लेह-लद्दाख जाना हर traveller का है सपना

लेह-लद्दाक जाना है हर ट्रैवलर का सपना, पहाड़ों के बीच है शांति

लेह-लद्दाक (leh ladakh) जाना मेरे लिए एक सपने के समान था। क्योंकि ये उन जगहों में एक थी, जिसे जब भी मैं लाइफ में दिक्कत झेल रहा होता था तो यहां की तस्वीर देख लेता था। सोचिए, जब यहां की तस्वीर देख लेने से टेंशन गायब हो जाए तो यहां जाने से कितना कुछ हासिल होगा।

मैं फिर किसी नए सफर पर निकलना चाहता था, जहां मैं और सिर्फ प्रकृति रहे। ऐसे में मैंने लेह-लद्दाक जाने की प्लानिंग की। रिसर्च करते समय मुझे पता चला कि यहां पर जाने के लिए सिर्फ 6 महीने ही टूरिस्ट जा सकते हैं, वो भी मई से अक्टूबर तक। ऐसा इसलिए क्योंकि यहां पर हेवी स्नो फॉल (Snow fall) होता है, ऐसे में इस मार्ग को बंद कर दिया जाता है। मैंने जुलाई में जाने की सोची और पूरी प्लानिंग कर ली। रिसर्च करते समय मुझे पता चला कि अगर मैं बरसात में गया, तो वहां बारिश और लैंड स्लाइडिंग की दिक्कत हो सकती है और सितंबर-अक्टूबर के महीने में गया, तो बर्फबारी के कारण दिक्कत हो सकती है। ऐसे में जुलाई सही समय था जाने का, वैसे भी मैं अपना बर्थडे इस बार अकेले ही प्रकृति के बीच सेलिब्रेट करना चाहता था, सो मैं निकल गया अपने नए सफर पर।

लेह-लद्दाक (Leh Ladakh) जाने के लिए वैसे तो मुझे दो रूट के बारे में पता चला, पहला मनाली होते हुए स्पीति के रास्ते लेह-लद्दाक तक का सफर तय करना, ये करीब 450 किलोमीटर तक का सफर है और दूसरा श्रीनगर होते हुए कारगिल पहुंचकर वहां से लेह-लद्दाक जा सकते हैं। वहीं इसकी 420 किलोमीटर तक की दूरी है।

मेरे पास बुलेट थी, ऐसे में मैंने बुलेट से ट्रिप प्लान कर लिया। इसके लिए मैंने तैयारी भी कर ली, मैंने 10 लीटर वाला जैरी कैन ले लिया, क्योंकि इस रूट में पेट्रोल पंप नहीं है। मैंने अच्छा हेलमेट और गैजेट्स भी ले लिए, जिसमें सेफ्टी गार्ड जैसे नी गार्ड, एंकल गार्ड आदि की खरीदारी कर ली। वहीं मैंने टूल किट रख लिया। मेरी बाइक के टायर ट्यूबलेस थे, ऐसे में गाड़ी के पंक्चर होने पर मुझे कोई खास दिक्कत का सामना नहीं करना पड़ा। इसके अलावा मैंने वाटर प्रूफ बैग, रेन कोट और सर्दियों के कपड़े रख लिए। मैं किसी प्रकार का रिस्क नहीं लेना चाहता था, वहीं मुझे यहां के मौसम के बारे में पहले से ही काफी कुछ पता था, ऐसे में मैंने पूरी प्लानिंग कर ली थी।

लेकिन, रिसर्च के दौरान मुझे एक और बात का पता चला कि बिना परमिट के मैं वहां घूम ही नहीं सकता था, ऐसे में मैंने एक ऑनलाइन साइट के बारे में पता किया, जिसपर जाकर मैंने 850 रुपए देकर परमिट निकलवा लिया। यदि आप ऑनलाइन इसे नहीं निकलवाना चाहते हैं, तो लेह के डिस्ट्रिक मजिस्ट्रेट ऑफिस में जाकर भी इस परमिट को निकलवा सकते हैं। लेकिन, यदि आप मनाली के रास्ते होते हुए रोहतांग पास (Rohtang pass) से होते हुए लेह का सफर तय कर रहे हैं, तो आपको एक और परमिट की ज़रुरत है, लेकिन अब अटल मार्ग के बन जाने से आप इस रास्ते से होते हुए भी लेह तक का सफर तय कर सकते हैं। यहां से जाने पर आपको परमिट की ज़रुरत नहीं है और रोड भी काफी अच्छी है।

मैंने जाने के लिए श्रीनगर वाले रूट को चुना। मैंने दिल्ली से जम्मू तक के लिए अपनी बाइक को ट्रेन से बुक कर दी थी। वहीं, मैंने जम्मू स्टेशन पर पहुंचकर बाइक निकलवाई और सामान अपलोड करने के बाद निकल गया अपने सफर पर। मैंने जम्मू और उधमपुर में कई साल बिताए थे, इसलिए मैं अपने पुराने स्कूल को भी देखना चाहता था और क्योंकि वो रास्ते में ही है और निकल गया अपने सफर पर। यहां पहाड़ और घुमावदार रास्तों से होते हुए मैं उधमपुर पहुंचा। यहां मैंने अपना पुराना स्कूल देखा, उसके बाहर फोटो भी खिंचवाई और फिर निकल गया श्रीनगर के लिए। श्रीनगर में रुककर मैंने आराम किया। वहीं यहां की खास चाय का आनंद लेने के साथ बाजार और डल झील भी घूमने गया। इसके बाद मैं निकल गया अपने सफर पर।

