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हाजी अली दरगाह: तूफानी समुद्र के बीच बसा शांत मकबरा

अकीदतमंदों का मानना कि इच्छाओं की पूर्तिस्थल के रूप में प्रतिष्ठित हाजी अली दरगाह का निर्माण किया गया। इसका निर्माण वहां किया जहां अनंत लहरों के प्रवाह से उस सूफी संत का ताबूत पहुंचा।

खारे पानी के छींटे, डूबते सूरज की आभा में झिलमिलाते हुए समुद्र का अंतहीन विस्तार बरबस ही ध्यान खींचता है। अरब सागर के उबड़-खाबड़ पूर्वी किनारों में डुबकी लगाने से वनस्पतियों, जीवों और यहां तक की गहरी चिपचिपे तेल से लिपटी तलछटी चट्टानों की झलक मिलती है। फिर भी कोई सदियों से यहां बसे आस्था के अमूर्त अंबार को नहीं देख सकता, जो हाजी अली दरगाह (मकबरे) के रूप में यहां स्थापित है।

ऐसे समय में जब मुंबई द्वीपसमूह दिल्ली सल्तनत द्वारा नियुक्त गुजरात के राज्यपालों द्वारा शासित था, उस समय दरगाह का निर्माण कार्य 1431 ईसवी में मुंबई तट से लगभग 500 मीटर की दूरी पर शुरू हुआ था। उस दौरान  मध्यकालीन भारत में सूफी आंदोलन चरम पर था। मान्यता यह है कि ईरानी सूफी संत पीर हाजी अली शाह बुखारी ने ज़रुरतमंद महिला की मदद की थी, उन्होंने समुद्र के किनारे अपनी अंगुली के स्पर्श से तेल के प्रवाह की एक धारा उत्पन्न की। धरती को नुकसान पहुंचाने के पश्चाताप स्वरूप उन्होंने बाद में अपने अनुयायियों से अनुरोध किया कि वे उनके ताबूत को पृथ्वी को हानि पहुंचाए बिना समुद्र में डाल दें। कहा जाता है कि लहरों के प्रवाह में उनका ताबूत एक स्थान पर अटक गया, जहां हाजी अली दरगाह (Haji Ali dargah) का निर्माण किया गया। क्या यह लोककथा केवल मनुष्य की कल्पना है या वास्तव में समुद्र में एक चमत्कार है। क्योंकि यहां लगभग 500 साल बाद भारत का एकमात्र अपतटीय यानी ‘ऑफशोर’ तेल क्षेत्र-बॉम्बे हाई 1974 में खोजा गया?

मकबरा मन्नतों (इच्छाओं) की पूर्ति के स्थल के रूप में प्रतिष्ठित है, जहां से कोई भी खाली हाथ नहीं लौटता। माना जाता है कि बुखारी जिन्होंने वर्षों तक यहां ध्यान लगाया था, उनके स्पर्श ने मकबरे की आभा को महज़ एक दर्शनीय स्थल से आध्यात्मिकता के माहौल में बदल दिया।

सूफी कव्वालियों की आनंदायक धुन समुद्री हवाओं और लहरों की धुन पर नृत्य करती प्रतीत होती है। मकबरे की ओर जाने वाली संकरी सड़क जो अक्सर समुद्र के पानी में भीगी रहती है और ज्वार-भाटे के दौरान पानी में डूब जाती है। इस दौरान लोगों का आना-जाना बंद हो जाता है। फिर भी जहां दरगाह है वहां पूरे साल सूखा रहता है।

अकीदतमंदों का कहना है कि इस जगह पर बार-बार चमत्कार होते देखे गए हैं। लेकिन ये चमत्कार क्या बताते हैं? कुछ के लिए ये महज़ संयोग या घटनाएं हैं जिनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं है, जबकि कुछ उन्हें दैवीय शक्ति का चमत्कार कहते हैं। विभिन्न दृष्टिकोण के साथ चमत्कार वे हैं, जिन्हें आप चमत्कार मानते हैं।

1949 में मुंबई के समुद्र तट पर आए एक भयंकर तूफान में कई इमारतें बह गई थी। इनमें किनारों से दूर स्थित इमारतें भी शामिल थी। लेकिन यह खास दरगाह इससे अछूती रही। मकबरे के अंदर बचे लोगों का विश्वास था कि संत की शक्ति ने तूफानी लहरों को शांत किया। नास्तिक लोगों ने इसे प्रकृति का संयोग माना। वर्षों बाद 2005 में बादल फटने से मुंबई का जनजीवन ठहर सा गया। दरगाह फिर भी अप्रभावित रही। अकीदतमंदों ने इसे संत का दिव्य चमत्कार माना, जिससे दरगाह के भीतर पानी नहीं आया।

तो हाजी अली दरगाह के इस अवर्णनीय ताकत की व्याख्या कैसे की जा सकती है? एक ऐसी भू-वैज्ञानिक घटना जिसे अभी समझना शेष है या फिर जैसा कि लाखों भक्त मानते हैं – महज़ एक चमत्कार?

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