बद्रीनाथ में दिखेगा आस्था और इतिहास का एक अनूठा मिश्रण

अलकनंदा के किनारे बसा है भगवान विष्णु का बैकुंठ लोक, जिसे आज दुनिया बद्रीनाथ के नाम से जानती है। यह भारत के चार धामों से एक है। आज सोलवेदा की इस यात्रा में हम आपको लेकर पहुंच चुके हैं उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ धाम में।

एक कहावत है, ‘जो जाए बद्री, वो न आए ओदरी’। इस कहावत का मतलब है जो इंसान एक बार बद्रीनाथ धाम का दर्शन कर लेता है, उसे फिर से गर्भ में नहीं आना पड़ता है, यानी कि एक बार मनुष्य के रूप में जन्म लेने के बाद दोबारा इंसान के रूप में जन्म नहीं लेना पड़ता है। वहीं, हिंदू शास्त्रों में कहा गया है कि व्यक्ति को कम से कम दो बार अपनी ज़िंदगी में बद्रीनाथ की यात्रा ज़रूर करनी चाहिए।

अलकनंदा के किनारे बसा है भगवान विष्णु (Lord Vishnu) का बैकुंठ लोक, जिसे आज दुनिया बद्रीनाथ के नाम से जानती है। यह भारत के चार धामों से एक है। आज सोलवेदा की इस यात्रा में हम आपको लेकर पहुंच चुके हैं उत्तराखंड में स्थित बद्रीनाथ धाम में।

माना जाता है कि जब-जब धरती पर अधर्म का बोझ बढ़ा है, तब-तब अपने भक्तों के कष्टों को कम करने के लिए भगवान विष्णु ने अवतार लिया है। भक्त मानते हैं कि बद्रीनाथ धाम में भगवान विष्णु बद्रीनारायण के रूप में आज भी रहते हैं।

यहां जो भी पहुंचते हैं उनकी हर मनोकामना पूरी होती है। भगवान बद्री की दर्शन की आस लिए हर दिन यहां पहुंचने वाले लाखों लोग एक उम्मीद लेकर आते हैं।

खूबसूरत रास्ते बद्रीनाथ की यात्रा को बनाएंगे आध्यात्मिक (Khoobsurat raste badrinath ki yatra ko banaenge aadhyatmik)

बद्रीनाथ की यात्रा पर जब हम हरिद्वार (Haridwar) से आगे बढ़े, तो प्रकृति के बीच चारों ओर खूबसूरत नज़ारे दिख रहे थे। ऊंचे पहाड़ों और नदियों के किनारे चलते हुए आध्यात्मिकता महसूस होती है। इस रास्ते में कहीं झरने, तो कहीं बादलों की सफेद चादर, मुझे अपनी ओर खींच रहे थे।

इस दौरान कहीं पहाड़ों की हरियाली में मन खो गया, तो कहीं आस-पास में दिख रहे लोग अपने हाव-भाव से हमें अपनाते हुए दिखे। कीर्तिनगर, श्रीनगर, रुद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, कौचर, नंदप्रयाग, चमोली को पार करते हुए हम जोशीमठ पहुंचे और फिर यहां से बद्रीनाथ की यात्रा पर निकल पड़े। बद्रीनाथ चार धाम में से एक धाम है, जिसका हिंदू धर्म में काफी महत्व है।

बद्रीनाथ में दिखे कुदरत के अनोखे रूप (Badrinath mein dikhe kudrat ke anokhe roop)

जोशीमठ (Joshimath) से जैसे ही आगे बढ़ते हैं, तो गोविंद घाट आता है। यहां से आप हेमकुंत साहिब भी जा सकते हैं। वहीं, एक रास्ता बद्रीनाथ की ओर जाता है। यहां से हम जैसे-जैसे बद्रीनाथ की ओर बढ़ने लगे तो एक से बढ़कर एक कुदरत के अनोखे रूप हमें दिखते रहें।

इस रास्ते में चलते हुए आपकी नज़रें जहां तक जाएंगी, आपको सीना ताने पहाड़ दिखेंगे। साथ ही चारों ओर हरियाली ही हरियाली ही दिखती है और इनकी गोद में समाए मनमोहक प्राकृतिक झरने दिखते हैं। ये सभी यहां की खूबसूरती में चार चांद लगा देते हैं।

बद्रीनाथ मंदिर का इतिहास (Badrinath Mandir ka itihas)

इतिहास कि किताबों के अनुसार यह मंदिर वैदिक युग का है, जो लगभग 1500 ईसा पूर्व में शुरू हुआ था। इस मंदिर का उल्लेख कई हिंदू ग्रंथों में मिलता है। यह भी माना जाता है कि इस मंदिर का निर्माण 9वीं शताब्दी में आदि गुरु शंकराचार्य ने किया था। उन्होंने ही केरल के नंबूदिरी ब्राह्मण को यहां का मुख्य पूजारी बनाया, जो परंपरा आज भी जारी है।

इस मंदिर के पास पहुंचते ही यहां के माहौल से आध्यात्मिक शांति मिलती है। यहां जैसे ही हम पहुंचे, तो हमारे एक ओर नर, तो दूसरी ओर नारायण पहाड़ था और बीच में अलकनंदा नदी। इसके किनारे बसा है बद्रीनाथ मंदिर। यहां भगवान बद्री ने 66 साल तक तप किया था। यहां जिस शिला पर बैठकर उन्होनें तप किया था, उसे ‘मार्कंड शिलालेख’ कहते हैं। बद्रीनाथ का अर्थ होता है, लक्ष्मी का नाथ।

पीले चंदन से रंगी है भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा (Peele chandan se rangi hai bhagwan badrinath ki pratima)

जैसे ही मैंने मंदिर परिसर में पैर रखा, वैसे ही सामने पीले चंदन से रंगी भगवान बद्रीनाथ की प्रतिमा दिखी। यहां प्रसाद के रूप में उन्हें विशेष तौर पर वन तुलसी की माला, कच्चे चने की दाल, मिश्री और गोला चढ़ाया जाता है। यहां की एक और खासियत यह है कि यहां प्रतिमा को किसी को छूने नहीं दिया जाता है। सिर्फ यहां केरल के ही पूजारी भगवान की प्रतिमा को छू सकते हैं।

बद्रीनाथ मंदिर का महत्व और खासियत निम्न हैं:

शास्त्रों में बताया जाता है दूसरा बैकुंठ

हिंदू शास्त्रों में बद्रीनाथ को दूसरा बैकुंठ बताया जाता है। पहला बैकुंठ क्षीर सागर है, जहां भगवान विष्णु रहते हैं, तो दूसरा बद्रीनाथ को बताया गया है। यहां के बारे में यह भी कहा जाता है कि यह कभी भगवान शिव का निवास स्थान था, लेकिन भगवान विष्णु से इसे शिवजी से मांग लिया था।

मंदिर में जलने वाले दीपक का है खास महत्व

बद्रीनाथ मंदिर के कपाट खुलते ही, उस समय मंदिर में जलने वाले दीपक का खास महत्व है। कहा जाता है कि छह महीने तक बंद कपाट के अंदर देवता इस दीपक को जलाए रखते हैं।

सोलवेदा की इस यात्रा में हमने आपको बद्रीनाथ धाम के बारे में बताया। यह यात्रा आपको कैसी लगी, हमें कमेंट करके ज़रूर बताएं। साथ ही इसी तरह की और यात्रा पर चलने के लिए पढ़ते रहें सोलवेदा हिंदी।

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