों से भरी लक्षद्वीप की राजधानी, कवरत्ती वास्तव में सबसे आकर्षक द्वीप स्थानों में से एक है। अरब सागर में केरल राज्य के तट से 300 किलोमीटर दूर स्थित, भारत का सबसे छोटा केंद्र शासित प्रदेश, लक्षद्वीप, जो अपने एकांत की वजह से लोगों का मन मोह लेता है, लगभग 36 ताड़ के मूंगे के द्वीपों से घिरा हुआ है, जिनमें से लगभग 10 द्वीपों पर लोग रहते हैं। लक्षद्वीप गहरी नीली झीलों के बीच बसा है जो अपनी सुंदरता के लिए यात्रियों को यहां आने पर मजबूर करता है। यही नहीं, अपनी शानदार वनस्पतियों और जीवों को समेटे, इसका पानी मछलियों की बहुत-सी प्रजातियों के लिए जाना जाता है, जिन्हें देखकर लगता है मानो समुद्र में रंग-बिरंगे बिंदु तैर रहे हैं। यह द्वीप सुकून, समंदर और शांति के एक संगम जैसा लगता है। टूटे हुए जहाजों के टुकड़े देखने से लेकर, रंगीन समुद्री जीवन के बारे में जानना और स्कूबा डाइविंग और तैराकी जैसे और भी बहुत से पानी के खेलों के मजे लेकर पर्यटक कवरत्ती में बेहतरीन दिन गुज़ार सकते हैं। न केवल ये प्रकृति का स्वर्ग है, बल्कि आध्यात्मिक रूप से भी इस स्थान का महत्व है, कवरत्ती और लक्षद्वीप में बहुत-सी मस्जिदें हैं। 52 मस्जिदों में से, जमनाथ, मोहद्दन और उजरा सबसे खास हैं। कवरत्ती में पर्यटक मजेदार खाने का भी लुत्फ भी उठा सकते है। यहां समुद्री खाने के बहुत से विकल्प आपको मिल जाएंगे।
लक्षद्वीप का इतिहास (Lakshadweep ka itihaas)
लक्षद्वीप में इंसानों के होने के सबूत तीन हज़ार साल से भी पुराने हैं। बौद्ध धर्म की जातक कथाओं में इन द्वीपों का लेखा-जोखा मिलता है। माना जाता है, कि बौद्धभिक्षु संघमित्र लक्षद्वीप आये थे। उस वक्त चेरा साम्राज्य इन द्वीपों पर शासन करता था। थोड़ा आगे चलें तो, 661 ईस्वी के आसपास मदीना से शेख उबैदुल्लाह ने लक्षद्वीप का सफ़र तय किया। यहां उन्होंने इस्लाम का प्रचार किया। एंड्रोट द्वीप में उनकी कब्र भी बनी है। 11वीं सदी में केरल के साथ-साथ ये द्वीप भी चोलों के अधीन आ गए। इसके बाद पुर्तगाली यहां पहुंचे, फिर टीपू सुल्तान और आखिर में भारत के आज़ाद होने तक, लक्षद्वीप ब्रिटिश नियंत्रण में रहा। आज़ादी के बाद, वल्लभ भाई पटेल के प्रयासों से लक्षद्वीप भारत का हिस्सा बना, और साल 1956 में राज्यों के पुनर्गठन के वक्त लक्षद्वीप भारत का केंद्र शासित प्रदेश बन गया। साल 1973 के बाद इसका नाम लक्षद्वीप हुआ। इससे पहले तक तो लक्षद्वीप को लक्काद्वीप, मिनिकॉय, अमीनदीवी जैसे नामों से जाना जाता था।
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