करीब 210 किलोमीटर तक का सफर तय कर मैं पहुंच चुका था कारगिल, ये वही जगह थी जहां पर 1999 में कारगिल का युद्ध हुआ था। मैं ऊंचे-ऊंचे बर्फ से ढके पहाड़ों को देखकर एहसास कर पा रहा था कि हमारे सैनिकों के लिए इस ठंडे वातावरण में युद्ध करना कितना मुश्किल रहा होगा। यहां पर भी मैंने रुकना ठीक समझा। यहां पर मुझे कई लोग दिखे, जो ओपन में स्टे कर रहे थे। ऐसे में मैं भी उनके साथ रुक गया। टेंट, खाने का सामान और बॉन फायर की व्यवस्था उन्होंने कर रखी थी। ऐसे में अंजान लोगों के साथ खुशनुमा पल बिताकर मुझे भी काफी अच्छा लगा। ये लोग चंडीगढ़ से लेह के लिए आए थे।

यहां मैं काफी ज्यादा थक गया था और कैंप में रहना मुझे अच्छा लग रहा था, ऐसे में मैंने यहां एक और दिन का स्टे किया। क्योंकि यहां आराम करने की अच्छी व्यवस्था होने के साथ लोग अच्छे थे, खाना अच्छा था और हां… शाम होते ही बॉन फायर और मेरा फेवरेट संगीत… मानो मैं अब जन्नत में पहुंच चुका था। मैं नहीं चाह रहा था कि इस जगह को कभी छोड़कर भी जाउं। क्योंकि पहाड़ों के बीच मुझे अजब सी शांति का एहसास हो रहा था।

अब मैं अगले दिन अपने मन को समझाते हुए लेह की ओर निकल गया। बाइक से जाते हुए नालों को पार करते हुए यहां तक का मैंने रास्ता तय किया। यहां की पहाड़ी वादियों को देखकर मुझे यही बस जाने का दिल चाह रहा था।

अब मैं लेह पहुंच चुका था, ऐसे में मैं इस बार यहां की हर एक खास जगह को देखकर जीना चाहता था ताकि मैं किसी भी जगह को मिस न कर दूं। पहले दिन लेह पहुंचते-पहुंचते मुझे शाम हो गई थी, ऐसे में रात का खाना खाने के बाद मैंने होटल में आराम किया और अगले दिन घूमने की सोची। अगले दिन मैंने लोकल साइट सीन घूमने का फैसला किया और मैं लेह पैलेस गया, मॉनेस्ट्री और पास के बाजार भी गया। दूसरे दिन मैं पैंगोंग लेक गया। यहां जाने के लिए मुझे फिर परमिट की ज़रुरत पड़ी, लेकिन मैंने परमिट कराने की बजाय लोकल टैक्सी बुक की और उनके साथ गया। यह वही जगह है जहां पर थ्री इडियट्स फिल्म की शूटिंग हुई थी।

पैंगोंग लेक (Pangong Lake) का पानी जैसा मैंने फिल्म में देखा था ये उतना ही साफ और नीला था। मैं तो लेक के किनारे जाकर बैठ ही गया और निहारने लगा यहां की खूबसूरती को। यहां मैंने फोटो भी खिंचवाया और प्रकृति के बीच समय गुजारने के साथ खानपान का लुत्फ उठाया। अब तीसरे दिन मैंने नुब्रा वैली जाने की प्लानिंग की, मैं चाहता था कि मैं अपना बर्थडे यही सेलिब्रेट करुं। यहां जाने के लिए किसी प्रकार के परमिट की ज़रुरत नहीं है, ऐसे में मैं अपनी बाइक से ही निकल पड़ा इस सफर की ओर। यहां की खूबसूरती देखते ही बन रही थी, ऊंचे पर्वतों को देखकर मैं बस यहीं बस जाना चाहता था। यहां मैंने पहाड़ों के बीच अकेले ही अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया और खानपान का लुत्फ उठाने के साथ कप केक काट अपना बर्थडे सेलिब्रेट किया।

आप कोशिश कीजिए कि आप जिस रास्ते से आए थे उसी रास्ते से वापिस जाएं। मैंने वापिस आने के लिए जम्मू से ही बाइक की बुकिंग करा रखी थी। ऐसे में वापिस उसी रास्ते से होते हुए आया और जम्मू स्टेशन पर पहुंचकर बाइक की बुकिंग कराई और खुद ट्रेन से अपने शहर पहुंच गया।

अगर आपमें भी है सफर करने का जुनून और नई-नई जगहों को करना चाहते हैं एक्सप्लोर तो पढ़ते रहें सोलवेदा पर आर्टिकल्स को।

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