कश्मीर जन्नत है, ये सपना नहीं हकीकत है

कश्मीर जन्नत है, ये सपना नहीं हकीकत है

क्या जन्नत बर्फ से ढंके पहाड़ हैं या डल लेक के बीचों-बीच मिलते स्वादिष्ट पकवान। क्या जन्नत रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सुकून पाना है या नए लोगों के साथ हंसी-मजाक भरे पल बिताना, वो भी जो कल तक अंजान थे।

अमीर खुसरो की ये पंक्तियां ‘गर फिरदौस बर रुए ज़मीं अस्त अगर जमीन पर कहीं जन्नत है, तो यहीं है, यहीं है। लेकिन, ये जन्नत क्या है? क्या जन्नत बर्फ से ढंके पहाड़ हैं या डल लेक के बीचों-बीच मिलते स्वादिष्ट पकवान। क्या जन्नत रोज़मर्रा की ज़िंदगी में सुकून पाना है या नए लोगों के साथ हंसी-मजाक भरे पल बिताना, वो भी जो कल तक अंजान थे। इन सवालों के जवाब मेरे पास नहीं थे, क्योंकि आज से पहले मैंने कश्मीर के बारे में किताबों में पढ़कर और फिल्मों में देखकर ही जाना था। लेकिन, आज मैं इस खूबसूरती को देख पा रहा था, वो भी अपनी खुली आंखों से। क्योंकि आज मैं कश्मीर पहुंच चुका था। तो चलिए इस बार कश्मीर एक अलग नज़र से देखते हैं। इस बार हम और आप असली जन्नत खोजते हैं।

श्रीनगर पहुंचते ही मैं सबसे पहले डल लेक पहुंचा। श्रीनगर (srinagar) का मौसम थोड़ा गर्म था और सूरज की रोशनी में श्रीनगर घाटी रंग-बिरंगी दिख रही थी। सूरज की रोशनी में आसमान के साथ-साथ डल लेक भी नीला दिख रहा था। लेक में इक्का-दुक्का शिकारे नज़र आ रहे थे और इसपर घूमते पर्यटक। लेकिन, श्रीनगर को करीब से महसूस करने के लिए मैं पहुंच गया परी महल। परी महल से श्रीनगर की खूबसूरती देखते ही बनती है। यहां से डल लेक, मुगल गार्डेन सहित आसपास की खूबसूरती को अपनी आंखों से निहार सकते हैं। यहां मैंने तय किया, अब सबसे पहले निशात बाग (मुगल गार्डेन) जाएंगे। फिर में चल पड़ा मुगल गार्डेन की ओर। डल झील के किनारे-किनारे चलते हुए कुछ ही मिनटों में मैं मुगल गार्डेन पहुंच गया।

निशात बाग को 1633 ई. में मुमताज महल के पिता हसन आसफ खान और नूरजहां के भाई ने बनवाया था। बाग का निर्माण 12 सीढ़ीदार तल पर किया गया है। यहां बेहद दुर्लभ किस्म के फूलों के साथ-साथ चिनार व अन्य पेड़ हैं। बाग में पहुंचते ही आपका स्वागत करता है, ऊंचाई से गिरता झरना और आसपास लगे फल और फूल के पौधे। निशात बाग से दूर तक डल झील और बर्फ से ढकी पीर पंजाल पहाड़ दिखाई देती है। यहां आप किराए पर कश्मीरी ड्रेस लेकर कश्मीरियत का एहसास कर सकते हैं।

निशात बाग घूमते-घूमते शाम हो चुकी थी, तो हम पहुंच गए स्थानीय बाजार, जहां की रौनक देखते ही बन रही थी। स्थानीय लोग जहां अपनी ज़रुरत का सामान खरीद रह थे, वहीं पर्यटक कश्मीर यात्रा की यादें संजोकर रखने के लिए कलाकृति और अन्य चीज़ें। बाजार में ही स्थानीय खाना का लुत्फ उठाने के बाद अब आराम करने की बारी थी, तो मैं फिर से पहुंच गया डल लेक, जहां हाउसबोट हमने रात गुजारने के लिए ले रखी थी। हाउसबोट पर पहुंचने के बाद आसपास की खूबसूरती और माहौल को देख नींद नहीं आई। सड़क पर जल रहे स्ट्रीट लाइट की रोशनी का डल लेक में बन रहा प्रतिबिंब कुछ अलग ही एहसास दिला रहा था। दिन में जितनी गर्मी, रात उतनी ही सर्द। ठंडी हवा के थपेड़े हमें अलग ही दुनिया में ले जा रहे थे और जन्नत का एहसास दिला रहे थे।

इस सफर के अगले दिन मैं कश्मीर से गुलमर्ग और सोनमर्ग के लिए निकल पड़ा। गुलमर्ग खूबसूरत हिल स्टेशन है। इसे फूलों का प्रदेश भी कहा जाता है। यहां का मौसम काफी सुहावना है। साथ ही फूलों से खिले बगीचे, देवदार के पेड़ यहां की सुंदरता को और बढ़ा देते हैं। वहीं, सोनमर्ग को कश्मीर का दिल कहा जाता है। सोनमर्ग पाइन के पेड़ों से घिरा हुआ है और समुद्रतल से लगभग 2730 मीटर की ऊंचाई पर बसा है।

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